गुरुवार, 18 अप्रैल 2024
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Written By समय ताम्रकर

ब्रदर्स : फिल्म समीक्षा

ब्रदर्स : फिल्म समीक्षा - Brothers review, Hindi Film Brothers, Akshay Kumar, Siddharth Malhotra, Samay Tamrakar
भाई-भाई के बीच होने वाले प्यार और नफरत को भारतीयों ने काफी पसंद किया है। महाभारत से लेकर तो अमर अकबर एंथोनी, दीवार, करण-अर्जुन तक दर्शकों को यह भाइयों की कहानी बेहद पसंद आई है। इसी बात को ध्यान में रखते हुए दोनों करणों (निर्माता करण जौहर और निर्देशक करण मल्होत्रा) को हॉलीवुड फिल्म 'वॉरियर' में एक सफल रीमेक बनाने के गुण नजर आए। यह भी दो भाइयों की कहानी है जिसमें भरपूर इमोशन और एक्शन है, लेकिन इसका बॉलीवुड संस्करण करने में 'ब्रदर्स' के मेकर्स मात खा गए। बदले में हमें एक लंबी, घिसटती हुई और उबाऊ फिल्म देखने को मिलती है। 
 
फिल्म को दो भागों में बांटा गया है। इंटरवल से पहले यह एक फैमिली ड्रामा है जिसमें भरपूर इमोशन डाले गए हैं। कोशिश की गई है कि दर्शकों के आंखों से आंसू निकल जाए, लेकिन आपको रूमाल की जरूरत एक बार भी नहीं पड़ती क्योंकि ये भावुक दृश्य आपके दिल को छू नहीं पाते हैं।
गैरी फर्नांडिस (जैकी श्रॉफ) एक्स फाइटर है जो अपनी पत्नी की हत्या के जुर्म में जेल काट कर आया है। शराब के कारण वह तबाह हो गया है। पत्नी से उसे एक बेटा डेविड (अक्षय कुमार) है और दूसरी औरत (जो कि मर चुकी है) से भी उसे एक बेटा मोंटी (सिद्धार्थ मल्होत्रा) है। गैरी की पत्नी (शैफाली शाह) मोंटी को अपना लेती है, लेकिन जब गैरी अपनी पत्नी की हत्या कर देता है तो डेविड और मोंटी के रिश्तों में दरार आ जाती है। 
 
फिल्म का यह हिस्सा उदासी लिए हुआ है। बहुत कम लाइट में इसे शूट किया गया है ताकि माहौल उदासी भरा नजर आए। हर किरदार खिन्न और अवसाद से भरा है। गैरी अपनी पत्नी की हत्या को लेकर ग्लानि भरा जीवन जी रहा है। डेविड की बेटी किडनी की बीमारी से जूझ रही है। वह दिन में स्कूल में फिजिक्स पढ़ाता है और रात को स्ट्रीट फाइट में हिस्सा लेता है, फिर भी उसे पैसे कम पड़ते हैं। मोंटी भी स्ट्रीट फाइटर है और अपने भाई से खिन्न है।
 
इन सब बातों को इतना खींचा कि ये सारे इमोशन्स हवा हो जाते हैं। फिल्म बेहद सुस्त और उबाऊ लगती है। यहां पर निर्देशक करण मल्होत्रा का निर्देशन अस्सी के दशक में बनने वाली फिल्मों की याद दिलाता है। स्क्रीन पर इंटरवल लिखा आता है तो थोड़ी राहत मिलती है। 
 
ब्रेक के बाद दूसरा हिस्सा एक्शन के नाम कर दिया गया है। आरटूएफ यानी कि राइट टू फाइट को भारत में मान्यता मिल गई है। इसमें मिक्स्ड मार्शल आर्ट्स के फाइटर्स जो अंधेरी और तंग जगहों पर अपराधियों की तरह फाइट्स में हिस्सा लेते थे उन्हें एक मंच मिल जाता है। कुछ अंतराष्ट्रीय स्तर के फाइटर्स एक प्रतियोगिता में भाग लेने आते हैं। 
 
डेविड को अपनी बेटी के इलाज के लिए पैसों की जरूरत है और वह इस स्पर्धा में उतरता है। मोंटी भी भाग लेता है। यही से अंदाजा लगाना मुश्किल नहीं है कि अंतिम मुकाबला 'ब्लड वर्सेस ब्लड' यानी कि भाइयों में होगा। उत्सुकता सिर्फ इस बात की रहती है कि जीतेगा कौन। 
 
फिल्म का यह हिस्सा पहले हाफ से थोड़ा अच्छा इसलिए है क्योंकि यहां भरपूर एक्शन है। हालांकि निर्देशक करण मल्होत्रा ने यहां पर फिल्म की लगाम एडीटर और एक्शन डायरेक्टर के हाथों में सौंप दी है क्योंकि इस हिस्से में फाइट स्पर्धा के अलावा कुछ भी नहीं है। 
 
दो कमेंटेटर्स बक-बक करते रहते हैं और लड़ाई चलती रहती है। फाइट के कुछ सीन बहुत ही उम्दा है और दर्शकों को चीयर करने का थोड़ा अवसर भी मिलता है, लेकिन लगातार इन्हें देखना भी सब के बस की बात नहीं है। फिर ये सीन इसलिए भी असर नहीं डालते क्योंकि ये विश्वसनीय नहीं है। गलियों में लड़ने वाले फाइटर्स के विश्वस्तरीय फाइटर्स से मुकाबले वाली बात को जंचाने में निर्देशक असफल रहे हैं।  
 
 
निर्देशक करण मल्होत्रा ने '‍अग्निपथ' के बाद फिर रिमेक में हाथ आजमाया है, यानी कुछ मौलिक करने की हिम्मत वे अब तक नहीं जुटा पाए हैं। शॉट वे जरूर अच्छे फिल्मा लेते हैं, लेकिन बात कहने में वे बहुत ज्यादा वक्त लेते हैं और संतुलित नहीं रह पाते। कब रूकना है और कितना बताना है, यह उन्हें सीखना होगा। वे पूरी फिल्म में किरदारों को ठीक से स्थापित ही नहीं कर पाए। खासतौर पर मोंटी हमेशा इतने गुस्से में क्यों रहता है यह पता नहीं चलता।
 
अकिव अली ने फिल्म को एडिट किया है और उनका संपादन बेहद ढीला है। फिल्म को आधे घंटे कम किया जा सकता था। सिनेमाटोग्राफी खासतौर पर फाइट सीन की उम्दा है। फिल्म का संगीत ऐसा नहीं है कि याद किया जा सके। बैकग्राउंड म्युजिक लाउड है। 
 
अक्षय कुमार एक फाइटर के रूप में बेहद फिट लगे हैं। खासतौर पर फाइटिंग की तैयारी वाले शॉट्स में उनकी फिटनेस नजर आती है। खिचड़ी दाढ़ी वाले लुक से उन्हें बचना चाहिए। उन्होंने अपना काम संजीदगी से किया है। सिद्धार्थ मल्होत्रा का अभिनय कमजोर है। फिल्म में मुश्किल से चंद संवाद उन्होंने बोले हैं। बॉडी तो उन्होंने अच्छी बनाई है, लेकिन किरदार में जो आग होनी थी वो बात उनकी एक्टिंग में नजर नहीं आई। 
 
जैकी श्रॉफ को खूब फुटेज मिले और फिल्म के पहले हाफ में उनका दबदबा रहा। अभिनय उनका ठीक ही कहा जा सकता है। यदि इस रोल में दमदार अभिनेता होता तो बात ही कुछ और होती। जैकलीन के हिस्से में चंद दृश्य आए। एक हॉट आइटम सांग में सेक्सी करीना कपूर पब्लिक की तकलीफ बढ़ाती हैं, लेकिन इस तरह के गाने करने की उन्हें क्या जरूरत है? 
 
एक हिट हॉलीवुड फिल्म का रीमेक, भव्य स्टार कास्ट, बड़ा बजट होने के बावजूद 'ब्रदर्स' औसत दर्जे की फिल्म के रूप में सामने आती है। 
 
 
बैनर : धर्मा प्रोडक्शन्स, लॉयंसगेट एंटरटेनमेंट, एंडेमॉल इंडिया, फॉक्स स्टार स्टुडियोज़
निर्माता : करण जौहर, हीरू यश जौहर
निर्देशक : करण मल्होत्रा
संगीत : अजय-अतुल
कलाकार : अक्षय कुमार, जैकलीन फर्नांडिस, सिद्धार्थ मल्होत्रा, जैकी श्रॉफ, आशुतोष राणा, शैफाली शाह, नायशा खन्ना, करीना कपूर खान (आइटम सांग) 
सेंसर सर्टिफिकेट : यूए * 2 घंटे 38 मिनट 4 सेकण्ड 
रेटिंग : 2/5