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Written By BBC Hindi
Last Modified: रविवार, 6 जून 2021 (11:59 IST)

गूगल, अमेज़ॉन जैसी कंपनियों पर पड़ेगी टैक्स की मार, G-7 देशों ने 'ऐतिहासिक' डील फ़ाइनल की

गूगल, अमेज़ॉन जैसी कंपनियों पर पड़ेगी टैक्स की मार, G-7 देशों ने 'ऐतिहासिक' डील फ़ाइनल की - G7 leaders strike deal to tax Google, Amazon and other tech giants
ब्रिटेन के वित्त मंत्री ऋषि सुनक ने कहा है कि दुनिया की शीर्ष अर्थव्यवस्थाओं वाले देशों के समूह जी-7 ने बहुराष्ट्रीय कंपनियों पर टैक्स लगाने की 'ऐतिहासिक' डील फ़ाइनल की है।

लंदन में हुई इन देशों के वित्त मंत्रियों की बैठक में 15 फ़ीसदी के न्यूनतम कॉरपोरेट टैक्स के सिद्धांत पर सहमति बनी है। इस फ़ैसले का असर अमेज़ॉन और गूगल जैसी कंपनियों पर पड़ेगा। इस फ़ैसले से उन सरकारों को करोड़ों डॉलर मिलेंगे, जो कोरोना महामारी की मार झेलने के दौरान कर्ज़ उतारने की कोशिश कर रही हैं।
 
अमेरिका, ब्रिटेन, फ़्रांस, जर्मनी, कनाडा, इटली और जापान के बीच ये समझौता होने से अन्य देशों पर भी यही राह अपनाने का दबाव बनेगा। ख़ासकर जी-20 समूह के उन देशों पर, जिनकी अगले महीने बैठक होने वाली है।
 
वित्त मंत्री सुनक ने कहा कि ये समझौता बहुराष्ट्रीय कंपनियों को व्यापार करने के लिए समान अवसर मुहैया कराने के लिए किया गया है।
 
उन्होंने कहा, "कई सालों के मंथन के बाद जी-7 के सदस्य देशों के वित्त मंत्री ग्लोबल टैक्स सिस्टम में ऐसे बदलाव लाने के ऐतिहासिक समझौते पर पहुंचे हैं, जो इस वैश्विक डिजिटल काल के मुफ़ीद हैं।"
 
क्या है इन बदलावों की ज़रूरत?
सरकारों के सामने लंबे वक़्त से अलग-अलग देशों में कारोबार चला रहीं बहुराष्ट्रीय कंपनियों से टैक्स वसूलने की चुनौती रही है। फिर अमेज़ॉन और फ़ेसबुक जैसी दिग्गज टेक कंपनियों में आए उछाल के बाद ये चुनौती और बड़ी हो गई।
 
आज की तारीख़ में कंपनियां ऐसे देशों में अपनी शाखाएं स्थापित कर सकती हैं, जहां उन्हें तुलनात्मक रूप से कम कॉरपोरेट टैक्स चुकाना पड़ता है और वो वहीं अपना मुनाफ़ा दिखाती हैं।
 
ऐसे में उन्हें सिर्फ़ स्थानीय दरों के हिसाब से ही टैक्स देना होता है, भले उनका ज़्यादा मुनाफ़ा कहीं और हो रही बिक्री से आ रहा हो। ये वैध भी है और आमतौर पर कंपनियां ऐसा करती भी हैं। ये समझौता होने से कंपनियों की इस कार्यशैली पर दो तरह से लगाम लगेगी।
 
पहला, जी-7 एक वैश्विक न्यूनतम टैक्स दर लागू करना चाहता है, जिससे उन देशों की होड़ ख़त्म हो जाए, जो टैक्स की दरें कम रखकर आगे निकलने का रास्ता अपनाते हैं।
 
दूसरा, इन नियमों का मक़सद कंपनियों से उन देशों में टैक्स भुगतान कराने का होगा, जहां वो अपना उत्पाद या सेवा बेच रही हैं। बजाय उन देशों के, जहां वो अपना मुनाफ़ा दिखाती हैं।
 
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