मंगलवार, 23 अप्रैल 2024
  • Webdunia Deals
  1. सामयिक
  2. बीबीसी हिंदी
  3. बीबीसी समाचार
  4. China warns US on Afghanistan
Written By BBC Hindi
Last Modified: मंगलवार, 31 अगस्त 2021 (08:36 IST)

चीन ने अफगानिस्तान पर अमेरिका को दी नसीहत, कहा- दुनिया तालिबान की मदद करे

चीन ने अफगानिस्तान पर अमेरिका को दी नसीहत, कहा- दुनिया तालिबान की मदद करे - China warns US on Afghanistan
चीन ने कहा है कि सभी देशों ख़ासकर अमेरिका को तालिबान से संपर्क करना चाहिए और सक्रिय होकर उसे राह दिखानी चाहिए। चीनी विदेश मंत्री वांग यी ने इस बारे में अमेरिकी एंटनी ब्लिंकन से फ़ोन पर बात की।
 
चीन की सरकारी समाचार एजेंसी शिन्हुआ की रिपोर्ट के अनुसार चीन ने कहा कि अफगानिस्तान की स्थिति पूरी तरह बदल गई है और ऐसे में 'सभी पक्षों' का तालिबान से संपर्क करना और उसे 'सक्रिय रूप से राह दिखाना' आवश्यक हो गया है।
 
चीन ने एक बार फिर कहा कि अमेरिकी सैनिकों की वापसी ने अफगानिस्तान में आतंकवादी संगठनों को दोबारा उभरने का मौक़ा दे दिया है। चीनी विदेश मंत्री वांग यी ने इस बातचीत में अफगानिस्तान में अमेरिकी जीत के दावे पर भी सवाल खड़े किए।
 
'अफगानिस्तान में युद्ध सफल नहीं रहा'
वांग यी ने अमेरिकी विदेश मंत्री ब्लिंकन से कहा, "तथ्यों ने यह साबित कर दिया है कि अफगानिस्तान में युद्ध यहाँ से आतंकवादी समूहों को हटाने के अपने लक्ष्य में कभी सफल नहीं हो पाया। जिस तरह जल्दी में अमेरिकी और नेटो सेनाओं को यहाँ से हटाने का फ़ैसला किया गया, उसने अफगानिस्तान में कई आतंकवादी समूहों को फिर एकजुट होने का मौक़ा दे दिया है।"
 
वांग यी ने ज़ोर देकर कहा कि अमेरिका को आतंकवाद और हिंसा से लड़ने में अफ़गानिस्तान की मदद करने के लिए ठोस कदम उठाने चाहिए।
 
उन्होंने कहा, "अमेरिका को अफ़गानिस्तान की संप्रभुता और स्वतंत्रता का भी सम्मान करना चाहिए और आतंकवाद से लड़ने में दोहरा रवैया नहीं अपनाना चाहिए।"
 
चीनी विदेश मंत्री ने कहा कि अमेरिका को अंतरराष्ट्रीय समुदाय के साथ मिलकर अफगानिस्तान को आर्थिक और मानवीय मदद मुहैया करानी चाहिए, जिसकी उसे तत्काल ज़रूरत है।
 
वांग यी ने कहा, "अमेरिका को अंतरराष्ट्रीय समुदाय के साथ मिलकर नए अफ़गानिस्तान में राजनीतिक ढाँचा विकसित करने, सरकारी संस्थाओं को शांतिपूर्ण तरीक़े से काम करने, सामाजिक सुरक्षा और स्थिरता लाने, मुद्रा में गिरावट और महँगाई को करने और पुनर्निर्माण की शांतिपूर्ण कोशिश के लिए जल्द से जल्द सहयोग करना चाहिए।"
 
तालिबान के प्रति चीन का नर्म रवैया
चीन, रूस और पाकिस्तान उन चंद देशों में शामिल हैं जिन्होंने तालिबान के क़ब्ज़े के बाद भी काबुल में अपने दूतावास खुले रखे हैं।
 
अफ़गानिस्तान में चीनी राजदूत वांग यु ने हाल ही में तालिबान के अधिकारियों के साथ पहली कूटनीतिक वार्ता भी की थी।
 
चीन ने अफ़गानिस्तान पर तालिबान के क़ब्ज़े के कुछ ही दिनों बाद सार्वजनिक रूप से कहा था कि वो तालिबान के साथ दोस्ताना संबंध विकसित करना चाहता है।
 
चीनी विदेश मंत्रालय की प्रवक्ता हुआ चुनियांग ने 16 अगस्त को एक आधिकारिक बयान में कहा था, "चीन तालिबान के साथ दोस्ताना और आपसी सहयोग के रिश्ते विकसित करने के लिए तैयार है। चीन अफगानिस्तान में शांति और पुनर्निर्माण के लिए रचनात्मक भूमिका निभाना चाहता है।"
 
इतना ही नहीं, चीनी अधिकारियों ने अफ़गानिस्तान पर क़ब्ज़े से पहले ही तालिबान के एक प्रतिनिधिमंडल से बातचीत की थी, जिसका नेतृत्व तालिबान के वरिष्ठ नेता मुल्ला अब्दुल ग़नी बरादर ने किया था।
 
इस बातचीत में चीनी विदेश मंत्री वांग यी ने तालिबान प्रतिनिधिमंडल से कहा था कि उसे 'चीन विरोधी आतंकवादी संगठन' ईस्ट तुर्किस्तान इस्लामिक मूवमेंट (ईटीआईएम) से संबंध तोड़ने होंगे।
 
ईटीआईएम चीन के वीगर मुसलमानों का एक संगठन है, जो शिनजियांग में एक स्वतंत्र देश के गठन की माँग करता है। चीन तालिबान को लेकर काफ़ी पहले से ही नर्म रवैया अपनाता रहा है और अब उसने बाक़ी देशों से भी तालिबान का साथ देने की बात कही है। पाकिस्तान में पनाह के लिए बढ़ती अफ़ग़ान लोगों की तादाद, लोगों को तालिबान से क्या डर है?
 
तालिबान के क़रीब क्यों आना चाहता है चीन?
विदेश नीति के जानकारों का मानना है कि तालिबान को लेकर चीन का रवैया इसलिए भी नर्म है क्योंकि वो अपने यहाँ वीगर मुसलमानों के मसले पर चिंतित है।
 
मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक़ चीन के शिनजियांग प्रांत में करीब 10 लाख वीगर मुसलमान है और शिनजियांग की सीमा अफ़गानिस्तान से भी मिलती है। ऐसे में चीन को डर है कि वीगर मुसलमान और ईटीआएम के सदस्य अफ़गानिस्तान की ज़मीन का इस्तेमाल उसके ख़िलाफ़ गतिविधियों को अंजाम देने के लिए कर सकते हैं।
 
नतीजन, उसने पहले ही तालिबान को इस शर्त पर समर्थन देने की बात कही थी कि वो अफ़गानिस्तान के किसी हिस्से को उसके ख़िलाफ़ इस्तेमाल नहीं होने देगा।
 
चीन पर वीगर मुसलमानों के उत्पीड़न के आरोप लगते रहते हैं और इसकी वजह से अमेरिका समेत कई यूरोपीय देशों से उसके रिश्तों में तनाव जारी रहता है।
 
अफ़गानिस्तान में चीन के आर्थिक हित
चीन की रोड एंड बेल्ट परियोजना जैसी कई महत्वाकांक्षाए हैं और उसके लिए सेंट्रल एशिया में बड़े पैमाने पर इन्फ़्रास्ट्रक्टर और कम्युनिकेशन की ज़रूरत होगी।
 
अगर अफ़गानिस्तान में चीन को पर्याप्त सहयोग नहीं मिलेगा तो यह इस क्षेत्र में अपना प्रभाव बढ़ाने की उसकी योजनाओं को प्रभावित कर सकता है।
 
इसी तरह चीन-पाकिस्तान इकोनॉमिक कॉरिडोर भी एशिया में उसका एक बड़ा इन्फ़्रास्ट्रक्चर प्रोजेक्ट है लेकिन पाकिस्तान में चीनी अधिकारियों पर हमले होते रहते हैं। ऐसे में तालिबान से हाथ मिलाकर चीन क्षेत्र में अपनी सुरक्षा सुनिश्चित करना चाहता है।
 
चीन ने एनक कॉपर माइन और अमू दरिया एनर्जी जैसे निवेश अफ़गानिस्तान में किए हैं। साथी ही अफ़गानिस्तान में सोना, कॉपर, ज़िंक और लोहे जैसी क़ीमती धातुओं का भंडार है। इसलिए वहाँ अपने लिए प्रतिकूल माहौल बनाकर चीन भविष्य में निवेश की संभावनाओं को कम नहीं करना चाहेगा।
 
चीन-अमेरिका संबंध
वांग यी ने चीन-अमेरिकी रिश्तों पर टिप्पणी करते हुए कहा है कि उनकी सरकार अमेरिका के साथ संबंधों को शक्ल देते हुए अमेरिका के चीन के प्रति रुख़ को ध्यान में रखेगी।
 
उन्होंने कहा है कि टकराव से बेहतर संवाद है और संघर्ष से बेहतर सहयोग है। चीन सरकार अमेरिका के साथ अपने संबंधों को अमेरिका की ओर से चीन के प्रति अख़्तियार किए गए रुख़ के आधार पर तय करेगी।
 
उन्होंने कहा कि अगर अमेरिका द्विपक्षीय रिश्तों को वापस पटरी पर लाना चाहता है तो उसे आंख बंद करके चीन की छवि बिगाड़ने और उस पर हमला करने से बाज आना चाहिए। और, चीन की संप्रभुता, सुरक्षा और विकास से जुड़े हितों को नुक़सान पहुँचाना बंद करना चाहिए।
ये भी पढ़ें
क्यों तेजी से नौकरियां छोड़ रहे हैं लोग