शनिवार, 20 अप्रैल 2024
  • Webdunia Deals
  1. सामयिक
  2. बीबीसी हिंदी
  3. बीबीसी समाचार
  4. Is Imran Khan US tour is a jolt for India
Written By
Last Modified: शुक्रवार, 26 जुलाई 2019 (14:05 IST)

इमरान खान का अमेरिका दौरा क्या भारत के लिए झटका है

इमरान खान का अमेरिका दौरा क्या भारत के लिए झटका है - Is Imran Khan US tour is a jolt for India
सक़लैन ईमान, बीबीसी संवाददाता, इस्लामाबाद
इंग्लैंड में खेले गए वर्ल्ड कप 2019 के दौरान कई लोग सोच रहे थे कि 1992 में इमरान ख़ान ने जिस तरह पाकिस्तान को विश्वकप जिताया था, शायद 2019 में भी वैसा ही कोई चमत्कार हो। लेकिन इस बार तो पाकिस्तान क्रिकेट वर्ल्ड कप के सेमीफ़ाइनल तक भी ना पहुंच सका। शायद इसलिए इमरान ख़ान के अमरीकी दौरे को कप जीतने जैसी क़ामयाबी की तरह देखा जा रहा है।
 
पाकिस्तान में इमरान ख़ान के अमेरिकी दौरे की कामयाबी को तक़रीबन इसी तरह महसूस किया जा रहा है, जिस तरह उन्होंने 1992 में वर्ल्ड कप जीतकर हासिल की थी। हालांकि 1992 की तरह हर शहर में जुलूस तो नज़र नहीं आ रहे हैं लेकिन आज जिस सियासी और आर्थिक दबाव में वो घिरे हुए हैं उसमें उनके अमरीकी दौरे की 'क़ामयाबी' को एक बड़ी राहत ज़रूर समझा जा रहा है।
 
मसलन अमेरिकी पत्रिका फ़ॉरन पॉलिसी ने इस दौरे को सराहा है। दुनिया के कई अख़बारों और टेलीविज़न चैनल, जो दक्षिणी एशिया पर गहरी नज़र रखते हैं, उन्होंने इस दौरे को इमरान ख़ान की एक बड़ी कामयाबी क़रार दिया है। अमेरिकी दौरे पर 'इमरान ख़ान द क्रिकेटर' ने न सिर्फ़ अपने क्रिकेट सेलिब्रिटी स्टेटस को इस्तेमाल किया बल्कि अपनी ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी की तालीम का फ़ायदा भी उठाया।
 
साफ़ नज़र आता है कि इमरान ख़ान ने और उनकी समर्थक आर्मी एस्टेबलिशमेंट ने राष्ट्रपति ट्रंप से मुलाक़ात से पहले अच्छा होमवर्क किया था। कैपिटल एरेना वन में उनका जलसा किसी भी पाकिस्तानी लीडर के लिए बड़ी कामयाबी है। अमेरिका में या किसी दूसरे देश में जाकर अपने देशवासियों को जनसभा में संबोधित करने की परंपरा हाल ही में भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने शुरू की है।
 
लेकिन पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान ख़ान ने जिस अंदाज़ में पहले एक कामयाब जलसा किया और फिर अगले ही दिन व्हाइट हाउस में राष्ट्रपति ट्रंप और फ़र्स्ट लेडी मेलानिया ट्रंप से मुलाक़ात की वो बिल्कुल एक ऐसा सीन बनाता है जैसे एक चर्चित छात्र नेता अपनी यूनिवर्सिटी के वाइस चांसलर के सामने छात्रों के मुद्दों की सूची लेकर गया हो।
 
अगर ये छात्रनेता अपने छात्रों के मुद्दे मंज़ूर करवा ले या फिर ये इंप्रेशन दिखाने में कामयाब हो जाए कि मुद्दे मान लिए गए हैं तो इसके समर्थकों की ख़ुशी की कोई सीमा नहीं रहती है। इमरान ख़ान को कुछ ऐसा ही हासिल हुआ है।
 
लेकिन व्हाइट हाउस में वो न मैच खेलने गए थे और ना ही कोई कामयाबी का अप्रत्याशित नाटक करने गए थे। उनके देश के अमेरिका से कई सालों से सर्द रिश्ते चले आ रहे थे, जिसकी वजह से अमेरिका ने पाकिस्तान को दी जाने वाली सैन्य मदद बंद की हुई है और उनका देश बदतरीन आर्थिक हालातों में घिरा हुआ है।
 
उनकी अमेरिका में कामयाबी को पाकिस्तान और अमेरिका के रिश्तों में एक नए अध्याय की शुरुआत कहा जा रहा है। और ये बदलाव उनके अमेरिका पहुंचने के बाद से शुरू नहीं हुआ है। इसके लिए मददगार हालात काफ़ी वक़्त से तैयार किए जा रहे थे। पाकिस्तान ने इस दौरान अफ़ग़ानिस्तान के तालिबान को अमेरिका के साथ बातचीत के लिए तैयार करने में अहम किरदार अदा किया।
 
और ज़ाहिर है अमेरिका ने इमरान ख़ान के दौरे से पहले ही उनके गर्मजोशी से स्वागत का बलोच लिब्रेशन आर्मी को आतंकवादी संगठन घोषित करके इशारा दे दिया था।
 
पाकिस्तान ने भी, चाहे दिखाने के लिए ही सही, जमात-उद-दावा के हाफ़िज़ सईद को गिरफ़्तार किया। और उन 'प्रोम्स' पर बातचीत पहले ही से हो रही होगी जो इमरान ख़ान के दौरे से चंद दिन पहले देखे गए।
 
लेकिन जिस बात ने दक्षिण एशिया में एक चिंगारी पैदा की वो राष्ट्रपति ट्रंप का कश्मीर के मुद्दे पर पाकिस्तान और भारत के बीच मध्यस्थता का बयान था। पाकिस्तान इस क़िस्म के बयान का कई सालों से इंतज़ार कर रहा है जबकि भारत कश्मीर को द्विपक्षीय मामला बताता रहा है।
 
लेकिन इस बार तो अमरीकी राष्ट्रपति ने इसका न सिर्फ़ सार्वजनिक तौर पर इज़हार किया बल्कि ये भी बताया कि उन्हें मध्यस्थ के इस किरदार अदा को करने के लिए भारत के प्रधानमंत्री मोदी ने भी कहा है। हालांकि भारत सरकार ने इसका खंडन किया है, लेकिन मोदी ने अभी तक ख़ामोशी ही बनाए रखी है।
 
अफ़ग़ानिस्तान में पाकिस्तान और अमेरिका के बीच सार्थक सहयोग, दहशतगर्दी की परिभाषा में दोनों देशों के बीच कम होता फर्क़, कश्मीर के बारे में पाकिस्तान के कानों में रस घोलने (चाहे कुछ देर के लिए ही सही), आर्थिक सहयोग की मीठी-मीठी बातें, पाकिस्तान और अमेरिका के बीच व्यापारिक रिश्तों में और राजनयिक सतह पर दोनों देशों के बीच दोतरफ़ा रिश्तों के लिए नए संकेत का पैदा होना। ये सब इस दौरे की अहम बातें हैं।
 
लेकिन दोनों को मालूम है कि बुनियादी रूप से और रणनीति के मामलों के बारे में दोनों ने कुछ कहने से गुरेज़ किया है। पाकिस्तान ने परमाणु समूह में शामिल होने के बारे में कोई बात नहीं की है और न ही अमरीका ने कोई इशारा किया है। इसके अलावा पाकिस्तान में चीन का ना सिर्फ़ व्यापारिक बल्कि उसके बढ़ते हुए सामरिक हितों के बारे में अमेरिका और पाकिस्तान के बीच फ़िलहाल खुलकर कोई बात नहीं हुई है।
 
क्या कोई बात हो सकती है और अगर होती है तो क्या नतीजा निकल सकता है इस बारे में भी कुछ भी नहीं कहा जा सकता है। ग्वादर बंदरगाह पर चीन के असर को अमेरिका स्वीकार करने के लिए तैयार नज़र नहीं आता है।
 
पाकिस्तान और अमेरिका के बीच भविष्य में रिश्ते का रूप क्या होगा ये प्रधानमंत्री इमरान ख़ान की राष्ट्रपति ट्रंप और फ़र्स्ट लेडी मेलानिया ट्रंप से गर्मजोशी से हुई मुलाक़ात से ज़्यादा पाकिस्तान के चीन के साथ गहरे आर्थिक और नक़्शा बदल देने वाले सामरिक रिश्तों के परिदृश्य में देखना होगा।
 
पाकिस्तान की असली चुनौती अब ये है कि वो चीन के साथ अपने हिमालय से ऊंचे रिश्तों को अमेरिका की राह में रुकावट न बनने दे। इस तरह अमेरिका से रिश्ते चीन के इस क्षेत्र में हितों की क़ीमत पर न बनाए। अमेरिका पाकिस्तान को कितनी जगह देगा ये तो कुछ दिनों बाद पता ही चल जाएगा।
 
पाकिस्तान के अमेरिका से रिश्तों के इतिहास को देखा जाए तो असल ताक़त अमेरिका के हाथ में ही रही है। 1950 के दशक से लेकर 21वीं सदी के पहले दशक तक अमेरिका अपनी ज़रूरतों के हिसाब से पाकिस्तान से रिश्तों की प्रकृति और शर्तें तय करता रहा है। अमेरिका तय करता था कि पाकिस्तान को क्या काम करना है और किस क़ीमत पर।
 
लेकिन अब पाकिस्तान में चीन के एक नए और ज़्यादा ताक़तवर किरदार के उभरने के बाद, पाकिस्तान क्षेत्र में अमेरिका से बेहतर सौदेबाज़ी करने की कोशिश करेगा। हालांकि इसमें पाकिस्तान को अभी तक कोई ख़ास कामयाबी हासिल नहीं हुई है।
 
26 साल पहले जब इमरान ख़ान इंग्लैंड को शिकस्त देकर ऑस्ट्रेलिया के मेलबर्न शहर से वर्ल्ड कप जीतकर पाकिस्तान पहुंचे तो वो जिस शहर में भी गए उनका ज़बर्दस्त स्वागत हुआ।
 
आज भी जब वो कैपिटल एरेना वन और व्हाइट हाउस में 'कामयाबी' के बाद पाकिस्तान वापस आए हैं तो उन्हें राजनयिक शब्दों में और स्ट्रैटिजिक अंदाज़ में बात करने के बजाय अपनी कामयाबी को आंकड़ों के ज़रिए बताना होगा।
 
उन्हें ये बताना होगा कि अमेरिका से रिश्ते बहाल करते हुए चीन के साथ पाकिस्तान के रिश्तों पर क्या असर पड़ेगा। अफ़ग़ानिस्तान में पाकिस्तान किस हद तक अमरीका की मदद के लिए तैयार है। क्या अमरीका ईरान और मध्य पूर्व में पाकिस्तान से कोई मदद चाहता है जो पाकिस्तान की अपनी सुरक्षा के लिए बेहतर ना हो।
 
इन हालात में अगर पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान ख़ान के अमेरिका के दौरे को देखने की कोशिश की जाए तो आर्थिक तौर पर एक कमज़ोर पाकिस्तान के हालात में बेहतरी आने में अभी काफ़ी वक़्त लग सकता है। अमेरिका के लिए चीन की वजह से भारत की अहमियत अपनी जगह बरक़रार रहेगी।
 
अमेरिका ने अफ़ग़ानिस्तान में शांति बहाली के प्रयासों में पाकिस्तान को खुले तौर पर शामिल किया है। लेकिन एक बात का दोनों को अहसास है कि वो अब सर्द जंग के दौर में नहीं रह रहे हैं।
 
लिहाज़ा शायद पाकिस्तान और अमेरिका के बीच के बहुत ही बेहतरीन रिश्तों के हवाले से इमरान ख़ान का आज के दौर का अय्यूब ख़ान बनने का ख़्वाब पूरा ना हो सके।
 
पाकिस्तान के अमेरिका से रिश्ते कितने बेहतर हुए इसे इस बात से मापा जाएगा कि पाकिस्तानी सेना अमेरिका को किस हद तक और किस स्तर की सेवा देती है। इमरान ख़ान की कामयाबी का जश्न शायद पाकिस्तान के लोगों के लिए ज़्यादा प्रसांगिक है और महत्वपूर्ण है, जहां विपक्ष उन्हें लगातार घेरे हुए है।
ये भी पढ़ें
सबसे ज्यादा अमेरिकी मदद पाने वाले देश