ब्राजील-जर्मनी का मैच देखने के बाद अमिताभ बोले 'सत्यानाश'
जो लोग सोशल नेटवर्किंग साइट्स पर अमिताभ बच्चन को फॉलो करते हैं वे जानते हैं कि अभिनय के मैदान के इस माहिर खिलाड़ी को खेलों से खासा लगाव है। इस समय ब्राजील में फुटबॉल का विश्व कप चल रहा है और अमिताभ सेमीफाइनल और फाइनल देखने के लिए ब्राजील पहुंच गए। उनके साथ अभिषेक भी हैं जो खुद फुटबॉल के प्रशंसक हैं। बिग बी ने ब्राजील पहुंच कर वहां का वर्णन अपने ब्लॉग पर खूबसूरती के साथ किया है। पेश है बिग बी के ब्लॉग से चुनिंदा अंश : सूरज निकला होने के बावजूद ब्राज़ील की हवाएं कंपकपी का एहसास करा रही हैं। लेकिन स्टेडियम में पहुंचने के बाद यहां दर्शकों के बीच उत्साह के माहौल में वो गर्मी मौजूद है, जो हमें ठंड भूलने को मजबूर कर रही है।लेकिन अचानक आई बारिश ने मौसम को फिर बदल दिया... खैर फीफा प्रबंधन ने इन परेशानियों के लिए पहले ही सारे इंतज़ाम किए हैं। वीआईपी एन्क्लोज़र में अपनी कतार में प्रवेश करने के दौरान हमें रेन कोट दिए गए।यहां वीआईपी लाउंज किसी रंगीन शहर से कम नहीं है। कई तरह के स्वादिष्ट व्यंजन और शराब यहां परोसी जा रही है। मुझ जैसे शाकाहारी के लिए भी यहां कई वैराइटी के व्यंजन मौजूद हैं।खैर इस तरह की खेल समारोहों में जो चीज़ सबसे ज्यादा मेरा ध्यान आकर्षित करती है वह खेल नहीं बल्कि इनके दौरान आयोजित अन्य क्रियाकलाप हैं, जो खेल भावना को प्रगाढ़ कर एक नया संदेश देते हैं।शोरगुल और 70,000 लोगों की भीड़ के बीच दोनों टीमों के खिलाडि़यों का हाथ थामे नन्हें बच्चे जैसे इन खिलाड़ियों का मार्गदर्शन कर इन्हें मैदान में लेकर आते हैं। इन बच्चों को देखकर खिलाड़ियों के मन में अनोखी शांति और अनुशासन की भावना भर जाती है। वे सबकुछ भूलकर अपने राष्ट्र के लिए खेलने के लिए प्रेरित होते हैं। इसके बाद दोनों राष्ट्रों की राष्ट्रगान की धुनें बजाई जाती हैं। यह सब अद्भुत और अलौकिक अनुभव होता है। यह खेल भावना और मानवता का अनूठा संदेश देता है।सत्यानाश.. !!मेरे पास ब्राज़ील और जर्मनी के विश्वकप 2014 सेमीफाइनल मैच के बाद सिर्फ एक ही शब्द था। खैर इसके लिए मैं 7 जुलाई को रात्रि नौ बजे लंदन से निकला और ग्यारह घंटे की फ्लाइट के बाद साउ पाउलो पहुंचा। यहां अगस्त्या और अभिषेक पहले से मौजूद थे। यहां से कुछ मिनटों की यात्रा के बाद हमें बेलो होरिज़ोंटे पहुंचना था।बेलो पहुंचते-पहुंचते हम थक चुके थे लेकिन जैसे ही हम बेलो की सड़कों पर आएं, यहां मौजूद लोगों की भीड़, चहल-पहल, ब्राज़ील की जर्सी, बैंड बाजे, हैट, स्कार्फ आदि के बीच एक नई ऊर्जा का अनुभव हुआ।स्टेडियम में 58,000 लोग ब्राजील की हरी-पीली जर्सी की हौसला अफज़ाई में जुटे थे। लेकिन पहले 30 मिनट में ही जर्मनी ने गोल दाग दिया और भीड़ में जैसे सन्नाटा छा गया। सबकुछ चुप था... सन्नाटा था... अविश्वसनीय था.. और ब्राजील के चाहने वालों के लिए वह जख्म था जिसे भरा नहीं जा सकता.. ऐसा आश्चर्य मैंने शायद पहले महसूस नहीं किया था.. शायद किया भी था.. दिल्ली में 1982 के एशियन गेम्स के दौरान भारत और पाकिस्तान के हॉकी मैच के दौरान.. !!