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Written By BBC Hindi
Last Updated :नई दिल्ली , बुधवार, 9 जुलाई 2014 (14:18 IST)

मेरे टिकट की कहानी

मेरे टिकट की कहानी -
आशुतोष चतुर्वेदी (नई दिल्ली से)

राष्ट्रमंडल खेलों की शुरुआत शानदार हुई और चिंताओं को जश्न ने जैसे धो दिया, लेकिन खाली खाली स्टेडियम जैसे मुँह चिढ़ा रहे हैं।

मैंने सोचा कि क्यों न टिकट खरीदकर परिवार के साथ खेलों का आनंद उठाया जाए, लेकिन भारी कोशिशों के बावजूद मैं कामयाब नहीं हो पाया।

सबसे पहले मैंने फोन किया फास्ट ट्रैक्स को जिन्हें सेंट्रल बैंक और हीरो होंडा शोरूम के साथ टिकट बेचने की ज़िम्मेदारी सौंपी गई है।

उन्होंने फोन पर ही हाथ खड़े कर दिए और जो कारण बताया वो समझ नहीं पाया कि क्रेडिट नहीं है, अगले दिन देखिएगा।

खैर मैंने सोचा क्यों न सेंट्रल बैंक जा धमकूँ जो खेलों के टिकट बेचने के लिए अधिकृत है और दिल्ली भर में इसकी अनेक शाखाएँ इसी काम में लगी हुईं हैं।

मैं पहुँच गया सेंट्रल बैंक की जीवनतारा बिल्डिंग स्थित मुख्य शाखा पर। वहाँ लंबी लाइन लगी हुई थी और देसी विदेशी कतार में खड़े थे। अगर आप इंटरनेट से टिकट बुक कराते हैं तो अपने पहचानपत्र के साथ टिकट लेने के लिए इसी शाखा पर आपको जाना होता है।

लंबी लाइन में खड़ा देख सेंट्रल बैंक के एक कर्मचारी ने सलाह दी कि अन्य शाखाओं में इतनी भीड़ नहीं है, वहाँ चले जाइए, नहीं तो शाम तक यहीं खड़े रहेंगे।

ज़ोर आजमाइश- उनकी सलाह मानकर अपन पहुँच गए घर के नजदीक पूर्वी दिल्ली की आनंद विहार स्थित सेंट्रल बैंक की शाखा पर। वहाँ बताया कि ऐसे टिकट नहीं मिलेगा। एक फॉर्म भरिए उसमें तारीख, खेल का कोड और कितने रुपए वाला टिकट चाहिए, कितने टिकट चाहिए, ये सब भरिए। साथ में पहचानपत्र की एक फोटोकॉपी लगाइए और तब लाइन में आइए।

अपन ये सब जुगाड़ कर फिर पहुँच गए, तो पता चला कि बैंक का सर्वर दोपहर से डाउन है और लाइन में खड़े लोग दोपहर से इसी बात के इंतजार में लाइन में खड़े हैं कि ये सर्वर चालू हो तो उन्हें टिकट मिले।

दो घंटे लाइन में खड़े होने के बाद बैंक के कर्मचारियों ने सलाह दी कि भीड़ न बढ़ाएँ, देर शाम आइए, बैंक की शाखा रात आठ बजे तक टिकट के लिए खुली है। साथ ही उन्होंने सलाह दी कि सर्वर चालू हो गया तो आप टिकट पा जाएँगे, नहीं तो अगले दिन भाग्य आजमाएँ।

मैं इस सारी प्रक्रिया से इतना थक चुका था कि मैंने फिर कभी भाग्य आजमाना ज्यादा मुनासिब समझा।