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Written By BBC Hindi
Last Updated : सोमवार, 22 मार्च 2021 (11:35 IST)

पश्चिम बंगाल विधानसभा चुनाव 2021: राजनीतिक दलों से क्यों नाउम्मीद हो रहे हैं बंगाली नौजवान?

पश्चिम बंगाल विधानसभा चुनाव 2021: राजनीतिक दलों से क्यों नाउम्मीद हो रहे हैं बंगाली नौजवान? - Why Bengal youth are not expecting political parties in Bengal elections
सलमान रावी (बीबीसी संवाददाता)
 
पश्चिम बंगाल में हो रहे विधानसभा के चुनाव कई मायनों में अलग हैं। इस बार हिंसा और प्रचार के गिरते स्तर की वजह से मुख्य मुद्दे नदारद होते नज़र आ रहे हैं। यही वजह है कि मौजूदा युवा पीढ़ी, जिनका किसी राजनीतिक दल से संबंध नहीं है, उन्हें इससे निराशा हो रही है। पिछले कुछ सालों से शैक्षणिक संस्थाएं भी राजनीतिक दलों के निशाने पर ही रहीं हैं - चाहे वो कोई भी दल हो। इस कारण युवा सार्वजनिक रूप से अपने मन की बात करने से भी कतराते हैं।
 
कोलकाता में पढने वाले छात्रों को लगता है कि राज्य और केंद्र सरकारों ने शिक्षा और उच्च शिक्षा को लेकर अपनी अलग-अलग नीतियां बनाई हैं, लेकिन उनका लाभ छात्रों को ज़्यादा नहीं मिल पाता है। अरिथ्रो, इंजीनियरिंग के छात्र हैं और उन्हें लगता है कि लगातार शोध और उच्च शिक्षा के बजट में कटौती होती चली जा रही है। उन्हें लगता है कि युवाओं और छात्रों के मुद्दे राजनीतिक दलों के एजेंडे से बाहर ही रहते हैं। अरिथ्रो कहते हैं, 'छात्र अपने भविष्य को लेकर चिंतित हैं। छात्रवृति, नए रोज़गार के अवसर और बेहतर उच्च शिक्षा से जैसे राजनीतिक दलों का कोई लेना देना नहीं है।'
 
कम हो रही हैं सरकारी नौकरियां
 
अरिथ्रो का इशारा इस ओर था कि जब 2011 में तृणमूल कांग्रेस चुनाव प्रचार कर रही थी तो उसने राज्य में 10 लाख नए रोज़गार देने का वायदा किया था। फिर 2016 में उन्होंने 5 लाख नए रोज़गार का वादा किया। लेकिन पश्चिम बंगाल की सरकारी वेबसाइट के अनुसार पिछले कुछ सालों में 2 लाख सरकारी नौकरियां ही ख़त्म हो गईं और उनकी जगह पर संविदा पर लोगों को रखा जाने लगा। सरकार, जो इन नौकरियों पर हर साल लगभग 4000 करोड़ रुपए खर्च करती थी अब 2000 करोड़ के आस पास कर रही है।
 
अरिंदम भी जाधवपुर विश्वविद्यालय में पढ़ते हैं और उनकी भी यही सबसे बड़ी चिंता है कि जब मौजूदा सरकारी नौकरियों के पद ही ख़त्म हो रहे हैं तो नई पीढ़ी को आने वाले दिनों में रोज़गार कहां मिल पाएगा? इसी साल मार्च महीने में 'सेंटर फॉर मॉनिटरिंग इंडियन इकॉनमी' यानी 'सीएमआईई' की रिपोर्ट के अनुसार पश्चिम बंगाल में बेरोज़गारी की दर 6.2 प्रतिशत है जबकि राष्ट्रीय औसत 6।5 प्रतिशत है। यानी ये राष्ट्रीय औसत से थोड़ा कम है।
 
पश्चिम बंगाल में 68 प्रतिशत भूमि पर कृषि होती है जबकि उद्योगों के लिय सिर्फ 18 प्रतिशत भूमि ही उपलब्ध है। इस लिए राज्य के वित्त मंत्री अमित मित्र कहते हैं कि सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यमों की वजह से ही नए रोज़गार के अवसर मिल सके और पश्चिम बंगाल इसको लेकर देश में उद्धरण बन गया है।
 
बेरोज़गारी के सवाल पर विपक्षी दलों ने तृणमूल कांग्रेस को इस बार के प्रचार अभियान में घेरने की कोशिश की, ये आरोप लगाते हुए कि इस राज्य में बेरोज़गारी बहुत ज़्यादा बढ़ी है। 'सेंटर फॉर मोनिटरिंग इंडियन इकॉनमी' यानी 'सीएमआईई' की रिपोर्ट में ये भी कहा गया है कि बेरोज़गारी का जहां तक सवाल है तो पश्चिम बंगाल से भी खराब हालात बिहार, झारखण्ड और दिल्ली जैसे राज्यों के हैं।
 
पश्चिम बंगाल के युवक कॉलेज में पहुंचने के बाद राजनीतिक दलों के छात्र संगठनों से जुड़ जाते हैं। मगर इस दौरान ये दल उनका इस्तेमाल वोट हासिल करने के लिए माहौल बनाने में करते रहे हैं। युवाओं ने राजनीति में बढ़ चढ़ कर हिस्सा लिया है। कई विधानसभा और लोकसभा के चुनावी नतीजे इस बात का संकेत देते हैं कि अलग अलग समय में युवाओं का रुझान एकमुश्त किसी ख़ास राजनीतिक दल की तरफ रहा है।
 
विश्लेषक कहते हैं कि वर्ष 2011 से पहले तक वाम दलों की तरफ़ युवाओं का खिंचाव ज़्यादा रहा जिन्होंने बढ़-चढ़ कर वाम दलों की सदस्यता भी ली और उनके पक्ष में मतदान भी किया। पिछले दो विधानसभा के चुनावों के नतीजे बताते हैं कि युवाओं का एक बड़ा तबक़ा वाम दलों से हट कर तृणमूल कांग्रेस के वायदों की तरफ़ आकर्षित होने लगा। इसके परिणाम स्वरूप तृणमूल कांग्रेस ने वाम दलों और दूसरे दलों को हाशिये पर कर दिया। पश्चिम बंगाल की आबादी दस करोड़ के आसपास है जिसमें से 50 प्रतिशत 18 से 35 साल के आयु वाले नौजवान हैं। इस बार 20.5 लाख नए वोटर हैं, जो 18 साल के हुए हैं।
 
राजनीतिक विश्लेषक निर्माल्य मुख़र्जी कहते हैं कि वर्ष 2016 में हुए विधानसभा के चुनावों में तृणमूल कांग्रेस का वोट प्रतिशत 45 के आस पास था जबकि भारतीय जनता पार्टी का 41। उनका कहना है कि तृणमूल कांग्रेस और वाम दलों को युवाओं के अच्छे खासे वोट मिले थे। तृणमूल कांग्रेस के आधे से ज्यादा वोट युवाओं के ही थे। यही देखते हुए इस बार तृणमूल कांग्रेस ने 74 मौजूदा विधायकों को टिकट नहीं दिया है और उनके स्थान पर युवाओं को चुनावी मैदान में उतारा है। राजनीतिक दलों की अगर बात की जाए तो युवाओं को चुनाव में सीटें देने की नीति सिर्फ वाम दलों के पास ही है जो कहती है कि 60 प्रतिशत टिकट 40 साल या उस से कम उम्र वालों को दिए जाएं। 2016 के विधानसभा के चुनावों की तुलना में वर्ष 2019 में हुए लोक सभा के चुनावों में भारतीय जनता पार्टी का मत प्रतिशत 41 से बढ़कर 44 ज़रूर हुआ, लेकिन युवाओं के एक बड़े धड़े ने इस लहर में भी तृणमूल कांग्रेस को वोट देना ही बेहतर समझा।
 
निर्माल्य मुख़र्जी के अनुसार ममता बनर्जी ने वर्ष 2011 में युवाओं के लिए दस लाख नौकरियों का वायदा किया था। इसी वजह से उन चुनावों में युवाओं ने बढ़ चढ़ कर तृणमूल कांग्रेस को वोट दिया थे। 2019 में युवा पीढ़ी का बड़ा हिस्सा भारतीय जनता पार्टी की तरफ आकर्षित हुआ जिसका परिणाम चुनावी नतीजों पर साफ़ तौर पर झलकता है।
 
उनका कहना है, 'बेरोज़गारी को लेकर अलग-अलग दावे हैं और सही मायनों में कोई स्पष्ट तस्वीर सामने नहीं आ रही है। जो सरकार आंकड़े पेश कर रही है उसका आधार क्या है? ये बहस का विषय ही है। इस बार अपने घोषणा पत्र में फिर से तृणमूल कांग्रेस ने युवाओं को 10 लाख रुपए तक का क्रेडिट कार्ड देने का वादा किया है जिस पर सिर्फ 4 प्रतिशत ब्याज होगा। उसी तरह हर घर में बेरोजगारों को पांच सौ रूपए देने का वादा भी किया गया है। मगर पिछले वादों पर तो विवाद और बहस जारी ही है।'
 
तृणमूल कांग्रेस का दावा है कि उसके शासन काल में सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यम को बहुत बढ़ावा दिया गया है जिसमे शिक्षित बेरोजगारों को खुद के पैरों पर खड़े होने का ज़रिया भी मिला है। सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यमों की 2019-20 की रिपोर्ट में कहा गया है कि उत्तरप्रदेश के बाद पश्चिम बंगाल ही वो राज्य है जहां सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यमों से लाखों बेरोजगारों को लाभ मिला है।
 
रिपोर्ट में कहा गया है कि पश्चिम बंगाल में कुल 88.67 लाख सूक्ष्म, लघु और मंझोले स्तर की औद्योगिक इकाइयों में 135.52 लाख लोगों को रोज़गार मिल पाया है। उत्तरप्रदेश में ऐसे उद्यमों की संख्या रिपोर्ट में 89.99 है। हालांकि ज़मीनी स्तर पर सूक्ष्म और लघु उद्योग चलाने वालों का अनुभव अच्छा नहीं है। चम्पक कुंडू के हावड़ा में कुछ इलेक्ट्रॉनिक उद्योग हैं। अब वो सॉफ्टवेयर की कंपनी खोलना चाहते हैं। बीबीसी से बात करते हुए कुंडू कहते हैं कि सिर्फ व्यापार का लाइसेंस हासिल करने में उन्हें तीन साल लग गए।


 
काम शुरू करने में रुकावटें
 
इसके अलावा वो कहते हैं कि उनका नया उद्योग तो अभी तक शुरू नहीं हो पाया लेकिन उससे भी पहले उनपर तीन सालों का रिटर्न भरने का दबाव बढ़ गया है जो नहीं कर पाने की स्थिति में उनपर जुर्माना भी लग गया। वो कहते हैं, 'अभी तक उद्योग लगा भी नहीं और जुर्माना लग गया। इतनी अड़चने हैं तो कोई नया धंधा शुरू कैसे करेगा? चीज़ें आसान होनी चाहिए। व्यापार या उद्योग लगाने की प्रेअनाली को आसान बनाना चाहिए, क्योंकि हम बहुत सारे लोगों को रोज़गार भी देते हैं।'
 
कुंडू के अनुसार कोलकाता के पास राजरहाट में 'आईटी हब' बनने वाला था जिसकी प्रस्तावना वाम फ्रंट के सरकार के दौरान की गई थी। एक समय ऐसा भी आया जब इनफ़ोसिस जैसी कंपनी भी इस जगह अपना ऑफिस खोलना चाहती थी। मगर वो नहीं आई। दूसरी कंपनियां भी नहीं आईं और 'आईटी हब' की परिकल्पना धरी की धरी रह गई जिसका नुकसान स्थानीय युवाओं को ही हुआ। वहीं केंद्रीय गृह मंत्री अमित सह ने बंकुरा में चुनावी दौरे के क्रम में आरोप लगाया कि सकल घरेलू उत्पाद में पश्चिम बंगाल का योगदान 30 प्रतिशत से गिर कर 3 प्रतिशत पर आ गया है। उनका कहना था कि स्वतंत्रता से पहले बंगाल देश के जीडीपी में 30 प्रतिशत का योगदान करता था।
 
उनका ये भी आरोप था कि पश्चिम बंगाल में सर्विस सेक्टर का विकास दर भी सिर्फ 5.8 प्रतिशत ही है। जहां तक नौकरियों के लिए पलायन की बात आती है तो ये भी सही है कि इन मानकों पर पूरे देश में पश्चिम बंगाल चौथे स्थान पर आता है। हालांकि ये आंकड़े पुराने हैं जो साल 2011 की जनगणना पर ही आधारित हैं।
 
'डेल्टा, वलनरएबिलिटी, क्लाइमेट चेंज: माइग्रेशन एंड एडाप्टेशन' यानी 'डीईसीएमए' के शोध में पता चला है उत्तर और दक्षिण 24 परगना के इलाके से लगभग 64 प्रतिशत पलायन इस लिए हो रहा है क्योंकि यहां कृषि एक महंगा रोज़गार का ज़रिया बनता चला जा रहा है। इसका असर युवकों पर भी पड़ रहा है जिनके परिवार उनकी उच्च शिक्षा के लिए उतने पैसे नहीं जुटा पाते हैं।
 
कोलकाता की जाधवपुर यूनिवर्सिटी से जुड़े 'डीईसीएमए' के प्रमुख तुहिन घोष के अनुसार इस पलायन के कई कारण हैं जिसमे परियावरण में हो रहे बदलाव और घाटे में चल रही कृषि शामिल हैं। जाधवपुर यूनिवर्सिटी के इंजीनियरिंग के छात्र देबर्घो कहते हैं कि ज्यादातर छात्र कृषि परिवार से आते हैं। बहुत कम ही हैं जिनके परिवार संपन्न हैं और वो अपने बच्चों को उच्च शिक्षा दे पाते हैं। उनका कहना है कि ककृषक परिवार या लोअर मिडिल क्लास से आने वाले परिवारों के छात्रों के लिए शिक्षा हासिल करना ही सबसे बड़ी चुनौती है।
 
हाल ही में तृणमूल कांग्रेस की प्रमुख और पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने ट्वीट कर दावा किया कि 'पिछले 8 सालों में राज्य में 28 नए विश्वविद्यालयों की स्थापना की गई जबकि 50 से ज़्यादा कालेज' भी खोले गए हैं। ये कहा जाता है कि एक बंगाली से उसका धन छीना जा सकता है मगर उसके अन्दर की संस्कृति को नहीं छीना जा सकता और पश्चिम बंगाल के ज्यादातर शैक्षणिक संस्थान संस्कृति का भी गढ़ हैं। जाधवपुर विश्वविद्यालय के ही देबर्शी कहते हैं कि अब नौबत यहां तक आ गई है कि ना संस्कृति बच पा रही है और ना ही भविष्य ही सुरक्षित हो पा रहा है क्योंकि किसी भी राजनीतिक दल ने कभी इन सब को चुनावी मुद्दा ही नहीं बनाया है।
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