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Written By BBC Hindi
Last Modified: रविवार, 31 अक्टूबर 2021 (13:53 IST)

चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग जी-20 सम्मेलन में क्यों नहीं गए?

चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग जी-20 सम्मेलन में क्यों नहीं गए? - Why did Chinese President Xi Jinping not attend the G20 summit
भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी कोरोनावायरस (Coronavirus) कोविड-19 की दूसरी लहर धीमी पड़ने के बाद इस साल सितंबर महीने में लंबे अंतराल के बाद संयुक्त राष्ट्र की आमसभा को संबोधित करने न्यूयॉर्क गए थे, लेकिन चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग नहीं गए।

अभी इटली के रोम में जी-20 सम्मेलन चल रहा है और चीनी राष्ट्रपति इसमें भी नहीं गए। ब्रिक्स की बैठक इस बार भारत में होनी थी लेकिन वो भी वर्चुअल ही हुई। एसएसीओ की बैठक में भी चीनी राष्ट्रपति दुशांबे नहीं गए थे। ऐसा करने वाले केवल शी जिनपिंग ही नहीं हैं बल्कि रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन भी इन बैठकों में ख़ुद नहीं गए।

इटली की राजधानी रोम में हो रहे जी20 सम्मेलन में दुनिया के कई बड़े नेता जलवायु परिवर्तन, वैश्विक कर की दरें, आपूर्ति में रुकावट और वैश्विक टीकाकरण जैसे मसलों पर चर्चा कर रहे हैं। लेकिन इस बीच चर्चा उन नेताओं की भी है जो ना तो जी20 सम्मेलन में मौजूद हैं और ना ही ग्लासगो में होने वाले जलवायु परिवर्तन सम्मेलन (कोप26) में हिस्सा लेने वाले हैं।

ये वैश्विक नेता हैं चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग, रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन और जापान के प्रधानमंत्री फूमियो किशिदा और मैक्सिको के राष्ट्रपति एंद्रेस मैनुअल लोपेज़ ओब्रेदोर। इन नेताओं में सबसे ज़्यादा चर्चा चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग की अनुपस्थिति को लेकर है। जलवायु परिवर्तन सम्मेलन में कार्बन उत्सर्जन को कम करने के लक्ष्य में चीन की भूमिका और अमेरिका से टकराव जैसे मसले चीनी राष्ट्रपति की ग़ैरमौजूदगी को अहम बना देते हैं।

शी जिनपिंग जी20 सम्मेलन में ऐसे वक़्त पर शामिल नहीं हो रहे हैं, जब इसमें शामिल देशों से चीन के रिश्तों में तनाव बना हुआ है। अमेरिका और ऑस्ट्रेलिया से चीन के रिश्ते ख़राब दौर में हैं और ब्रिटेन, कनाडा और यूरोपीय देशों से संबंधों में समस्याएं बनी हुई हैं।

21 महीनों से रुके हैं विदेशी दौरे
बात केवल जी20 सम्मेलन और कोप26 तक सीमित नहीं है बल्कि चीनी राष्ट्रपति की विदेशी यात्राओं में पहले के मुक़ाबले बहुत कमी देखी गई है। शी जिनपिंग पिछले 21 महीनों से चीन से बाहर नहीं गए हैं। अमेरिकी अख़बार न्यूयॉर्क टाइम्स ने भी इसे लेकर एक रिपोर्ट प्रकाशित की है।

कोरोनावायरस महामारी को इसकी वजह बताया जा रहा है। हालांकि साफ़तौर पर ऐसा नहीं कहा गया है। इसे चीन की विदेशी और घरेलू नीति में बड़े बदलाव का संकेत भी माना जा रहा है। लेकिन वैश्विक नेता बनने की चाह रखने वाले एक देश के सर्वोच्च नेता की विदेशी मंचों पर ग़ैरमौजूदगी का क्या प्रभाव हो सकता है? आख़िर चीन अपने राजनयिक हितों को किस तरह साध रहा है।

वैश्विक नेता बनने की कोशिशों को नुक़सान
चीन के अमेरिका और उसके सहयोगियों के साथ संबंध अच्छी स्थिति में नहीं हैं। अमेरिका ने चीन के दबदबे को कम करने के लिए क्वॉड और ऑकस जैसे समूह बनाए हैं, जिन्हें लेकर चीन आपत्ति दर्ज कराता रहा है। ऐसे में शी जिनपिंग के नेतृत्व में चीन अमेरिका और उसके सहयोगी देशों से बहुत ज़्यादा सहयोग करने का इच्छुक नहीं दिखता है।

जानकारों का मानना है कि शी जिनपिंग की वैश्विक मंचों से अनुपस्थिति उनकी वैश्विक नेता के तौर पर अमेरिका का विकल्प बनने की कोशिशों को भी नुक़सान पहुंचाया है। इसका कई देशों के साथ चीन के संबंधों पर भी असर पड़ा है।

शी जिनपिंग का स्वास्थ्य हो या आंतरिकी राजनीति चीन का ध्यान अंदरूनी मसलों पर ज़्यादा बना हुआ है। इसमें कम्युनिस्ट पार्टी की अगले साल होने वाली बैठक भी शामिल है, जिसमें शी जिनपिंग अगले पांच सालों के लिए देश के नेता चुने जा सकते हैं। ऐसे में नेताओं के आमने-सामने मिलने से बनने वाले राजनयिक संबंध उस तरह प्राथमिकता नहीं हैं, जिस तरह शी जिनपिंग के कार्यकाल के पहले साल में थे।

एक साल पहले चीन ने यूरोपीय संघ के साथ एक निवेश समझौते के लिए रियायतें दी थीं ताकि राजनीतिक प्रतिबंधों के कारण रुकी हुए समझौते को पूरा किया जा सके। इस क़दम से अमेरिका की परेशानी बढ़ गई थी।लेकिन इसके बाद चीन ने यूरोप में यूरोपीय नेताओं के साथ शी जिनपिंग की मुलाक़ात के न्योते को स्वीकार नहीं किया।

बर्लिन में मेरकेटर इंस्टीट्यूट ऑफ चाइना स्टडीज़ में सीनियर एनालिस्ट हेलेना लेगार्डा ने द न्यूयॉर्क टाइम्स से कहा, चीन के इस रवैए से शीर्ष स्तर पर नेताओं से मुलाक़ात के मौक़े कम हो जाएंगे। व्यक्तिगत तौर पर हुई बैठकें अक्सर किसी समझौते में आ रही मुश्किलों या रिश्तों में तनाव को कम करने में कारगर साबित होती हैं। रोम और ग्लासगो में शी जिनपिंग के न होने से कोरोना महामारी से निकलने की तैयारियों और जलवायु परिवर्तन से लड़ाई जैसे मुद्दों पर होने वाली प्रगति भी प्रभावित होगी।

वहीं अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडन ने चीन के साथ तनाव के मसलों को अलग रखते हुए जलवायु परिवर्तन जैसे मुद्दों पर शी जिनपिंग से अलग से मुलाक़ात करने की इच्छ ज़ाहिर की थी। हालांकि दोनों नेताओं ने इस साल के अंत तक वर्चुअल समिट के लिए सहमति जताई है लेकिन कोई तारीख़ घोषित नहीं की गई है।

बहुराष्ट्रीय व्यवस्था के संरक्षक और बंद सीमाएं
पांच साल पहले दावोस में वैश्विक आर्थिक मंच की बैठक में शी जिनपिंग ने ख़ुद को बहुराष्ट्रीय व्यवस्था के संरक्षक के तौर पर प्रस्तुत किया था, जबकि पूर्व अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने 'अमेरिका फर्स्ट' की नीति पर ज़ोर दिया था। लेकिन जानकार मानते हैं कि अपनी सीमाएं बंद रखकर ख़ासतौर पर कोविड-19 के चलते, चीन वैश्विक स्तर पर ऐसी भूमिका नहीं निभा सकता। विदेश यात्रियों के चीन में प्रवेश को लेकर सख़्त नियम बनाए गए हैं।

न्यूयॉर्क टाइम्स ने लिखा है, समस्या ये भी है कि अगर शी जिनपिंग चीन से बाहर जाते हैं तो उन्हें भी वापस आने पर चीन के कोविड नियमों का पालन करना होगा वरना उन्हें ख़ुद को नियमों से ऊपर रखने को लेकर आलोचना झेलनी पड़ सकती है।

चीन की फ़ोन डिप्लोमैसी
भले ही राष्ट्रपति शी जिनपिंग देश से बाहर न जा रहे हों लेकिन चीन ने राजनयिक संबंध को बेहतर करने की कोशिशें नहीं छोड़ी हैं। चीन ने तालिबान के साथ बातचीत को लेकर रूस और पाकिस्तान के साथ अहम भूमिका निभाई है। वह अब भी तालिबान के संबंधों को लेकर सक्रिय दिख रहा है।

राष्ट्रपति जिनपिंग ने यूरोपीय नेताओं के साथ कई कॉन्फ्रेंस कॉल की हैं जिनमें जर्मनी की चांसलर एंगला मर्केल और फ्रांस के राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रों और ब्रिटेन के प्रधानमंत्री बोरिस जॉनसन शामिल हैं। चीन के विदेश मंत्री वांग यी जी20 सम्मेलन में मौजूद हैं और शी जिनिपंग ने भी वीडियो के ज़रिए सम्मेलन को संबोधित किया था।

साउथ चाइन मॉर्निंग पोस्ट ने यूरोपीय संघ के एक अधिकारी के हवाले से लिखा है कि उन्हें नहीं लगता कि शी जिनपिंग की अनुपस्थिति कोयले के इस्तेमाल, वैक्सीन का वितरण, वैश्विक कॉर्पोरेट टैक्स और ऊर्जा की बढ़ती क़ीमतों जैसे मसलों पर समझौतों की संभावना को प्रभावित करेगी। अधिकारी ने कहा, चीन और रूस दोनों देशों से बातचीत के लिए एक बेहतरीन टीम भेजी गई है। वो बहुत सक्रिय हैं, कई प्रस्ताव लेकर आए हैं और बढ़चढ़कर हिस्सा ले रहे हैं।

जी20 सम्मेलन में शामिल होने से पहले चीन के विदेश मंत्री वांग यी ने जानकारी दी थी कि राष्ट्रपति शी जिनपिंग वीडियो लिंक के ज़रिए जी20 सम्मेलन में शामिल होंगे। वो खुद चीनी राष्ट्रपति के विशेष प्रतिनिधि के तौर पर सम्मेलन में शामिल होंगे।

वांग यी ने जी20 सम्मेलन से चीन की उम्मीदों को लेकर कहा था, अंतरराष्ट्रीय आर्थिक सहयोग के प्राथमिक मंच के तौर पर जी20 को बहुपक्षवाद का पालन करना चाहिए और एकजुटता व सहयोग की भावना को बनाए रखना चाहिए। चीन एक सफल रोम शिखर सम्मेलन के लिए सभी पक्षों के साथ काम करने के लिए तैयार है ताकि जल्द से जल्द वैश्विक स्तर पर कोविड-19 पर जीत हासिल करने और वैश्विक अर्थव्यवस्था के संतुलित सुधार और विकास में योगदान दिया जा सके।

कोरोना से पहले कई विदेशी दौर
शी जिनपिंग के विदेशी दौरों की बात करें तो कोरोना महामारी से पहले स्थिति बिल्कुल अलग रही थी। उन्होंने विदेशी दौरों के मामले में पूर्व अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा और डोनाल्ड ट्रंप को भी पीछे छोड़ दिया था।कोविड से पहले के सालों में शी जिनपिंग ने सलाना 14 देशों की यात्रा की और विदेशों में औसतन 34 दिन बिताए, जबकि बराक ओबामा का औसत 25 दिन और डोनाल्ड ट्रंप का औसत 23 दिन रहा है। वुहान में लॉकडाउन से पहले जनवरी 2020 में ही शी जिनपिंग ने म्यांमार की यात्रा की थी।

हालांकि अब कोविड-19 को लेकर कई देश नियमों में ढील देने लगे हैं और एक बड़ी आबादी वैक्सीनेट हो चुकी है। अब देखना ये है कि आने वाले समय चीन में कोविड नियमों में नरमी आने पर शी जिनपिंग विदेशी यात्राओं को कितना महत्व देते हैं और वैश्विक स्तर पर क्या भूमिका निभाते हैं।
कॉपी : कमलेश
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