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Written By BBC Hindi
Last Modified: बुधवार, 16 जून 2021 (09:42 IST)

पश्चिम बंगालः क्या बीजेपी के लिए ख़तरे की घंटी है 24 विधायकों की ग़ैर-हाज़िरी?

पश्चिम बंगालः क्या बीजेपी के लिए ख़तरे की घंटी है 24 विधायकों की ग़ैर-हाज़िरी? - west bengal : is absence of 24 mla is trouble for BJP
-प्रभाकर मणि तिवारी, कोलकाता से, बीबीसी हिंदी के लिए
पश्चिम बंगाल में जारी कथित हिंसा और दलबदल क़ानून के मुद्दे पर राज्यपाल जगदीप धनखड़ से मुलाक़ात करने के लिए विधानसभा में विपक्ष के नेता शुभेंदु अधिकारी पार्टी के 50 विधायकों के साथ सोमवार शाम को राजभवन पहुँचे थे। लेकिन, उस प्रतिनिधिमंडल में बीजेपी के 24 विधायकों की ग़ैर-हाज़िरी ने उन सबकी टीएमसी में वापसी के क़यास तेज़ कर दिये हैं।

अब सवाल उठ रहे हैं कि इन विधायकों की ग़ैर-हाज़िरी अपने कुन्बे को एकजुट रखने के लिए जूझ रही बीजेपी के लिए कहीं ख़तरे की घंटी तो नहीं है। इस बीच, शुभेंदु अधिकारी के नेतृत्व वाले बीजेपी प्रतिनिधिमंडल से मुलाक़ात के बाद राज्यपाल जगदीप धनखड़ तीन दिनों के दौरे पर मँगलवार सुबह ही दिल्ली चले गए।

जानकारों के मुताबिक़, वे वहां प्रधानमंत्री और केंद्रीय गृह मंत्री से मुलाक़ात कर बंगाल की ज़मीनी परिस्थिति के बारे में उनको जानकारी देंगे।
 
राष्ट्रीय उपाध्यक्ष रहे मुकुल रॉय के अपने बेटे के साथ टीएमसी में वापसी के बाद कई और नेताओं के पाला बदलने की अटकलें तेज़ हो गईं हैं। अब ताज़ा मामले ने इन अटकलों को और मज़बूती दे दी है।
 
टीएमसी का दावा
टीएमसी के प्रदेश महासचिव कुणाल घोष पहले ही दावा करते रहें हैं कि बीजेपी के 30-35 विधायक और कुछ सांसद टीएमसी के संपर्क में हैं।
 
हाल ही में सोनाली गुहा से लेकर राजीव बनर्जी तक कई नेता वापसी की गुहार लगा चुके हैं। कोई प्रत्यक्ष रूप से तो कोई परोक्ष रूप से बीजेपी की नीतियों की आलोचना करते हुए।
 
इसके अलावा बीरभूम से हुगली तक सैकड़ों कार्यकर्ता अपनी ग़लतियों की माफ़ी माँग कर घर वापसी कर चुके हैं। ऐसे में शुभेंदु के नेतृत्व वाले प्रतिनिधिमंडल से एक साथ 24 विधायकों की ग़ैर-हाज़िरी ने राज्य में पार्टी के भविष्य पर सवालिया निशान लगा दिया है। इस मुद्दे पर पार्टी में गंभीर विमर्श भी शुरू हो गया है।
 
बीजेपी ने किया बचाव
हालांकि, बीजेपी इस मुद्दे पर ख़ुद को मज़बूत दिखाने के प्रयास कर रही है। पार्टी के नेता मनोज तिग्गा कहते हैं, "पहले कोविड-19 की वजह से उपजी परिस्थिति को ध्यान में रखते हुए हम 30 विधायकों के प्रतिनिधिमंडल के साथ ही राजभवन जाने वाले थे। लेकिन, धीरे-धीरे विधायकों की तादाद बढ़ कर 50 तक पहुँच गई।"
 
मनोज तिग्गा का दावा है कि पार्टी के सभी विधायकों को इसमें शामिल होने का न्योता नहीं दिया गया था और कुछ लोग कोरोना की वजह से समय पर नहीं पहुँच सके।
 
लेकिन दूसरी ओर, टीएमसी ने इस मुद्दे पर बीजेपी पर तंज़ करते हुए कहा है कि सरकार पर हमला करने और दल-बदल क़ानून को लेकर सक्रियता दिखाने से पहले उसे अपना घर संभालने पर ध्यान देना चाहिए।
 
टीएमसी सांसद सुदीप बंद्योपाध्याय का कहना था कि शुभेंदु अधिकारी को दल-बदल क़ानून पर बात करने से पहले अपने ग़ैर-हाज़िर विधायकों पर ध्यान देना चाहिए।
 
क्या कहते हैं ग़ैर-हाज़िर विधायक
 
लेकिन, आख़िर अनुपस्थित रहने वाले विधायकों की क्या दलील है? कम से कम दो विधायकों ने कहा है कि वे ख़राब स्वास्थ्य की वजह से ही कोलकाता नहीं पहुँच सके।
 
उत्तर 24-परगना ज़िले के बागदा के विधायक विश्वजीत दास कहते हैं, "अचानक तबीयत ख़राब होने की वजह से ही मैं कोलकाता नहीं जा सका। कोई और बात नहीं है।" यहां इस बात का ज़िक्र ज़रूरी है कि दास को मुकुल रॉय का क़रीबी माना जाता है।
 
नदिया ज़िले के रानाघाट दक्षिण के विधायक मुकुट मणि अधिकारी कहते हैं, "मेरी किसी से कोई नाराज़गी नहीं है। मैंने पहले ही बता दिया था कि निजी वजहों से जाना संभव नहीं होगा।"
 
पुराने नेताओं में नाराज़गी
वैसे, बीजेपी नेताओं के एक गुट का मानना है कि इन विधायकों के ना आने की एक वजह यह भी हो सकती है कि वे शुभेंदु को अपना नेता मानने के लिए तैयार नहीं हैं।
 
दरअसल, विधानसभा चुनाव में नंदीग्राम सीट पर मुख्यमंत्री ममता बनर्जी को हराने के बाद से ही केंद्रीय नेताओं की नज़रों में शुभेंदु की अहमियत काफ़ी बढ़ गई है। बीते सप्ताह अचानक दिल्ली दौरे पर गए शुभेंदु ने वहां प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, गृह मंत्री अमित शाह और पार्टी प्रमुख जेपी नड्डा के अलावा कई अन्य नेताओं के साथ भी मुलाक़ात की थी।
 
उनके दौरे के बारे में पूछने पर प्रदेश अध्यक्ष दिलीप घोष ने कहा था, "शुभेंदु दिल्ली क्यों गए हैं, इसकी मुझे कोई जानकारी नहीं है।"
 
इससे साफ़ है कि प्रदेश संगठन में सब कुछ ठीक नहीं चल रहा है। बीते सप्ताह टीएमसी में लौटने वाले मुकुल रॉय से भी घोष का छत्तीस का आंकड़ा रहा था। अब शायद शुभेंदु को तवज्जो मिलने की वजह से पार्टी के ख़ासकर पुराने नेताओं में नाराज़गी है।
 
शायद यही वजह है कि एक बार फिर दिलीप घोष को केंद्रीय मंत्रिमंडल में शामिल करने की चर्चा ज़ोर पकड़ रही है। हालांकि ,घोष कहते हैं, "मुझे अब तक इस बारे में कोई जानकारी नहीं है।"
 
शुभेंदु या दिलीप घोष
दिलीप घोष संघ की पृष्ठभूमि से आए हैं। इसलिए बीजेपी नेताओं के एक गुट का कहना है कि फ़िलहाल उनको प्रदेश अध्यक्ष के पद से हटाना संभव नहीं लगता।
 
वैसे लोकसभा चुनाव के नतीजों के बाद भी उनको केंद्रीय मंत्रिमंडल में शामिल करने के क़यास लगाए जा रहे थे लेकिन केंद्रीय नेतृत्व ने बाबुल सुप्रियो के अलावा उत्तर दिनाजपुर की महिला सांसद देवश्री चौधरी को ही मंत्रिमंडल में जगह दी।
 
अब केंद्रीय मंत्रिमंडल में फेरबदल की सुगबुगाहट तेज़ होने के बाद एक बार फिर दिलीप घोष का नाम चर्चा में है। यह कहा जा रहा है कि दिलीप को बंगाल से हटा कर केंद्रीय नेतृत्व शुभेंदु के लिए रास्ता साफ़ करना चाहता है।
 
शुभेंदु अधिकारी ने अब तक जैसी आक्रामकता का परिचय दिया है उसमें बीजेपी को भविष्य के लिए संभावनाएं नज़र आ रही हैं। ख़ासकर मुकुल रॉय के टीएमसी में लौटने के बाद अब पार्टी में शुभेंदु ही भरोसेमंद नेता बच गए हैं।
 
शुभेंदु के योगदान पर सवाल
लेकिन, पार्टी के कई नेता इस रणनीति पर सवाल उठाते रहे हैं। बीजेपी के एक वरिष्ठ नेता नाम नहीं छापने की शर्त पर कहते हैं, "आख़िर शुभेंदु ने अब तक किया ही क्या है? वे पूर्व और पश्चिम मेदिनीपुर समेत जंगलमहल इलाक़े की कम से कम पचास सीटों पर जीत के दावे के साथ पार्टी में शामिल हुए थे। लेकिन वे अपने बूते महज़ छह सीटें ही दिला सके।''
 
''नंदीग्राम में ममता बनर्जी को हराना ही उनकी एकमात्र उपलब्धि रही है। लेकिन, कहां तो वे पचास हज़ार वोटों के अंतर से जीत का दावा कर रहे थे और कहां एक हज़ार से कुछ ज़्यादा वोटों से ही जीत सके। ऐसे में शुभेंदु पर दांव लगाना केंद्रीय नेतृत्व के लिए महंगा साबित हो सकता है।"
 
राजनीतिक पर्यवेक्षक समीरन पाल कहते हैं, "टीएमसी के दावों को ध्यान में रखें तो बीजेपी प्रतिनिधिमंडल से 24 विधायकों की ग़ैर-हाज़िरी काफ़ी अहम है। अगर कोरोना ही वजह थी तो प्रतिनिधिमंडल में पाँच-सात से ज़्यादा लोग नहीं होने चाहिए थे। लेकिन अगर यह शक्तिप्रदर्शन था तो बीजेपी के लिए ख़तरे की घंटी है।"
 
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