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Written By BBC Hindi
Last Updated : सोमवार, 10 फ़रवरी 2020 (10:06 IST)

क्या बीजेपी का 48 सीट का दावा सच हो सकता है? दिल्ली विधानसभा चुनाव

क्या बीजेपी का 48 सीट का दावा सच हो सकता है? दिल्ली विधानसभा चुनाव - Delhi Assembly Election 2020
प्रशांत चाहल (बीबीसी)
 
दिल्ली विधानसभा चुनाव के सभी एग्ज़िट पोल जहां आम आदमी पार्टी की सत्ता में वापसी का इशारा कर रहे हैं, वहीं दिल्ली बीजेपी के अध्यक्ष मनोज तिवारी के एक दावे ने लोगों में बेचैनी पैदा कर दी है। सोशल मीडिया पर इस बात की चर्चा है कि मनोज तिवारी इतने दावे से कैसे कह सकते हैं कि दिल्ली चुनाव में बीजेपी की 48 सीटें आएंगी?
दरअसल, दिल्ली में मतदान रुकने के बाद मनोज तिवारी ने एक ट्वीट किया था। उन्होंने लिखा कि ये सभी एग्ज़िट पोल फ़ेल होंगे। मेरा ये ट्वीट संभालकर रखिएगा। भाजपा दिल्ली में 48 सीट लेकर सरकार बनाएगी। कृपया ईवीएम को दोष देने का अभी से बहाना न ढूंढें।
 
दिल्ली में 62.59% मतदान
 
रविवार शाम को चुनाव आयोग ने एक जांच रिपोर्ट के आधार पर ईवीएम मशीनों से छेड़छाड़ की सभी चर्चाओं को बेबुनियाद और फ़र्ज़ी बताया। साथ ही मुख्य निर्वाचन अधिकारी रणबीर सिंह ने कहा कि दिल्ली में 8 फरवरी को 62.59 परसेंट मतदान हुआ, जो 2019 के लोकसभा चुनाव के दौरान दिल्ली में हुए मतदान की तुलना में लगभग 2 फ़ीसदी ज्यादा हैं, हालांकि पिछले विधानसभा चुनावों की तुलना में इस बार वोटिंग थोड़ी कम हुई है।
 
चुनाव आयोग के अनुसार 2013 के विधानसभा चुनाव में दिल्ली में 65.63 परसेंट और 2015 के चुनाव में 67.12 परसेंट वोटिंग हुई थी। इस बार बल्लीमारान विधानसभा सीट पर सबसे अधिक 71.6 फ़ीसद वोट पड़े, वहीं दिल्ली कैंट विधानसभा सीट पर सबसे कम 45.4 फ़ीसद वोटिंग दर्ज की गई।
 
चुनाव आयोग के मुताबिक़, इस बार दिल्ली में महिलाओं और पुरुषों ने लगभग बराबर वोटिंग की। महिलाओं के 62.55 फ़ीसद, वहीं पुरुषों के 62.62 फ़ीसद वोट दर्ज किए गए। चुनाव आयोग ने कहा है कि मतों की गणना 11 फ़रवरी को सुबह 8 बजे शुरू होगी और नतीजे दोपहर बाद घोषित किए जाएंगे।
 
इस बीच अपने-अपने सैंपलों के आधार पर समाचार चैनलों ने अपनी सहयोगी एजेंसियों के साथ मिलकर जो एग्ज़िट पोल किए हैं, उनके अनुसार दिल्ली में आम आदमी पार्टी को 50-65 और बीजेपी को 10-22 सीटें मिलनी चाहिए। 70 सीटों वाली दिल्ली विधानसभा में बहुमत का आंकड़ा 36 है और एग्ज़िट पोल्स के नतीजे यदि सटीक रहे तो आम आदमी पार्टी को सत्ता में रहने में कोई दिक्क़त नहीं होगी।
क्या बड़ा उलटफेर संभव है?
 
लेकिन इन एग्ज़िट पोल्स में 2019 के लोकसभा चुनाव की दूसरी सबसे बड़ी पार्टी रही, कांग्रेस को 0-2 या ज़्यादा से ज़्यादा 3 सीटें दी गई हैं। और तो और, एग्ज़िट पोल्स बता रहे हैं कि 8 महीने पहले लोकसभा चुनाव में दिल्ली की सातों सीटें जीतने वाली भारतीय जनता पार्टी का दिल्ली में जितना वोट शेयर था, वो उस चुनाव में तीसरे नंबर की पार्टी रही आप ने अपने नाम कर लिया है।
 
पर क्या इतना बड़ा उलटफेर संभव है? और लोकसभा-विधानसभा चुनावों में मतदाताओं के वोटिंग पैटर्न और एग्ज़िट पोल क्या संकेत दे रहे हैं? इसे समझने के लिए हमने चुनाव विश्लेषक भावेश झा से बात की।
 
भावेश का मानना है कि भारतीय जनता पार्टी अगर लोकसभा चुनाव-2019 के नतीजों को आधार मानकर दिल्ली विधानसभा में 45 से ज़्यादा सीटें लाने की सोच रही है तो चुनाव के नतीजे उनकी भावनाओं को काफ़ी आहत कर सकते हैं, क्योंकि देश में वोटिंग का पैटर्न फ़िलहाल ऐसा ही है।
 
भावेश पिछले कुछ विधानसभा चुनावों की मिसाल देकर कहते हैं कि चुनावों में लीडरशिप यानी चेहरा अब बहुत बड़ी भूमिका में है। लोग मुद्दों के साथ-साथ चेहरा भी देख रहे हैं और जिस पर वे दिल-ठोककर विश्वास कर पा रहे हैं, उसे वो सपोर्ट कर रहे हैं।
 
अरविंद केजरीवाल के सामने कौन?
 
मसलन, 2019 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी गठबंधन ने झारखंड की 14 में से 12 लोकसभा सीटों पर जीत हासिल की। पार्टी को बंपर वोट मिले, लेकिन कुछ ही महीने बाद विधानसभा चुनाव में लोगों ने बीजेपी को नकार दिया।
 
इसी तरह लोकसभा चुनाव में महाराष्ट्र से जितने वोट और सीटें बीजेपी को मिलीं, विधानसभा चुनाव में वह अनुपात बिगड़ता दिखा और बीजेपी प्रदेश में सबसे बड़ी पार्टी तो ज़रूर बनी, पर सरकार बनाने की स्थिति में नहीं थी।
 
यही पैटर्न हरियाणा विधानसभा चुनाव में भी देखने को मिला, जहां लोकसभा की तो सभी 10 सीटें पार्टी ने जीत लीं, लेकिन विधानसभा चुनाव के बाद सरकार बनाने के लिए उसे जेजेपी जैसी नई पार्टी का सहारा लेना पड़ा।
 
भावेश झा हरियाणा का उदाहरण देते हुए समझाते हैं कि हरियाणा चुनाव में भूपेंद्र सिंह हुड्डा का सूबे की जनता के लिए ज़्यादा भरोसेमंद चेहरा होना, बीजेपी के मुख्यमंत्री मनोहरलाल की चुनौती बना जबकि प्रधानमंत्री के चुनाव के समय बीजेपी को यह चुनौती नहीं झेलनी पड़ी और मोदी के नाम पर सूबे ने एकतरफ़ा वोट दिया था।
 
इसी आधार पर भावेश कहते हैं कि दिल्ली में भी बीजेपी के सामने यही चुनौती थी कि उनके पास अरविंद केजरीवाल की छवि को टक्कर देने वाला कोई चेहरा नहीं था। लोग केजरीवाल से तुलना करना चाहते, तो भी उनके पास कोई विकल्प नहीं था। मोदी केजरीवाल के सामने नहीं हैं, ये सबको पता है और मनोज तिवारी-विजय गोयल का केजरीवाल जैसा करिश्मा नहीं है, इसे स्वीकार करना होगा।
 
तब 70 में से 65 सीटों पर बीजेपी थी आगे
 
वे बताते हैं कि लोकसभा चुनाव-2019 में जब दिल्ली देश के प्रधानमंत्री के लिए वोट कर रही थी तो भारतीय जनता पार्टी को 70 में से क़रीब 65 विधानसभा सीटों पर मज़बूत बढ़त थी। कांग्रेस पार्टी 5 सीटों पर आगे थी और आम आदमी पार्टी को किसी भी विधानसभा सीट पर बढ़त नहीं थी।
 
इसे अगर वोट प्रतिशत में देखें तो बीजेपी को लगभग 57 प्रतिशत वोट मिले थे, वहीं कांग्रेस पार्टी को 22 प्रतिशत और आम आदमी पार्टी को 18 प्रतिशत वोट मिले थे यानी आम आदमी पार्टी तीसरे नंबर पर थी। लेकिन इस विधानसभा चुनाव की वोटिंग से अगर आप उसकी तुलना करेंगे तो हो सकता है कि आपको एक बड़ा उटलफेर देखने को मिले और पार्टियों के पायदान पूरी तरह बदल चुके हों।
 
वे कहते हैं कि अगर राष्ट्र के नेता की बात हो तो मोदी बेशक आज भी सबसे लोकप्रिय चेहरा माने जाएंगे। लेकिन जब प्रदेश स्तर पर चुनाव हो रहे हैं तो लोगों को यह समझ आ रहा है कि वे मोदी के लिए वोट नहीं कर रहे।
 
भावेश के अनुसार कि राज्य में भी उसी पार्टी की सरकार बनाई जाए, जो केंद्र में है ताकि दोनों में बेहतर समन्वय हो और वे बेहतर काम कर सकें, इस थ्योरी पर लोगों का विश्वास कम हुआ है। लोग काम देख रहे हैं, मुद्दे और चर्चा देख रहे हैं, देख रहे हैं कि कौन उन्हें क्या दे सकता है और फिर अपने प्रदेश का नेतृत्व चुन रहे हैं। अन्य राज्यों की तरह दिल्ली में भी यही रिपीट हो जाए, तो इसमें कोई हैरानी नहीं होनी चाहिए।
 
Exit Polls: केजरीवाल सब पर भारी
 
सभी एग्ज़िट पोल्स सामने आने के बाद वरिष्ठ पत्रकार और राजनीतिक विश्लेषक प्रमोद जोशी ने बीबीसी से बातचीत में कहा था कि चुनावी अनुमानों से 2 बातें स्पष्ट हैं- एक तो यह कि आम आदमी पार्टी रिपीट करती नज़र आ रही है और दूसरी बात ये कि बीजेपी नंबर वन पार्टी यानी आम आदमी पार्टी के नज़दीक नहीं पहुंच पा रही है, वह काफ़ी दूर रहेगी सीटों के मामले में।
 
उन्होंने कहा कि नागरिकता संशोधन क़ानून को लेकर चले आंदोलन के बाद बीजेपी ने जो अभियान छेड़ा था, उससे लगता था कि ध्रुवीकरण हुआ होगा। मगर एग्ज़िट पोल्स इस बार उल्टा दिखा रहे हैं। जोशी के अनुसार कि संकेत मिल रहा है कि ध्रुवीकरण अधिक प्रभावी नहीं हुआ और मतदाताओं ने अपने विवेक का इस्तेमाल करते हुए आम आदमी पार्टी द्वारा अपनी सरकार को लेकर बनाई गई अवधारणा से सहमति जताई।
 
वे कहते हैं कि इन चुनावों में एक और बात हैरानी की रही कि बीजेपी ने किसी भी स्थानीय नेता को अपने नेतृत्व के तौर पर उभारने की कोशिश नहीं की। ऐसा ही कांग्रेस ने भी किया जबकि उसके पास अच्छे लोग हैं। कांग्रेस की सरकार रही है लंबे समय तक दिल्ली में, मगर फिर भी वह वॉकओवर देती नज़र आई।
 
अंत में उन्होंने कहा कि अभी तो एग्ज़िट पोल्स के अनुमान देखकर बस यह कहा जा सकता है कि आम आदमी पार्टी ने अपने पत्ते ठीक से खोले। रही सही स्थिति अब कुछ ही घंटों में स्पष्ट हो जाएगी।
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