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Written By BBC Hindi
Last Modified: गुरुवार, 6 अक्टूबर 2022 (07:44 IST)

चीन की अर्थव्यवस्था के संकट में होने की 5 वजहें क्या हैं

चीन की अर्थव्यवस्था के संकट में होने की 5 वजहें क्या हैं - china economy in crisis
सुरंजना तिवारी, एशिया बिज़नेस संवाददाता
चीन की अर्थव्यवस्था की रफ्तार धीमी पड़ती जा रही है। बेहद कड़ाई से लागू की जा रही सरकार की ज़ीरो-कोविड पॉलिसी और ग्लोबल मांग कमज़ोर पड़ने से चीनी इकोनॉमी सुस्ती की शिकार होती दिख रही है।
 
चीनी अर्थव्यवस्था की दूसरी तिमाही के ग्रोथ आंकड़े जल्द ही आने वाले हैं। अगर दुनिया की इस दूसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था में गिरावट आती है तो ग्लोबल मंदी की आशंकाएं और बढ़ जाएंगी।
 
चीन ने 5.5 फ़ीसदी सालाना आर्थिक विकास का लक्ष्य तय किया है। लेकिन अब यह मुमकिन नहीं दिखता है। हालांकि चीन के आर्थिक मामलों से जुड़े बड़े अधिकारी इस लक्ष्य को हासिल करने को ज़्यादा तवज्जो नहीं दे रहे हैं। लेकिन पहली तिमाही के दौरान चीन की अर्थव्यवस्था गिरावट से बाल-बाल बची थी।
 
चीन, ब्रिटेन और अमेरिका की तरह अत्यधिक महंगाई से तो नहीं जूझ रहा है, लेकिन इसके सामने कुछ दूसरी समस्याएं हैं। चीन में बनी चीज़ों की मांग घरेलू बाज़ार और इंटरनेशनल मार्केट दोनों जगह कम हो गई है। अमेरिका जैसी दूसरी बड़ी अर्थव्यवस्थाओं के साथ उसका व्यापार युद्ध भी चीन की ग्रोथ को धीमा कर रहा है।
 
चीनी मुद्रा युआन दशकों के सबसे ख़राब प्रदर्शन की ओर बढ़ रही है। कमज़ोर मुद्रा से बढ़ने वाली अनिश्चचतताओं की वजह से निवेशक दूर होने लगते हैं और फ़ाइनेंशियल मार्केट में अनिश्चितता बढ़ जाती है। इससे केंद्रीय बैंक के लिए इकोनॉमी में पैसा डालना भी मुश्किल हो जाता है।
 
ये सब ऐसे वक्त में हो रहा है जब राष्ट्रपति शी जिनपिंग का क़द काफ़ी बड़ा हो चुका है। 16 अक्टूबर से चीनी कम्युनिस्ट पार्टी की बैठक में उन्हें तीसरी बार राष्ट्रपति घोषित किया जा सकता है। आख़िर वो कौन सी वजहें हैं जिनसे चीनी अर्थव्यवस्था में गिरावट के ख़तरे पैदा हो गए हैं
 
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1. ज़ीरो कोविड पॉलिसी की मार
शेनजेन और तियानजिन जैसे चीन के मैन्यूफ़ैक्चरिंग हब समेत कई शहरों में कोविड फैला हुआ है और इसे काबू करने के लिए सरकार ने बेहद कड़े प्रतिबंध लगाए हैं। लोग खाने-पीने में कम खर्च कर रहे हैं। रिटेल, टूरिज्म और दूसरी सर्विस आधारित उद्योगों पर लगातार दबाव बना हुआ है।
 
मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर का भी हाल अच्छा नहीं है। नेशनल ब्यूरो ऑफ स्टैटिस्टिक्स के मुताबिक़, सितंबर में मैन्युफैक्चरिंग पटरी पर लौटती दिखी है। ये इसलिए कि सरकार इन्फ्रास्ट्रक्चर पर ज्यादा खर्च कर रही है। लेकिन ये कदम मैन्युफैक्चरिंग की रफ्तार रुकने के दो महीने बाद उठाया गया। सरकार के इस कदम पर सवाल भी उठे हैं। प्राइवेट सर्वे के मुताबिक वास्तव में सितंबर में फैक्ट्री गतिविधियों में गिरावट आई है। मांग की कमी से उत्पादन, नए ऑर्डर और रोजगार पर असर पड़ा है। ऊंची ब्याज दरों, महंगाई और यूक्रेन युद्ध की वजह से अमेरिका जैसे देश में डिमांड घट रही है।
 
विशेषज्ञ मानते हैं कि चीन अपनी अर्थव्यवस्था को रफ्तार देने के लिए और भी कदम उठा सकता है। लेकिन जब तक जीरो कोविड पॉलिसी खत्म नहीं हो जाती तब तक ऐसा करने की बहुत कम वजह नजर आती है।
 
एसएंडपी ग्लोबल रेटिंग के चीफ एशिया इकोनॉमिस्ट लुई कुइजिस कहते हैं, ''इकोनॉमी में इस वक्त रकम डालने की कोई वजह नहीं है। अगर कंपनियां अपना विस्तार नहीं कर सकतीं और लोग खर्च नहीं कर पा रहे हैं तो इसका कोई फायदा नहीं है।''
 
2. चीन पर्याप्त क़दम नहीं उठा रहा
चीन ने छोटे कारोबारों, इन्फ्रास्ट्रक्चर और रियल एस्टेट को रफ्तार देने के लिए एक ट्रिलियन युआन के पैकेज का एलान किया था। लेकिन ग्रोथ टारगेट और नौकरियां पैदा करने के लिए जिस खर्च की जरूरत है उसे बढ़ावा देने लिए और भी कदम उठाने की जरूरत है।
 
इनमें इन्फ्रास्ट्रक्चर में निवेश बढ़ाने, होम बायर्स, प्रॉपर्टी डेवलपर्स और स्थानीय सरकारों के लिए कर्जे की शर्तें आसान करने और परिवारों को दिया जाने वाली टैक्स छूट जैसे कदम शामिल हैं।
 
कुइजिस कहते हैं, ''पिछले कुछ वक्त के दौरान आर्थिक कमजोरियों के जो दौर आए हैं उनमें सरकार की ओर से उठाए गए कदम कमजोर रहे हैं।''
 
3. प्रॉपर्टी मार्केट संकट में
हाउसिंग सेक्टर में रियल एस्टेट गतिविधियों और निगेटिव सेंटिमेंट की वजह ने ग्रोथ धीमी कर दी है, इसमें कोई शक नहीं है। प्रॉपर्टी और दूसरे उद्योग की चीन की जीडीपी में एक तिहाई हिस्सेदारी है।
 
कुइजिस कहते हैं, ''जब हाउसिंग सेक्टर में कॉन्फिडेंस कमजोर पड़ता है तो लोगों का आर्थिक हालात में विश्वास कम होने लगता है।
 
चीन में घर ख़रीदार अधूरी इमारतों पर क़र्ज़ की किश्तें नहीं चुका रहे हैं और कई को शक़ है कि उनके घर पूरे बन भी पाएंगे या नहीं। नए घरों की मांग में कमी आई है और इस वजह से निर्माण क्षेत्र में इस्तेमाल होने वाले कच्चे माल का आयात भी गिरा है।
 
चीन की सरकार रियल एस्टेट सेक्टर को राहत देने की कोशिशें कर रही है, लेकिन बावजूद इसके प्रॉपर्टी के दाम गिर रहे हैं। कई शहरों में इस साल प्रॉपर्टी के दामों में बीस प्रतिशत से अधिक की कमी आई है।
 
प्रॉपर्टी डेवलपर दबाव में हैं और कई विश्लेषकों का मानना है कि रियल एस्टेट मार्केट में फिर से विश्वास बहाल करने के लिए सरकार को और भी अधिक क़दम उठाने होंगे।
 
4. जलवायु परिवर्तन से बढ़ रही हैं मुश्किलें
मौसम में बदलावों का असर चीन के उद्योग जगत पर दिखने लगा है। अगस्त में देश के दक्षिणी-पश्चिमी प्रांत सीचुआन और केंद्रीय क्षेत्र के शहर जोंगकिंग में भीषण गर्मी के बाद सूखा पड़ा।
 
एयर कंडीशन की मांग बढ़ी तो सिर्फ़ हाइड्रो पॉवर पर ही निर्भर रहने वाले इस क्षेत्र के बिजली ग्रिड पर भारी दबाव पड़ा।
 
आईफ़ोन निर्माता फॉक्सकॉन और टेस्ला जैसी बड़ी कंपनियों की फ़ैक्ट्रियों समेत बड़ी फ़ैक्ट्रियों को या तो अपने काम के घंटों में कटौती करनी पड़ी या पूरी तरह से ही फ़ैक्ट्रियां बंद करनी पड़ीं।
 
चीन के सांख्यिकी ब्यूरो के मुताबिक़, अगस्त में लोहे और स्टील उद्योग का मुनाफ़ा 2022 के पहले सात महीनों में पिछले साल के मुक़ाबले 80 फ़ीसदी तक गिर गया था।
 
आख़िरकार चीन सरकार को मदद के लिए आगे आना पड़ा। सरकार ने स्थानीय किसानों और बिजली कंपनियों को अरबो डॉलर का राहत पैकेज दिया।
 
5. चीन की बड़ी टेक कंपनियों से भाग रहे हैं निवेशक
चीन की बड़ी टैक कंपनियों पर नियामक एजेंसियों की कार्रवाइयों का असर दिखने लगा है। दो साल से जारी इन कार्रवाइयों का कोई सकारात्मक नतीजा नहीं दिखा।
 
टेन्सेंट और अलीबाबा ने पिछले क्वार्टर में अपने मनुाफ़े में पहली बार गिरावट देखी है। टेन्सेंट का मुनाफ़ा 50 प्रतिशत गिरा है जबकि अलीबाबा की शुद्ध आय में आधे से अधिक गिरावट हुई है।
 
हाल के महीनों में दसियों हज़ार लोगों की नौकरियां गई हैं जिससे पहले से जारी रोज़गार संकट और गंभीर हो गया है। चीन में इस समय 16-24 आयु वर्ग का हर पांचवां युवा बेरोज़गार है। दीर्घकाल में इसका असर चीन की उत्पादकता और विकास पर पड़ सकता है।
 
निवेशकों को सरकार के रवैये में भी बदलाव दिख रहा है। जैसे-जैसे सत्ता पर शी जिनपिंग की पकड़ मज़बूत हुई है, चीन की सबसे कामयाब कंपनियों में से कुछ पर सख़्ती बढ़ी है।
 
सरकार के मालिकाना हक़ वाली कंपनियों को फ़ायदा पहुंचता प्रतीत हो रहा है, ऐसे में बड़े विदेशी निवेशक चीन से अपना पैसा निकाल रहे हैं।
 
जापान की सॉफ्टबैंक ने अलीबाबा से बड़ा पैसा निकाल लिया है, जबकि वॉरेन बफ़ेट की कंपनी बर्कशायर हैथवे चीन की इलेक्ट्रिक वाहन निर्माता कंपनी बीवाईडी में अपनी हिस्सेदारी बेच रही है। टेन्सेंट से इस साल की दूसरी छमाही में ही सात अरब डॉलर से अधिक का निवेश निकल चुका है।
 
वहीं अमेरिका के स्टॉक मार्केट में सूचीबद्ध चीन की कंपनियों पर अमेरिका शिकंजा कस रहा है।
 
एस एंड पी ग्लोबल रेटिंग्स ने हाल ही में अपने एक नोट में कहा है, "निवेश को लेकर कुछ फैसलों को टाला जा रहा है और कुछ विदेशी कंपनियों दूसरे देशों में अपनी उत्पादक क्षमता बढ़ाना चाहती हैं।"
 
दुनिया भी अब इस बात को समझ रही है कि हो सकता है चीन उद्योग के प्रति उतना खुला ना रहे जितना की वो पहले था। जिस आर्थिक प्रगति ने बीते कुछ दशकों में चीन को आगे बढ़ाया था, ऐसा लग रहा है कि शी जिनपिंग अब उस पर ही दांव खेल रहे हैं।
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