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Written By BBC Hindi
Last Updated : शुक्रवार, 26 फ़रवरी 2021 (09:31 IST)

मोदी का पांच ट्रिलियन की अर्थव्यवस्था का सपना 2025 तक हो सकेगा पूरा?

मोदी का पांच ट्रिलियन की अर्थव्यवस्था का सपना 2025 तक हो सकेगा पूरा? - Modi's dream of five trillion economy will be fulfilled by 2025?
निधि राय (बीबीसी संवाददाता)
 
23 जनवरी, 2018 को पहली बार भारतीय प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने 2024-25 तक भारतीय अर्थव्यवस्था को 5 ट्रिलियन डॉलर तक पहुंचाने की अपने महत्वाकांक्षी सपने को सार्वजनिक किया था। वे दावोस में वर्ल्ड इकॉनामिक फ़ोरम की बैठक में अंतरराष्ट्रीय नेताओं को संबोधित कर रहे थे।
 
प्रधानमंत्री के विज़न को ध्यान में रखते हुए 2018-19 का आर्थिक सर्वे तैयार किया गया था, जिसमें उम्मीद जताई गई थी कि 2020-21 से लेकर 2024-25 तक भारत की अर्थव्यवस्था 8 प्रतिशत की रफ़्तार से बढ़ेगी। यह माना गया था कि जीडीपी में औसत वृद्धि दर 12 प्रतिशत के आसपास होगी जबकि महंगाई की दर 4 प्रतिशत रहेगी।
 
मार्च, 2025 में 1 डॉलर का मूल्य 75 रुपए तक पहुंचने का अनुमान लगाया गया था। जीडीपी की वृद्धि दर का आकलन सामान और सेवाओं के मौजूदा दर के आकलन के आधार पर होता है। जबकि वास्तविक जीडीपी का आकलन मंहगाई दर को घटा कर आंका जाता है। यही वजह है कि लंबे समय में वास्तविक जीडीपी के आंकड़े से अर्थव्यवस्था की बेहतर स्थिति का अंदाज़ा होता है। अगर भारत इस लक्ष्य को हासिल करने में कामयाब होता है तो वह जर्मनी को पछाड़कर अमेरिका, चीन और जापान के बाद चौथे नंबर की अर्थव्यवस्था बन जाएगा।
 
मौजूदा समय में भारत की अर्थव्यवस्था 2.7 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर की है। लेकिन भारत की अर्थव्यवस्था इस उम्मीद के मुताबिक़ नहीं बढ़ रही थी और मार्च, 2020 में कोविड संक्रमण का दौर शुरू हो गया। कोविड से पहले देश की अर्थव्यवस्था की तस्वीर बहुत अच्छी थी, ऐसा भी नहीं था। हमारी अर्थव्यवस्था कोविड संक्रमण का दौर शुरू होने से पहले ही सुस्ती की ओर थी।
 
राष्ट्रीय सांख्यिकी संस्थान (एनएसओ) की रिपोर्ट के मुताबिक़ 2018-19 में जीडीपी 6.1 प्रतिशत से बढ़ रही थी जबकि 2019-20 में यह 4.2 प्रतिशत से बढ़ी। अप्रैल से जून, 2020 के दौरान भारतीय अर्थव्यवस्था में 23.9 प्रतिशत की गिरावट देखी गई जबकि इसके बाद वाली तिमाही में 7.5 प्रतिशत की गिरावट दर्ज की गई थी। यह वह दौर था जब देश में कोविड संक्रमण का असर अर्थव्यवस्था पर दिख रहा था और देशभर में लॉकडाउन की स्थिति थी।
 
अब सबकी नज़रें वित्तीय साल 2021 की तीसरे तिमाही के जीडीपी आंकड़ों पर टिकी है। कई रेटिंग एजेंसियों और अर्थशास्त्रियों ने उम्मीद जताई है कि भारतीय अर्थव्यवस्था में तीसरे तिमाही में आशंकि वृद्धि देखी जाएगी। इन लोगों का मानना है कि देश में आर्थिक गतिविधियों ने रफ़्तार पकड़ी है और रफ़्तार का दौर बना रहेगा।
 
अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (आईएमएफ़) ने भी उम्मीद जताई है कि 2022-23 में धीमा होकर 6.8 प्रतिशत होने से पहले अगले साल देश की जीडीपी में 11.5 प्रतिशत की विकास दर से बढ़ोत्तरी होगी। आईएमएफ़ की ओर से यह भी कहा गया है कि इन दोनों सालों के दौरान भारतीय अर्थव्यवस्था दुनिया में सबसे तेज़ी से बढ़ने वाली अर्थव्यवस्था बनी रहेगी।
 
'भारतीय अर्थव्यवस्था अभी भी पटरी पर है'
 
बीबीसी से ईमेल इंटरव्यू के दौरान पूर्व केंद्रीय आर्थिक सलाहकार डॉ. अरविंद विरमानी ने कहा है, 'सितंबर, 2019 से ही सरकार घरेलू बाज़ार में प्रतिस्पर्धा और उत्पादकता की स्थिति को बेहतर बनाने के लिए कई प्रावधान किए हैं, इसके चलते भारतीय जीडीपी में 2021-30 के दौरान सात से 8 प्रतिशत के बीच औसत बढ़ोत्तरी होने का अनुमान है।' इस हिसाब से देखें तो इस दशक के अंत तक भारतीय अर्थव्यवस्था के 5 ट्रिलियन डॉलर तक पहुंचने का अनुमान है।
 
बीबीसी को एक एक्सक्लूसिव इंटरव्यू में भारत के प्रमुख आर्थिक सलाहकार संजीव सान्याल ने भी अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष से सहमति जताते हुए कहा कि हो सकता है कि 1 साल का नुक़सान हुआ हो लेकिन भारतीय अर्थव्यवस्था अभी भी पटरी पर है। संजीव सान्याल ने कहा, 'जैसा कि हम सब लोग जानते हैं कि कोविड संक्रमण का असर देश की प्रत्येक अर्थव्यवस्था पर पड़ा है। कोई भी देश इसका अपवाद नहीं है। हालांकि अब आर्थिक गतिविधियां बढ़ रही हैं और आने वाले वित्तीय साल में, हमारे अनुमान के मुताबिक़ वास्तविक जीडीपी में 11 प्रतिशत की बढ़ोत्तरी होगी जबकि सामान्य जीडीपी में 15.5 प्रतिशत की बढ़ोतरी संभव है। इससे हम ठीक वहां पहुंच जाएंगे जहां कोविड संक्रमण की शुरुआत से ठीक पहले थे।'
 
उन्होंने कहा, 'हो सकता है कि हम लोगों को 1 साल का नुक़सान हुआ हो, लेकिन मेरे ख्याल से भारत दुनिया की उन गिनी चुनी अर्थव्यवस्थाओं में से जो पटरी पर हैं। हो सकता है कि हमें 5 ट्रिलियन डॉलर तक पहुंचने में थोड़ा ज़्यादा वक़्त लगे लेकिन कोविड संक्रमण के झटके को देखते हुए यह सराहनीय होगा। मेरा यह भी ख़्याल है कि दुनिया भर में कोविड संक्रमण के असर के बीच में भारतीय अर्थव्यवस्था उससे उबरने में कामयाब रही है।'
 
हालांकि दूसरे अर्थशास्त्री इसको लेकर उतने उत्साहित नहीं हैं। एमके ग्लोबल फ़ाइनेंशियल सर्विसेज़ की लीड इकॉनामिस्ट मेधावी अरोड़ा ने कहा कि पूंजी और लाभ के हिसाब से तो अर्थव्यवस्था में रिकवरी हो रही है लेकिन श्रम और मज़दूरी में ऐसा नहीं हुआ है। मेधावी ने बीबीसी से कहा, 'इस बात को समझना होगा कि भारत ने वायरस के प्रसार को उम्मीद से पहले तोड़ा है जिसके चलते लोगों का आना जाना बढ़ा है। हालांकि हमें इस विकास दर के उत्साह से आगे बढ़ने की ज़रूरत है। कोविड के बाद के दौर में विकास दर का ग्राफ़ मामूली है। यह डराने वाला है और श्रम बाज़ार को भी विभाजित करता है।'
 
'5 ट्रिलियन डॉलर के लक्ष्य को 2029-30 तक हासिल कर पाना असंभव दिख रहा'
 
पूर्व वित्त सचिव सुभाष चंद्र गर्ग का मानना है कि भारत की अर्थव्यवस्था को दो साल का नुक़सान हुआ है कि 5 ट्रिलियन डॉलर के लक्ष्य को 2029-30 तक हासिल कर पाना असंभव दिख रहा है। उन्होंने कहा, 'इस लक्ष्य को पूरा करने में महज़ 4 साल का समय बचा है और इसके लिए जीडीपी की वृद्धि दर 18 प्रतिशत की ज़रूरत होगी और यह असामान्य बात लग रही है। अगर आप लक्ष्य को हासिल करने का समय बढ़ाकर 2026-27 कर दें तो भी जीडीपी को 11 प्रतिशत की दर से बढ़ना होगा। अगर इस रफ़्तार से जीडीपी नहीं बढ़ी और इस वक़्त ऐसा होना मुश्किल दिख रहा है तो लक्ष्य को हासिल करना मुश्किल होगा।'
 
गर्ग के मुताबिक़, 'अगर बेहतर मूलभूत नीतियों को लागू किया जाए और तेज़ी की स्थिति लौटे तो इस लक्ष्य को 2029-30 तक हासिल किया जा सकता है। सरकार ने जिस तरह से निजीकरण की घोषणाएं की है, कोयला सेक्टर के नक़्शे और खदानों के निजीकरण की प्रक्रिया को अंत तक लागू किया जाए और सरकार इसे प्रभावी ढंग से लागू करे तो 2023-24 तक एक बार फिर से सबसे तेज़ी से बढ़ती अर्थव्यवस्था भारत की होगी।'
 
उन्होंने कहा, 'सरकार को निजीकरण के एजेंडे को तेज़ रफ़्तार से लागू करना होगा। इंफ्रास्ट्रक्चर और टेक्नॉलॉजी सेक्टर की नीतिगत समस्याओं को दूर करना होगा और उसे प्राइवेट प्लेयरों के लिए दिलचस्प बनाना होगा। सरकार को बैंकों और एमटीएनएल को छोड़कर सार्वजनिक सुविधाओं यानी बेहतर पर्यावरण, सड़क, बांध के क्षेत्र में निवेश करना चाहिए।'
 
वहीं जेएनयू के पूर्व प्रोफ़ेसर अरुण कुमार का कहना है कि जब इस लक्ष्य को सार्वजनिक किया गया था उस वक़्त ही इसका पूरा होना संभव नहीं था। उन्होंने कहा, 'कोविड के बिना भी अर्थव्यवस्था में बीते दो साल से कोई तेज़ी नहीं थी। कोरोना संक्रमण के चलते गिरावट भी काफ़ी ज़्यादा देखने को मिली इसलिए इस साल ग्रोथ तो ज़्यादा दिखेगी लेकिन कोरोना संक्रमण से पहले वाली स्थिति तक नहीं पहुंचेंगे। 'मेरे ख्याल से वित्तीय साल 21 की तीसरी तिमाही में भी हमारा ग्रोथ नहीं हो रहा है। सरकारी आंकड़ों में असंगठित क्षेत्र के आंकड़े शामिल नहीं होते हैं जबकि कोविड संकट की सबसे ज़्यादा मार असंगठित क्षेत्र पर ही पड़ा है। सरकार के आंकड़े सही नहीं हैं।
 
'अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (आईएमएफ़) आंकड़े संग्रह करने वाली कोई स्वतंत्र एजेंसी नहीं है। वह सरकार के आंकड़ों पर भरोसा करती है। वे किसी तरह से घबराहट की स्थिति को भी नहीं पैदा करना चाहते हैं, लिहाज़ा वे गुलाबी तस्वीर ही पेश करते हैं। लेकिन उन पर भरोसा नहीं किया जा सकता। 2024-25 तक 5 ट्रिलियन डॉलर की अर्थव्यवस्था तक पहुंचने का अनुमान किसी हाल में पूरा नहीं हो सकता।'
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