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Last Modified: बुधवार, 20 मार्च 2019 (17:14 IST)

लोकसभा चुनाव 2019: क्या भारत में बेरोज़गारी बढ़ रही है?

लोकसभा चुनाव 2019: क्या भारत में बेरोज़गारी बढ़ रही है? Unemployment - Unemployment
- विनीत खरे (रियलिटी चेक)
 
जब बीजेपी सरकार ने साल 2014 में सत्ता संभाली थी तो भारत में रोज़गार पैदा करना सरकार की योजनाओं का मुख्य हिस्सा था। इस संबंध में आधिकारिक रूप से प्रकाशित आंकड़े बहुत सीमित हैं, लेकिन लीक हुए बेरोज़गारी के आंकड़ों ने भारत में रोज़गार की स्थिति को लेकर एक ज़बरदस्त बहस छेड़ दी है। ​विपक्षी दल कांग्रेस की महासचिव प्रियंका गांधी ने सरकार पर नौकरी से जुड़े अपने वादे पूरे न करने का आरोप लगाया है।
 
 
तो क्या बेरोज़गारी बढ़ी है?
11 अप्रैल को होने वाले लोकसभा चुनाव के लिए, बीबीसी रियलिटी चेक प्रमुख राजनीतिक दलों द्वारा किए गए दावों और वादों की पड़ताल कर रहा है। ये विवाद तब शुरू हुआ जब एक स्थानीय मीडिया ने राष्ट्रीय नमूना सर्वेक्षण कार्यालय (एनएसएसओ) के लीक हुए एक अध्ययन के हवाले से बताया कि भारत में बेरोज़गारी दर अपने चार दशकों के सबसे उच्च स्तर 6.1% पर पहुंच गई है।
 
 
एनएसएसओ बेरोज़गारी का आकलन करके सहित देश में कई बड़े सर्वेक्षण करता है। राष्ट्रीय सांख्यिकी आयोग (एनएससी) के कार्यकारी अध्यक्ष ने ​विरोध करते हुए इस्तीफ़ा दे दिया और इन आंकड़ों की पुष्टि भी की। लेकिन, सरकार की ओर से कहा गया कि ये अध्ययन सिर्फ़ एक मसौदा है। रोज़गार संकट को लेकर दिए गए सुझावों को भी ख़ारिज कर दिया गया। साथ ही आर्थिक विकास बढ़ने के संकेत दिए।
 
 
इसके बाद 100 से ज़्यादा अर्थशास्त्रियों और समाज विज्ञान के प्रोफ़ेसरों ने एक खुला पत्र लिखकर दावा किया था कि भारत की आंकड़े जुटाने वाली संस्थाएं ''संदेह के घेरे में आ गई हैं क्योंकि वो न सिर्फ़ दबाव में बल्कि राजनीतिक नियंत्रण में काम कर रही हैं।''
 
 
आख़िरी एनएसएसओ सर्वेक्षण साल 2012 में आया था। इसके बाद से सर्वेक्षण आए बहुत समय हो चुका है क्योंकि दशकों से आ रहा ये सर्वेक्षण आना बंद हो गया था। साल 2012 में बेरोज़गारी का आंकड़ा 2.7% था।
 
 
क्या इन दो सर्वेक्षणों की तुलना हो सकती है?
लीक हुई इस नई रिपोर्ट को देखे बिना उसकी साल 2012 में आए आख़िरी सर्वेक्षण से तुलना करना मुश्किल है और इसलिए ये भी पता लगाना भी मुश्किल है कि बेरोज़गारी 40 साल की ऊंचाई पर है या नहीं।
 
 
हालांकि, अंग्रेज़ी अख़बार द हिंदू को दिए एक साक्षात्कार में सांख्यिकी आयोग के एक पूर्व अध्यक्ष ने कहा था, ''दोनों के तरीक़े एक जैसे हैं और उनकी तुलना करने में कोई समस्या नहीं है।''
 
 
आंकड़ों के अन्य स्रोत
अंतरराष्ट्रीय श्रम संस्थान के आंकड़े दिखाते हैं कि भारत में साल 2012 और 2014 के बीच बेरोज़गारी कम हुई है लेकिन 2018 में 3.5% तक बढ़ी है। हालांकि, यह सिर्फ़ 2012 के एनएसएसओ सर्वेक्षण पर आधारित एक अनुमान है।
 
 
साल 2010 से भारतीय श्रम मंत्रालय ने अपनी कार्यप्रणाली के आधार पर घरेलू सर्वेक्षण करना शुरू कर दिया था। 2015 में आख़िरी बार हुआ सर्वेक्षण 5% बेरोज़गारी दर दिखाता है और यह दर पिछले कुछ सालों में बढ़ी है। उनके आंकड़ों के अनुसार शहरी क्षेत्रों में महिलाओं की बेरोज़गारी का आंकड़ा अधिक है।
 
 
एक भारतीय थिंक टैंक कहता है कि यह आंकड़ा बढ़ रहा है। मुंबई आधारित एक थिंक टैंक सेंटर फॉर मॉनिटरिंग इंडियन इको​नॉमी (सीएमआईई) के मुताबिक़ पिछले साल फ़रवरी में बेरोज़गारी दर 5.9% से 7.2% पर पहुंच गई थी। यह संस्थान अपना ख़ुद का सर्वेक्षण करता है। हालांकि, इसका सर्वेक्षण एनएसएसओ के मुक़ाबले छोटे पैमाने पर होता है।
 
 
श्रम भागीदारी दर में कमी
रोज़गार बाज़ार को मापने का एक और तरीक़ा श्रम भागीदारी दर है। इसका मतलब है, रोज़गार चाहने वाली 15 साल से अधिक आयु वर्ग की कार्यशील आबादी का अनुपात।
 
 
सीएमआईई के प्रमुख महेश व्यास कहते हैं, ''साल 2016 में श्रम भागीदारी का 47—48 प्रतिशत आंकड़ा अब गिरकर 43 प्रतिशत पर आ गया है। इसका मतलब है कि पांच प्रतिशत कार्यशील आबादी श्रम बल से बाहर हो गई है।'' वह कहते हैं कि इसके पीछे बेरोज़गारी और नौकरी को लेकर असंतुष्टि कारण हो सकते हैं।
 
 
भारत में नौकरियों को प्रभावित करने वाले कारक
2016 में, भारत में भ्रष्टाचार और अवैध नग़दी पर रोक के लिए 500 और 1000 रुपये के नोटों पर प्रतिबंध लगाया गया था। इस प्रक्रिया को विमुद्रीकरण कहते हैं। इसे आम तौर पर नोटबंदी भी कहा जाता है। एक विश्लेषण के मुताबिक़ नोटबंदी के कारण कम से कम 35 करोड़ नौकरियां गई हैं और इससे श्रम बल में युवाओं की भागीदारी पर असर पड़ा है।
 
 
'मेक इन इंडिया' जैसी पहलों के माध्यम से देश चीन और ताइवान जैसे विनिर्माण केंद्रों का अनुकरण करने की कोशिश कर रहा है ताकि महंगे आयात में कमी आए, तकनीकी आधार विकसित हो और नौकरियां पैदा हों। हालांकि, विशेषज्ञों का कहना है कि ढांचागत बाधाएं, जटिल श्रम क़ानून और नौकरशाही ने प्रगति के रास्ते को रोक दिया है।
 
 
अर्थशास्त्री जिस एक और कारक की तरफ़ ध्यान दिलाते हैं, वो है भारत में बढ़ता मशीनीकरण। अर्थशास्त्री विवेक कॉल कहते हैं, ''अगर कोई कंपनी भारत में विस्तार करना चाहती है, तो वो कर्मचारी रखने की बजाए मशीनों के इस्तेमाल को प्राथमिकता देती है।''