रविवार, 29 सितम्बर 2024
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Written By दीपक असीम

डीके बोस के हिमायतियों से माफी सहित

डीके बोस के हिमायतियों से माफी सहित -
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हमारी भाषा रोजमर्रा के कामकाज तक हमारा साथ देती है, मगर किसी पर गुस्सा आ जाए या किसी से प्यार हो जाए तो भाषा चुकने लगती है। गुस्से में हमें सूझ नहीं पड़ता कि क्या कहें। सो गालियाँ देने लगते हैं और वो सब कहने लगते हैं, जो बेतुका हो, बेसिरपैर हो, असंभव हो, हास्यास्पद हो। गुस्से में हमारी भाषा साथ ही नहीं देती।

जब किसी से मुहब्बत हो जाए तो हम कविता करने लगते हैं। गीत दोहराने लगते हैं। गुनगुनाने लगते हैं। प्यार सहित ऐसी कई भावनाएँ हैं, जिन्हें व्यक्त करने में भाषा साथ नहीं देती। सही शब्दों के अभाव में कई गालियाँ हैं, जो रोजमर्रा की जिंदगी का हिस्सा बन गई हैं। ऐसे ही शब्दों को फिल्मी गीतों में लाया जा रहा है और उसके लिए तर्क भी दिए जा रहे हैं।

फिल्म "देल्ही बेली" का गीत "भाग डीके बोस" को जिस तरह से गाया जाता है, वो एक गाली बन जाता है। गाली भी आनुप्रासिक..."भाग डीके बोस डी के"। इसके पक्ष में कहा जा रहा है कि ये तो आम लोगों की जुबान है। इसका विरोध करने वाले मध्यमवर्गीय लोग हैं, जो पाखंडी होते हैं। आम लोगों की भाषा को ये वर्ग कबूल नहीं करता वगैरह-वगैरह।

आम लोगों के बीच तो बहुत से ऐसे शब्द प्रचलित हैं, जो डीके बोस से भी बहुत आगे तक जाते हैं। क्या सभी को गीतों में लाया जाएगा। डीके बोस के पक्षधर कहेंगे कि हाँ जी उसमें क्या हर्ज है। उपन्यासों के पात्र गालियाँ देते ही हैं, मगर आम लोगों की ये भाषा कोई आम आदमी उनके ड्राइंग रूम में उनके घर की महिलाओं के सामने बोले तो? तब शायद वे आम आदमी का मुँह बंद कर दें।

आम आदमी की भाषा को मान्यता देने में कोई दिक्कत किसी को भी नहीं है। मगर दिक्कत यह है कि गालियाँ ऐसी क्यों हैं? किसी से नाराज होने पर उसे गलत कहा जाए, ये तो समझ में आता है। पर उसे "डीके बोस" कहना क्या है? इस तरह तो आप सभी स्त्रियों को नीचा दिखाते हैं। माँ-बहन की गाली भी बेतुकी और महिलाओं के लिए अपमानजनक हैं।

किसी आदमी ने यदि कुछ गलत किया है, तो उसकी माँ-बहन को क्यों बीच में लाया जाए? उसी एक कृत्य को क्यों याद किया जाए? इन गालियों को इसलिए मान्यता नहीं मिलनी चाहिए कि ज्यादातर गालियाँ महिला विरोधी हैं। महिलाओं को एक वस्तु की तरह समझने वाली मानसिकता से आती हैं।

सामान्य आदमी की भाषा का फिल्मों में स्वागत होना चाहिए मगर गालियों का नहीं। सेंसर बोर्ड ने डीके बोस जैसे गीत को पास कर दिया है, सो उससे गलती हुई है। हमें उसे याद दिलाना था।