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Last Modified: शनिवार, 13 अप्रैल 2019 (09:21 IST)

आगरा: जो वादे पूरे नहीं करते उनकी जीत के दावे क्यों: लोकसभा चुनाव 2019 ग्राउंड रिपोर्ट

आगरा: जो वादे पूरे नहीं करते उनकी जीत के दावे क्यों: लोकसभा चुनाव 2019 ग्राउंड रिपोर्ट - Loksabha election : Agra Ground report
वात्सल्य राय, बीबीसी संवाददाता, आगरा से
उत्तर प्रदेश के आगरा में कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष राज बब्बर और आगरा लोकसभा सीट की उम्मीदवार प्रीता हरित शुक्रवार को जब 'स्थानीय घोषणा पत्र' जारी कर रहे थे, तभी कुछ दूरी पर स्थित लोहामंडी में कुछ वोटर याद करने में लगे थे कि पिछले चुनावों में आगरा से चुनाव लड़े और जीते उम्मीदवारों ने क्या वादे किए थे?
 
ऐसे ही एक वोटर नदीम ने बीबीसी से कहा, 'आगरा में दो बार सांसद रहे प्रोफेसर राम शंकर कठेरिया ने कई वादे किए थे। स्टेडियम बनाएंगे। एयरपोर्ट बनाएंगे। हाई कोर्ट बेंच लाएंगे। बहुत से वादे किए। कोई वादा पूरा नहीं हुआ।' उसी जगह खड़े आगरा के एक और निवासी अनवर ने कहा, 'तभी तो उन्हें भागना पड़ा।'
 
तथ्य यह है कि कठेरिया को इस बार आगरा की जगह इटावा से उम्मीदवार बनाया गया है। आगरा से बीजेपी के उम्मीदवार एसपी सिंह बघेल हैं और पार्टी उनकी जीत का दावा कर रही है।
 
क्या कठेरिया की सीट उनके रिपोर्ट कार्ड के आधार पर ही बदली गई और अगर ऐसा है और वोटर नाराज़ हैं तो क्या प्रत्याशी बदलने से लोगों की नाराजगी दूर हो जाएगी, आगरा बीजेपी के नेता इस सवाल का सीधा जवाब नहीं देना चाहते हैं।
 
'सांसद तो कठपुतली हो गया है'
हालांकि, करीब-करीब सभी नेता बघेल की जीत का दावा जरूर कर रहे हैं। हाल में भारतीय जनता पार्टी में शामिल हुए पूर्व विधायक गुटियारी लाल दावा करते हैं कि बघेल बड़े अंतर से जीतेंगे। वजह पूछने पर कहते हैं, 'माहौल ही ऐसा है। जहां जाओ वहां वोटर हमारे साथ है।'
 
बीजेपी के आगरा कार्यालय पर 18 अप्रैल को होने वाली वोटिंग को लेकर चर्चा कर रहे संगठन से जुड़े एक सीनियर नेता ने दावा किया, 'इस बार माहौल 2014 से भी अच्छा है. सभी चाहते हैं, फिर एक बार मोदी सरकार।'
 
आगरा होटल्स एसोसिएशन के अध्यक्ष राकेश कुमार चौहान इस बात को अलग तरीके से कहते हैं। पहले हम सांसद चुनते थे। अब प्रधानमंत्री चुनते हैं। सांसद तो कठपुतली हो गया है। फिर कौन पूरे करेगा वादे और कैसे दूर होंगी समस्याएं?"
 
'ताज महल बना अभिशाप'
चौहान जिस एसोसिएशन के अध्यक्ष हैं, उसका आरोप है कि सरकार की उदासीनता और जन प्रतिनिधियों के अपने वादे पूरे नहीं करने से ताज महल स्थानीय व्यापारियों और मज़दूरों के लिए 'अभिशाप बन गया है।'
 
चौहान और उनकी एसोसिएशन के दूसरे लोग शिकायत करते हैं कि ताज महल को प्रदूषण से बचाने के नाम पर कई उद्योगों और ईंट-भट्टों को बंद तो करा दिया गया लेकिन रोजगार और व्यवसाय के दूसरे साधन विकसित नहीं किए गए।
 
वो दावा करते हैं कि आगरा का होटल व्यवसाय मुश्किलों में घिर गया है। ऐतिहासिक इमारतों में सरकार को सबसे ज्यादा कमाई ताज महल से होती है, लेकिन ताज देखने के लिए आने वाले महज बीस फीसद लोग ही आगरा में रुकते हैं। सड़कें बेहतर होने से लोग ताज देखकर लौट जाते हैं। अगर टूरिस्ट सर्किट विकसित करने की पुरानी मांग पूरी हो जाती तो स्थिति इतनी खराब नहीं होती।
 
होटल व्यवसायी और आगरा टूरिज्म एसोसिएशन के अध्यक्ष संदीप अरोड़ा बताते हैं कि आगरा के होटलों में से ज़्यादातर में सिर्फ़ बीस फ़ीसद कमरे ही भर पाते हैं।
 
आगरा होटल कारोबार से जुड़े लोगों की मांग है कि ऐसी कोशिश होनी चाहिए कि जो भी पर्यटक ताज महल देखने आएं वो रात में यहीं रुकें। इसके लिए दूसरी ऐतिहासिक इमारतों का प्रचार होना चाहिए। वहां साउंड और लाइट शो होने चाहिए। नाइट लाइफ बेहतर होनी चाहिए।
 
पेठा-जूता कारोबारियों की भी चिंताएं
दिक्कतों को लेकर शिकायत आगरा के पेठा और जूता उद्योग से जुड़े कारोबारी भी करते हैं। पेठा कारोबारी संजय सिंह कहते हैं, 'सुप्रीम कोर्ट के आदेश से कोयले का इस्तेमाल बंद करा दिया गया लेकिन किसी पेठा व्यवसायी को पीएनजी उपलब्ध नहीं कराई गई है। साल 2000 में बनी पेठा नगरी आज तक आबाद नहीं हुई है।'
 
जूता उद्योग से जुड़े शाकिर अनीस कहते हैं कि आगरा में सबसे ज्यादा लोगों को रोजगार देने वाले इस कारोबार की स्थिति भी बहुत खराब है। आगरा के जूता उद्योग को पूछने वाला कोई नहीं है। कारोबार घटकर तीस फ़ीसदी रह गया है।
 
बदहाल होते उद्योगों और रोज़गार के घटते मौकों पर तमाम राजनीतिक दलों की उदासीनता क्यों बनी रहती है, इस सवाल का जवाब पत्रकार मानवेंद्र मल्होत्रा देते हैं। वो कहते हैं, 'राजनीति में सच्चाई खत्म हो गई। अब नारों के नैरेटिव पर देश चलाया जा रहा है।' वो बताते हैं कि आगरा में हाईकोर्ट की बेंच लाने और पानी संकट समाधान की बात भी वादों से आगे नहीं बढ़ती है।
 
सवाल ये भी है कि अगर जनप्रतिनिधि वादे पूरे नहीं करते तो उनकी वादाखिलाफी चुनाव में मुद्दा क्यों नहीं बनती है? संदीप अरोड़ा कहते हैं, 'ये मुद्दा न होता तो पिछले चुनाव में पीएम को कहना नहीं पड़ता कि एयरपोर्ट होना चाहिए या नहीं?' पिछले कई चुनाव बैराज के मुद्दे पर लड़े और जीते जाते रहे हैं। लेकिन जब वोटर ज़्यादा दबाव बनाते हैं तो प्रत्याशी बदल जाता है।
 
वादों की फसल तैयार
अरोड़ा चाहते हैं कि चुनाव के दौरान बड़े-बड़े वादे और दावे करने वाले राजनीतिक दलों और उम्मीदवारों की जवाबदेही तय होनी चाहिए। वो कहते हैं, 'बैंक का कोई चैक जब बाउंस होता है तो वो दंडनीय अपराध होता है। इसी तरह राजनीतिक दल जब अपना घोषणा पत्र जारी करते हैं, उसमें वादे लिखते हैं और जब वो वादे बाउंस हो जाते हैं तो उसको संज्ञेय अपराध क्यों नहीं घोषित किया जाता है। ऐसा हो तो स्थिति बदल जाएगी।'
 
आम चुनाव के पहले आगरा में एक बार फिर वादों की फसल तैयार हो रही है। वादों को लेकर बीजेपी की टैग लाइन 'मोदी है तो मुमकिन है' और कांग्रेस की टैग लाइन 'हम निभाएंगे' लोकप्रिय हो रही हैं.
 
वहीं बीएसपी के नेता और आगरा सुरक्षित सीट से बहुजन समाज पार्टी के प्रत्याशी मनोज सोनी कहते हैं, 'सब जानते हैं, बीएसपी जो कहती है वो करती है।'
 
राकेश कुमार चौहान इस बार भी ऐसे नारों में उम्मीद देख रहे हैं। वो कहते हैं कि आगरा की जनता आशावादी है। हालांकि वो ये भी जोड़ते हैं, 'अगर स्थितियां नहीं बदलेंगी तो आगरा वालों को किसी दूसरे राज्य में जाना पड़ेगा।'
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