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Written By समय ताम्रकर

जाने तू... या जाने ना

जाने तू... या जाने ना
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निर्माता : मंसूर खान, आमिर खान
निर्देशक : अब्बास टायरवाला
संगीत : ए.आर. रहमान
कलाकार : इमरान खान, जेनेलिया, मंजरी, अयाज़ खान, करण माखीजा, सुगंधा गर्ग, निराव मेहता, अनुराधा पटेल, रत्ना पाठक शाह
रेटिंग : *** 1/2

लड़का-लड़की की दोस्ती बड़ा नाजुक रिश्ता है। कब दोस्ती प्यार में बदल जाती है पता नहीं चल पाता। आखिर कब और कैसे महसूस हो कि प्यार हो गया है। इस धागे-सी भी पतली कहानी को आधार बनाकर निर्देशक और लेखक अब्बास टायरवाला ने दो घंटे पैंतीस मिनट की फिल्म ‘जाने तू... या जाने ना’ बनाई है।

कहानी जब बहुत छोटी हो, तो स्क्रीन प्ले का मजबूत होना बहुत आवश्यक है। दृश्यों में इतना आकर्षण होना चाहिए कि कहानी भले ही खिसकती हुई आगे बढ़े, लेकिन दर्शक बोर न हो। कहा जा सकता है कि अब्बास टायरवाला इसमें कुछ हद तक सफल रहे हैं। कहानी में नयापन न होने के बावजूद उनके प्रस्तुतिकरण में ताजगी और नवीनता है।

जय सिंह राठौर (इमरान खान) सिर्फ नाम का राजपूत है। उसकी दोस्त अदिति महंत (जेनेलिया) उसे फट्टू कहकर पुकारती है। जय के विपरीत अदिति हर किसी से झगड़ा करती है।

जय, अदिति के ग्रुप में जिग्गी, शालीन, रोतलू और बॉम्बस हैं। रोतलू मन ही मन अदिति को चाहता है और बॉम्बस जय को। दोनों का रिश्ता बड़ा मजेदार है। दोनों एक-दूसरे के दर्द को जानते हैं, इसलिए वे एक-दूसरे के करीब है।

जय और अदिति हमेशा साथ रहते हैं, इसलिए सब को भ्रम हो जाता है कि वे एक-दूसरे को चाहते हैं। जब जय और अदिति से इस बारे में अदिति के माँ-बाप पूछते हैं तो वे इंकार करते हैं कि वे एक-दूसरे को चाहते हैं। कैसे उन्हें महसूस होता है कि वे एक-दूसरे को पसंद करते हैं, यह फिल्म का सार है।

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अब्बास ने यह फिल्म आधुनिक युवा दर्शकों को ध्यान में रखकर बनाई है और नि:संदेह यह वर्ग इस फिल्म को बेहद पसंद करेगा। अब्बास का कहानी कहने का तरीका बेहद उम्दा है।

फिल्म का पहला घंटा बेहद मनोरंजक है। इसमें आज की युवा पीढ़ी का उन्होंने हूबहू चित्रण किया है। यह हिस्सा बेहद युथफुल और ऊर्जा से भरा हुआ है। फिल्म कमजोर पड़ती है दूसरे घंटे में। दर्शक चाहते हैं कि जय और अदिति साथ रहें, लेकिन उन्हें दूर-दूर दिखाया गया है और इसे काफी लंबा रखा गया है। उनके बिछड़ने में वो दर्द पैदा नहीं होता, जो होना चाहिए। इस हिस्से में गानों की कमी भी महसूस होती है क्योंकि सभी हिट गीत पहले घंटे में परदे पर पेश कर दिए। फिल्म का अंत बेहद फिल्मी है, इसके बावजूद अच्छा लगता है।

फिल्म में कई रिश्तों को बड़ी खूबसूरती से पेश किया गया है। जय और उसकी मम्मी के बीच का रिश्ता, अदिति और उसके भाई अमित का रिश्ता, रोतलू और बॉम्बस का रिश्ता। नसीरूद्दीन शाह और रत्ना शाह की बातचीत बेहतरीन है। अरबाज खान और सोहेल खान का भी निर्देशक ने उम्दा प्रयोग किया है।


कास्टिंग डॉयरेक्टर पाखी ने बेहतरीन कलाकारों का चयन किया है। फिल्म के सभी कलाकारों को कम से कम मेकअप में पेश किया है। इससे वे हम जैसे ही लगते हैं। जयंत कृपलानी, किट्टू गिडवानी, अनुराधा पटेल जैसे भूले-बिसरे चेहरे भी इस फिल्म में दिखाई दिए हैं।

इमरान खान के व्यक्तित्व पर यह भूमिका बिलकुल फिट है। उनके पास न रफटफ लुक है, न ही मसल्स, लेकिन अपने सधे हुए अभिनय से उन्होंने बाँधकर रखा है। यह देखना रोचक होगा कि आगामी फिल्मों में वे अलग तरह की भूमिकाओं में जँचते हैं या नहीं।

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जेनेलिया का भविष्य उज्जवल है। साँवली-सलोनी जेनेलिया की आँखें और मुस्कान बहुत कुछ बोलती है। जेनेलिया की अभिनय क्षमता को देखते हुए निर्देशक ने उन्हें कई दृश्य ऐसे दिए हैं ‍जहाँ उन्हें बिना संवादों के अभिनय करना था।

ए.आर. रहमान का योगदान भी इस फिल्म में अहम है। उनके द्वारा संगीतबद्ध किए सारे गीत हिट हैं और लंबे समय तक डांस पार्टियों में धूम मचाएँगे। तकनीकी रूप से फिल्म सशक्त है।

कुल मिलाकर ‘जाने तू... या जाने ना’ को पसंद करने वालों की संख्या ज्यादा रहेगी।

***** अद्‍भुत **** शानदार *** बढि़या ** औसत * बेकार