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Written By BBC Hindi
Last Modified: शुक्रवार, 9 जुलाई 2021 (07:42 IST)

योगी आदित्यनाथ का ओवैसी को बड़ा नेता बताना, क्या मुसलमान वोट है निशाना?

योगी आदित्यनाथ का ओवैसी को बड़ा नेता बताना, क्या मुसलमान वोट है निशाना? - Yogi Adityanath, Owaisi and UP politics
वात्सल्य राय, बीबीसी संवाददाता
उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ अगले साल राज्य विधानसभा चुनाव में भारतीय जनता पार्टी का चेहरा होंगे। बीजेपी के प्रदेश अध्यक्ष स्वतंत्र देव सिंह इसका एलान कर चुके हैं। पार्टी के कई दूसरे नेताओं ने भी इसे दोहराया है। लेकिन, योगी आदित्यनाथ के मुक़ाबले विपक्ष की ओर से सबसे मज़बूत चुनौती कौन पेश करेगा?
 
साल 2017 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस के साथ और साल 2019 के लोकसभा चुनाव में बहुजन समाज पार्टी के साथ गठजोड़ बनाकर उतरी समाजवादी पार्टी के पास विपक्षी दलों में सबसे ज़्यादा विधायक हैं।
 
समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष और पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव को उनकी पार्टी मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के मुक़ाबले पेश कर रही है। बसपा की ओर से मायावती स्वाभाविक दावेदार हैं और कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष अजय कुमार लल्लू कह चुके हैं कि उनकी पार्टी प्रियंका गांधी की 'देखरेख' में चुनाव लड़ेगी।
 
लेकिन, योगी आदित्यनाथ अपने कार्यकर्ताओं को उत्साहित करने के लिए विपक्ष के जिस चेहरे की बात कर रहे हैं, वो इनमें से कोई नहीं है। योगी आदित्यनाथ ने हाल में ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन (एआईएमआईएम) के नेता असदुद्दीन ओवैसी का 'चैलेंज स्वीकार किया है।' और एक ही झटके में ओवैसी को अपने मुक़ाबले खड़ा कर लिया है।
 
योगी आदित्यनाथ ने कहा, "ओवैसी जी देश के बड़े नेता हैं और देश के अंदर प्रचार में जाते हैं। उनका अपना एक जनाधार है। अगर उन्होंने भारतीय जनता पार्टी को चैलेंज किया है तो भारतीय जनता पार्टी का कार्यकर्ता उनका चैलेंज स्वीकार करता है। भारतीय जनता पार्टी की सरकार बनेगी। (इसमें) कोई संदेह नहीं होना चाहिए।"
 
योगी आदित्यनाथ का ये बयान ओवैसी की चुनौती के जवाब में आया था। ओवैसी ने कहा था कि वो 'योगी आदित्यनाथ को दोबारा उत्तर प्रदेश का मुख्यमंत्री नहीं बनने देंगे।'
 
उत्तर प्रदेश में अपने लिए राजनीतिक धरातल तलाश रही पार्टी एआईएमआईएम के मुखिया ओवैसी के बयान पर शायद ही किसी को हैरानी हुई होगी। राष्ट्रीय स्तर पर उनकी पहचान ऐसे बयान देने से ही बनी है लेकिन, इस संभावित 'टक्कर' को लेकर सवाल तब उठने शुरू हुए, जब योगी आदित्यानाथ ने ओवैसी को 'बड़ा नेता' बताया।
 
ओवैसी की पार्टी में कितना दम
ओवैसी और उनकी पार्टी तेलंगाना के एक इलाक़े में असर रखती है। लेकिन वहाँ भी 2018 के विधानसभा चुनाव में उनके सिर्फ़ सात उम्मीदवारों को जीत मिली। 2019 के लोकसभा चुनाव में ओवैसी हैदराबाद से जीते और उनके दूसरे सांसद सैयद इम्तियाज़ जलील महाराष्ट्र के औरंगाबाद से जीते। उत्तर प्रदेश में तो इस पार्टी का अभी इतना असर भी नहीं दिखा है।
 
साल 2017 के विधानसभा चुनाव में ओवैसी की पार्टी ने उत्तर प्रदेश में 38 उम्मीदवारों को मैदान में उतारा था। इनमें से 37 अपनी ज़मानत तक नहीं बचा पाए थे। इन 38 सीटों पर एआईएमआईएम को सिर्फ़ 2.46 फ़ीसदी वोट मिला था। वहीं, 384 सीटों पर उम्मीदवार खड़ा करने वाली भारतीय जनता पार्टी ने 41.57 फ़ीसदी वोट हासिल किए थे।
 
क्या है वजह?
ऐसे में सवाल ये उठा कि आख़िर योगी आदित्यनाथ क्यों ओवैसी को बड़ा नेता बता रहे हैं? इसका जवाब भारतीय जनता पार्टी की राजनीति पर नज़र रखने वाले वरिष्ठ पत्रकार प्रदीप सिंह देते हैं।
 
प्रदीप सिंह कहते हैं, "बीजेपी को ये मालूम है कि किसी भी हालत में मुस्लिम वोट उनको नहीं मिलने वाला है। उसकी कोशिश ये रहती है कि उस मुस्लिम वोट बैंक में डिवीजन हो। जिससे उसको फ़ायदा मिले। उत्तर प्रदेश में अभी तक होता ये रहा है कि वोटों का बँटवारा बसपा और सपा में होता था। अभी जो स्थिति बनी है, उसमें लग रहा है कि समाजवादी पार्टी को एकमुश्त मुस्लिम वोट मिलेगा। ये बात बीजेपी समझ रही है। ऐसें में (वोट) डिवाइड करने वाला फ़ैक्टर ओवैसी बन सकते हैं तो ओवैसी को अगर बड़ा करके दिखाएँगे तो मुस्लिम मतदाताओं में कन्फ्यूजन हो सकता है।"
 
प्रदीप सिंह की राय में बीजेपी यही करना चाहती है। वो कहते हैं, "योगी आदित्यनाथ, ओवैसी को सपा के वोट बैंक के ख़िलाफ़ खड़ा करना चाहते हैं।"
 
उत्तर प्रदेश में मुसलमान वोटरों की संख्या क़रीब 19 फ़ीसदी है। 100 से ज़्यादा सीटों पर वो हार-जीत तय करने की स्थिति में बताए जाते हैं। लेकिन बीजेपी ये देख चुकी है कि मुसलमान वोट बँटने पर उसे फ़ायदा होता है।
 
मुसलमानों के वोट बँटे तो...
साल 2017 के विधानसभा चुनाव में बहुजन समाज पार्टी ने 97 मुसलमान उम्मीदवार उतारे थे, जबकि समाजवादी पार्टी ने 67 मुसलमानों को टिकट दी थी। लेकिन विधानसभा में सिर्फ़ 24 मुसलमान विधायक पहुँच सके। मुसलमान वोटरों की बहुलता वाली देवबंद सीट पर भी बीजेपी जीत हासिल करने में कामयाब रही।
 
उत्तर प्रदेश की राजनीति पर लंबे वक़्त से करीबी नज़र रखने वाले वरिष्ठ पत्रकार शरत प्रधान भी कहते हैं कि ओवैसी के उम्मीदवार उत्तर प्रदेश में जहाँ भी चुनाव लड़ेंगे, वहाँ बीजेपी को फ़ायदा हो सकता है।
 
शरत प्रधान कहते हैं, "ये कहा जाता है कि ओवैसी बीजेपी की मदद करते हैं। वहीं, ओवैसी कहते तो यही हैं कि उनका इस तरह का इंटेंशन नहीं है लेकिन वो उत्तर प्रदेश में जो भी करेंगे, जिस तरह का वो प्लान कर रहे हैं 100 सीट लड़ने का, उसका इनडायरेक्ट बेनिफिट बीजेपी को ही मिलेगा। मुझे लगता है, चाहे ये प्लान्ड तरीक़े से हो रहा या बिना प्लान के, उसका नतीजा यही होगा।"
 
शरत प्रधान अपनी बात के समर्थन में बीते साल हुए बिहार विधानसभा चुनाव का ज़िक्र करते हैं।
 
वो कहते हैं, "बिहार में जिस तरह से इन्होंने पाँच सीटें जीत लीं, वहाँ इन्हें पैर जमाने के लिए ग्राउंड मिल गया पहली बार, लेकिन उससे क्या हुआ, बीजेपी की सरकार बन गई। मेरा तो पुरजोर तरीक़े से मानना है कि आरजेडी (राष्ट्रीय जनता दल) जिस तरह से बढ़ रही थी, अगर ये नहीं होते तो तेजस्वी (यादव) की सरकार बन गई होती। "
 
ओवैसी की पार्टी ने बिहार में बहुजन समाज पार्टी समेत छह दलों के गठबंधन के साथ मिलकर चुनाव लड़ा था। मैदान में कुल 20 उम्मीदवार उतारे थे और पाँच पर जीत हासिल करने में कामयाब रहे थे।
 
उत्तर प्रदेश में उन्होंने ओम प्रकाश राजभर की 'सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी' के साथ मिलकर 'भागीदारी संकल्प मोर्चा' बनाया है और 100 सीटों पर उम्मीदवार उतारने का एलान किया है। राजभर के मुताबिक़ गठजोड़ की ओर से मुख्यमंत्री पद के पाँच दावेदारों में से एक ओवैसी भी हैं।
 
'सफल रणनीति'
प्रदीप सिंह इसे भी ओवैसी की उम्दा रणनीति बता रहे हैं। वो कहते हैं कि अगर ओवैसी इसी पर अमल करते हैं, तो बीजेपी को भी इसका फ़ायदा मिल सकता है।
 
प्रदीप सिंह कहते हैं, "वो 100 सीट लड़ रहे हैं, ये ज़्यादा अच्छी बात है, उनके पास 400 कैंडिडेट नहीं हैं। अगर वो मुस्लिम बहुल इलाक़ों पर ही ध्यान लगाते हैं तो उनका भी काम आसान हो सकता है और बीजेपी का भी काम आसान हो सकता है। इसमें दोनों का फ़ायदा है। बीजेपी ये सोची-समझी रणनीति के तौर पर कर रही है, उनको बड़ा नेता इसीलिए कहा जा रहा है कि मुसलमानों का एक सेक्शन उनकी ओर मुड़े।"
 
वो दावा करते हैं कि मुसलमान पार्टी देखकर नहीं बल्कि ये आंकलन करने के बाद वोट देते हैं कि 'बीजेपी को कौन सा उम्मीदवार हरा सकता है और बीजेपी इसे लेकर ही भ्रम की स्थिति बनाना चाहती है।'
 
इसी बात को शरत प्रधान आगे बढ़ाते हैं। वो कहते हैं, "ओवैसी बड़े अच्छे ऑरेटर हैं। बोलते बहुत बढ़िया हैं। मेरी उनसे बात भी हुई है। वो कहते हैं कि आज तक किसी पार्टी ने मुसलमानों का भला नहीं किया। तो हमने पूछा कि आप हैदराबाद से आके क्या कर लोगे भाई। तो वो बोले हम उनके लिए लड़ेंगे। उनके साथ बड़ी ज़्यादती हो रही है। उनको लगता है कि मुस्लिम पॉलिटिक्स करके यूपी में पैर पसारने का मौक़ा मिल जाए। लेकिन आख़िर में होता ये है कि वो वोट काटते ज़्यादा हैं और पाते कम हैं।"
 
आसान नहीं राह
हालाँकि, हाल में पश्चिम बंगाल विधानसभा चुनाव में ओवैसी की पार्टी कोई असर छोड़ने में कामयाब नहीं रही थी।
 
ऐसे में क्या उत्तर प्रदेश के वोटर उन्हें 'बड़ा नेता' और उनकी पार्टी को 'बड़ी पार्टी' मानेंगे, इस सवाल पर प्रदीप सिंह कहते हैं, "सवाल ये है कि उत्तर प्रदेश की जनता नहीं बल्कि मुसलमान उन्हें कितना बड़ा नेता मान रहे हैं, अगर मुसलमान ये मानता है कि ये दरअसल समाजवादी पार्टी और बीजेपी विरोधियों का खेल बिगाड़ने के लिए आए हैं, तो वो ज़ीरो हो जाएँगे। लेकिन अगर ये लगेगा कि अपने समुदाय से एक पार्टी खड़ी होने जा रही है और हमेशा सपा पर निर्भर क्यों रहें, तो उन्हें फ़ायदा हो जाएगा।"
 
लेकिन फ़िलहाल प्रदीप सिंह को लगता है कि ओवैसी के लिए ऐसा करना आसान नहीं होगा।
 
वो कहते हैं, "मुझे नहीं लगता कि ओवैसी की पार्टी को कुछ मिलने वाला है। कोई स्थानीय मज़बूत उम्मीदवार होगा, उस नाते वो पाँच हज़ार, सात हज़ार, तीन हज़ार वोट ले ले, तो बड़ी बात होगी। नहीं तो मुझे लगता है कि ज़्यादातर जगहों पर, 90 प्रतिशत से ज़्यादा सीटों पर उनकी ज़मानत भी बच जाए तो बड़ी बात होगी। "
 
शरत प्रधान भी कहते हैं कि भले ही ओवैसी का युवाओं पर अच्छा असर दिखता हो, लेकिन उत्तर प्रदेश में राजनीतिक रास्ते का विस्तार उनके लिए आसान नहीं होगा।
 
वो कहते हैं, "देखिए, सबको मालूम है कि इस बार जिस तरीक़े से टारगेट किया गया है मुस्लिम कम्युनिटी को, आज मोहन भागवत चाहे कुछ भी बोल रहे हों, मुस्लिम वोट एकजुट होकर एकतरफ़ जाएगा, जो भी सबसे मज़बूत कैंडिडेट होगा, बीजेपी के ख़िलाफ़ उसके पास। मुझे तो लगता है कि अभी जो हालात हैं, उसमें मुख्य लड़ाई समजावादी पार्टी के साथ है।"
 
हालाँकि, अभी चुनाव में छह महीने से ज़्यादा वक़्त बाक़ी है और राजनीति की प्रयोगशाला में समीकरण बदलने के लिए इतना समय कम नहीं होता। ओवैसी भी शायद इसी सोच के साथ उत्तर प्रदेश आए हैं और प्रदीप सिंह भी कहते हैं, "उम्मीद पर दुनिया क़ायम है।"
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