शुक्रवार, 29 मार्च 2024
  • Webdunia Deals
  1. सामयिक
  2. बीबीसी हिंदी
  3. बीबीसी समाचार
  4. khargone wasim shaikh handicapped with both hands broke the shop alleging stone pelting
Written By
Last Modified: मंगलवार, 19 अप्रैल 2022 (22:43 IST)

खरगोन हिंसा : दोनों हाथों से अपाहिज वसीम का सवाल- मैं कैसे दंगा कर सकता हूं?

खरगोन हिंसा : दोनों हाथों से अपाहिज वसीम का सवाल- मैं कैसे दंगा कर सकता हूं? - khargone wasim shaikh handicapped with both hands broke the shop alleging stone pelting
शुरैह नियाज़ी
भोपाल से, बीबीसी हिंदी के लिए
 
मध्यप्रदेश के खरगोन में हुई हिंसा के बाद जिला प्रशासन ने बड़े तौर पर मकान और दुकानों को ढहा दिया था। जिनके मकान और दुकानों को गिराया था, उन पर आरोप है कि वे लोग दंगे में शामिल थे, इसलिए उन पर कार्रवाई की गई। इन्हीं लोगों में से एक 35 साल के वसीम शेख़ भी हैं जिनकी गुमटी ढहा दी गई।
 
वसीम दोनों हाथों से अपाहिज हैं और वो गुमटी उनके और उनके परिवार के लिए गुज़र-बसर का सहारा थी। हालांकि खरगोन प्रशासन इस बात से इंकार कर रहा है कि वसीम की गुमटी को उन्होंने तोड़ा है। 
 
सोमवार को वसीम ने सुबह वायरल वीडियो के ज़रिए बताया था कि उनकी गुमटी को ढहाया गया है, लेकिन देर रात उनका एक दूसरा वीडियो सामने आया, जिसमें उन्होंने इस बात से इंकार कर दिया। 
 
लेकिन जब बीबीसी ने वसीम से बात की तो उन्होंने कहा कि वो आज भी इस बात पर कायम हैं कि उनकी गुमटी तोड़ी गई है। 
 
रामनवमी के जुलूस के बाद जब खरगोन में 11 अप्रैल को दुकानें और मकानें गिराई गई तो प्रशासन और राज्य के गृह मंत्री ने कहा कि दंगाइयों के ख़िलाफ़ कार्रवाई की जा रही है। लेकिन वसीम रिज़वी के मामले को लेकर सवाल पूछे जा रहे हैं।
 
ख़ुद वसीम पूछते हैं, "मैं अपने कामों के लिये भी दूसरों पर निर्भर हूं। मैं किस तरह से दंगे में शामिल हो सकता हूं।" प्रशासन और सरकार का यही कहना था कि यह कार्रवाई जुलूस के दौरान हुई पत्थरबाज़ी में शामिल पत्थरबाज़ों को सबक़ सिखाने के लिए की जा रही है, लेकिन वसीम के मामले में यह मुमकिन ही नहीं है क्योंकि वो पत्थर उठा भी नहीं सकते हैं।
 
वसीम की गुमटी शहर के छोटी मोहन टॉकीज़, चांदनी चौक में थी। उन्होंने बताया कि उनके पड़ोस में शादउल्लाह का घर था जिसने बताया कि जब दूसरे दिन प्रशासन ने दंगे में कथित तौर पर शामिल लोगों के घर और दुकानें तोड़ने शुरू किए उसी वक़्त उनकी गुमटी को भी तोड़ दिया गया।
 
इस गुमटी से वसीम रोज़मर्रा की छोटी-मोटी चीजें बेचा करते थे जिससे उनका और उनके परिवार को ग़ुज़र बसर होता था। उन्होंने बताया कि "मेरा एक बेटा और एक बेटी है। इसके साथ ही मेरी मां और पत्नी की भी ज़िम्मेदारी है। इसी गुमटी से सामान बेचकर मेरा घर चलता था लेकिन बगैर किसी जांच के प्रशासन ने एक सिरे से मकानों और दुकानों को तोड़ने की कार्रवाई कर डाली।"
 
क्या कह रही है सरकार
वहीं इस मामले में बीते कुछ दिन में सरकार और प्रशासन के स्वर बदल गए हैं। उनका कहना है कि कार्रवाई अतिक्रमण को हटाने के लिये की गई है। लेकिन वसीम का कहना है कि अगर अतिक्रमण था भी तो उन्हें इसके लिये नोटिस दिया जाना था ताकि वो उसे वहां से हटा लेते थे।
उन्होंने बताया कि इस तरह की कार्रवाई से उनके लिए जीवन यापन का संकट पैदा हो गया है. अगर बता दिया जाता तो वो उसे हटा लेते।" हालांकि सोमवार को चीफ म्युनिसिपल ऑफिसर प्रियंका पटेल उनसे मिलने आयी थीं और उन्होंने यही कहा कि उनकी गुमटी को नगरपालिका ने नहीं तोड़ा है। खरगोन नगर पालिका की सीएमओ ने कहा है, "वसीम का न तो घर टूटा है और न ही दुकान टूटी है।"
 
इस पर वसीम का कहना है कि जिस जगह पर यह हुआ, वहां पर सीसीटीवी कैमरे लगे हैं, प्रशासन को उसे देखकर उन पर कार्रवाई करनी चाहिए। वसीम के समर्थन में सोशल मीडिया पर कई लोग ट्वीट कर रहे हैं और यही आरोप लगा रहे हैं कि जिसके हाथ नहीं है, उसे भी पत्थरबाज़ी के इल्ज़ाम में सज़ा दी जा रही है।
 
 
इससे पहले वसीम शेख़ पेंटर का काम करते थे, लेकिन 2005 में करंट लगने की वजह से उनके दोनों हाथों को काटना पड़ा। हालांकि खरगोन की ज़िलाधिकारी अनुग्रहा पी ने इस बात से इंकार किया है कि वसीम की गुमटी को प्रशासन ने तोड़ा है। उन्होंने यह भी दावा किया है कि जिनके मकान और घर तोड़े गए हैं, वो सब अतिक्रमण था और उसे ही हटाया गया है।
 
एकतरफ़ा कार्रवाई के आरोप
खरगोन और सेंधवा प्रशासन पर आरोप लग रहे हैं कि उन्होंने दंगे के बाद बड़े पैमाने पर एकतरफा कार्रवाई की है। सेंधवा में ऐसे तीन व्यक्तियों पर मामला दर्ज किया गया है, जो हत्या के मामले में पिछले एक महीने से जेल में है. इनमें एक अभियुक्त के घर को भी गिरा दिया गया है। 
 
वहीं खरगोन में भी दो लोग ऐसे हैं, जिन पर दंगे का आरोप लगाकर मामला दर्ज किया गया जबकि एक उस वक़्त अस्पताल में था तो दूसरा ख़रीदारी करने के लिये कर्नाटक गये हुये थे। 
 
एक तरफा कारवाई के मामले में गृह मंत्री नरोत्तम मिश्रा का कहना है कि, "आप समुदाय विशेष कह सकते हैं, लेकिन जो दंगाई हैं उन पर कारवाई हो रही है और जहां तक सवाल किसी और की रिपोर्ट का है...फरियादी जब किसी की रिपोर्ट यानी शिकायत डालता है, तो वो किसी का नाम लिखवाता है। प्रशासन ने अपनी तरफ़ से किसी का नाम नहीं लिखवाया है।
 
रामनवमी जुलूस के दौरान हिंसा
मध्यप्रदेश के खरगोन और सेंधवा में हिंदू-मुसलमानों के बीच 10 अप्रैल को रामनवमी के जुलूस निकालने के दौरान पत्थरबाज़ी हुई थी। इसके बाद शहर में कर्फ्यू लगा दिया गया था। इस हिंसा में एक व्यक्ति की मौत हो चुकी है और एक युवक गंभीर रुप से घायल है और इंदौर में उनका इलाज चल रहा है।
 
पुलिस के मुताबिक़, इस मामले में 20 से ज्यादा लोग घायल हुए थे और अब तक 148 लोगों को गिरफ़्तार किया जा चुका है। वहीं सुप्रीम कोर्ट के वकील एहतेशाम हाशमी का भी कहना है कि जिस तरह के मामले सामने आये हैं और लोगों से जो बात हुई है, उससे साफ ज़ाहिर है कि प्रशासन और सरकार ने एक समुदाय विशेष को टारगेट किया है। 
 
उन्होंने कहा कि "घर आप ऐसे नहीं तोड़ सकते किसी का। आप उन्हें नोटिस देंगे। आप देखते हैं कि कितना सारा अतिक्रमण होता है उसे सरकार हटा पाती है क्या सड़क पर से। एक-एक संपत्ति को लेकर 10-10 साल केस चलता है। यहां पर बग़ैर नोटिस दिये अपने घर तोड़ दिये और आप जिस सेक्शन की बात कर रहे है, एम लेंड रेवेन्यू कोर्ट सेक्शन 248. इसके तहत भी आप इस तरह से रातो रात मकान नहीं तोड़ सकते।"
 
एहतेशाम हाशमी और मेधा पाटकर दोनों ही प्रभावित लोगों से मिलने के लिए खरगोन गए थे। एहतेशाम हाशमी उन लोगों को क़ानूनी राय देना चाहते थे, जिन्हें अभियुक्त बनाया गया है। उन्होंने आरोप लगाया कि प्रशासन ने हमें उन तक पहुंचने नहीं दिया जबकि वकीलों के लिए किसी भी तरह की कोई पाबंदी नहीं होती। उन्होंने कहा कि अगर हम उन तक नहीं पहुंचेंगे तो उन्हें इंसाफ़ कैसे मिलेगा।
ये भी पढ़ें
यूक्रेन-रूस युद्धः डोनबास पर क्यों टिक गई है पुतिन की नज़र?