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Last Modified: मंगलवार, 5 अप्रैल 2016 (11:03 IST)

नाकामी में छुपा है कामयाबी का राज?

नाकामी में छुपा है कामयाबी का राज? - hidden psychology failure
- सारा क्रुडास 
अगर आप पहली कोशिश में नाकाम होते हैं, तो आपको लगातार कोशिश करते रहनी चाहिए। जब तक कि कामयाबी आपके कदम न चूम लें। हमें अक्सर ये सलाह मिलती है।
इसका मतलब तो ये है कि नाकामी ही कामयाबी की बुनियाद है। तो क्या इस बात का कोई सबूत है कि नाकामी ही असल में कामयाबी की बुनियाद है। यूं तो लोग नाकामी से घबराते हैं। नाकाम होने को अपने लिए शर्मिंदगी का सबब समझते हैं। इसे अपनी क़ाबलियत पर सवाल समझते हैं।
 
अब ये राय बदल रही है। आज नाकामी को ही कामयाबी की बुनियाद माना जा रहा है। सॉफ्टवेयर कंपनी एमयू सिग्मा के टॉम पोलमैन कहते हैं कि बार-बार की नाकामी से ही हम कुछ बेहतर कर पाते हैं। नए-नए तरह के तजुर्बे लोग करते हैं। इनमें से कई नाकाम साबित होते हैं। लेकिन, इन्हीं नाकामियों से आखिर में मिलता है कामयाबी का नुस्खा।

टॉम की कंपनी ने इस बारे में बड़े पैमाने पर जानकारी जुटाई है, जिसके मुताबिक, कोई काम करते वक़्त जब नाकामी हमारे हाथ लगती है, तो हम और बेहतर करने के लिए प्रेरित होते हैं।
 
दवा कंपनी हो, विज्ञान हो या तकनीकी क्षेत्र में काम करने वाली कंपनियां। इन जगहों पर काम करने वाले बहुत तरह के प्रयोग करते हैं। इनमें से ज्यादातर में नाकामी मिलती है। मगर इन्हीं से अच्छी दवाएं, विज्ञान के नए सिद्धांत या नई तकनीक सामने आई। कारोबार के लिए नाकामी बिल्कुल खराब चीज नहीं। इससे कुछ बेहतर ही निकलता है। आज दुनिया की नंबर वन कंपनी एप्पल में भी कई प्रयोग नाकाम रहे थे। जैसे स्टीव जॉब्स ने हाथ में लिए जाने वाले कंप्यूटर 'द न्यूटन' ईजाद किया था। मगर बाद में उन्हें ये ख़ुद अच्छा नहीं लगा।
 
अमेरिकी सॉफ्टवेयर कंपनी राइक के प्रमुख एंड्रर्यू फिलेव कहते हैं कोई नई चीज खड़ी करने के दौरान आप बहुत से नुस्खे आजमाते हैं। बहुत तरह के प्रयोग करते हैं। इनमें से कई नाकाम रहते हैं। इससे साफ है कि कामयाबी के लिए नाकामी जरूरी है।
 
खुद फिलेव अपना अनुभव बताते हैं। उन्होंने प्रोजेक्ट मैनेजमेंट कंपनी शुरू की, ताकि दूसरी कंपनियों की मदद कर सकें। मगर ये मैनेजमेंट करते-करते वो उन्हीं परेशानियों के शिकार हो गए, जिन कंपनियों के लिए वो काम कर रहे थे। इसके बाद उन्होंने अपनी पुरानी कंपनी बंद कर दी और एकदम नए कारोबार की शुरुआत की।
 
अपनी ही ईजाद की हुई चीज में सुधार करते रहना ही कारोबार में बेहतर करने का नियम है। आप दुनिया के किसी भी प्रोडक्ट को लीजिए। वो एक बार के तजुर्बे से ही नहीं सामने आया। पहला मोबाइल फोन सवा किलो वजन का था। आज का प्रेशर कुकर, शुरुआत में एकदम अजीब था।
 
आज की चमचमाती कारें, कभी मशीन से चलने वाली बैलगाड़ियों जैसे दिखती थीं। उन्हें बनाने के दौरान, कई मॉडल नाकाम साबित हुए। उन्हीं से बेहतर चीजें भी निकलकर आईं।
 
2007 में अमेरिका में आई मंदी के बाद, तमाम आईटी कंपनियों ने जोखिम लेने बंद कर दिए। इससे नए नुस्खे बाजार में आने बंद हो गए। लेकिन, एक दशक बाद फिर से नए तजुर्बे करने का दौर लौट आया है।
 
नई-नई तकनीकें आजमाई जा रही हैं। कंपनियां नए प्रयोग करने वालों को बढ़ावा दे रही हैं। डिजिटल दुनिया के बढ़ते दायरे को भरने के लिए नई-नई तकनीकों, नए मोबाइल एप्स, नई इंटरनेट ट्रिक्स की जरूरत महसूस की जा रही है। ये सब चीज़ें, प्रयोगों में नाकामी से ही सामने आएंगी।
 
नया सॉफ्टवेयर बनाने में नाकाम तजुर्बे बहुत काम आते हैं। आपने कोई नया सॉफ्टवेयर बनाया। उसे बाजार में उतारा। लोगों ने कमी बताई तो सुधारा। फिर से उन्हें लुभाने की कोशिश की। नाकाम रहे तो दूसरा सॉफ्टवेयर विकसित करने की कोशिश करेंगे। इस पूरी प्रक्रिया की बुनियाद नाकामी ही है।
 
यही हाल लग्जरी कारों का है। जब तक ये बनकर, ग्राहकों को भेजी जाती हैं, नई तकनीक बाजार में आ चुकी होती। फिर ग्राहकों को इनके अपडेट मुहैया कराए जाते हैं। जैसे सैटेलाइट नेविगेशन सिस्टम। इसमें लगातार अपडेट की जरूरत होती है। जो सिर्फ नई कारों में नहीं, बल्कि जो लोग कार इस्तेमाल कर रहे होते हैं, उन्हें भी मुहैया कराया जाता है।
 
अब नाकामी में कामयाबी खोजने का अमल, रिटेल कंपनियां, संगीत कंपनियां और दवा कंपनियां भी कर रही हैं। 
 
टॉम पोलमैन कहते हैं कि आपको नाकामी भले ही बेकार लगे, मगर ये तरक्की के लिए जरूरी है। इससे कंपनियां रणनीति बदलने पर मजबूर होती हैं। ग्राहकों को कुछ नया और बेहतर मिलता है। तो अब से नाकामी को हल्के में मत लीजिएगा। उसी से खोज निकालिएगा अपनी कामयाबी का नुस्खा।