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Last Modified: शनिवार, 2 फ़रवरी 2019 (11:21 IST)

बजट 2019 से बीजेपी को चुनाव में कितना फ़ायदा: नज़रिया

बजट 2019 से बीजेपी को चुनाव में कितना फ़ायदा: नज़रिया - Budget 2019
- राधिका रामासेशन (वरिष्ठ पत्रकार) 
 
वित्त मंत्री अरुण जेटली की ग़ैरमौजूदगी में दूसरी बार मंत्रालय का प्रभार संभाल रहे पीयूष गोयल ने शुक्रवार को संसद में इस सरकार का अंतिम बजट पेश किया। बजट से काफी उम्मीदें थीं कि कृषि क्षेत्र के लिए कुछ बड़ी घोषणाएं सरकार की तरफ से की जाएंगी, पर ऐसा कुछ नहीं हुआ।
 
 
बजट के दौरान पीयूष गोयल ने कहा कि जिन किसानों के पास दो हेक्टेयर जमीन या उससे कम है, उसे सालाना छह हज़ार रुपए सरकार की तरफ से तीन किस्तों में दिया जाएगा। तेलंगाना में चंद्रशेखर राव की सरकार इस तरह की योजना पहले से चला रही है। केंद्र सरकार की यह घोषणा उससे कुछ मिलती जुलती है, हालांकि तेलंगाना की योजना में कुछ और विशेषताएं भी शामिल हैं।
 
 
अब रही बात सैन्य बजट की तो इसमें काफी बढ़ोत्तरी की गई है। आम वेतनभोगी लोगों को भी बजट में राहत दी गई है, हालांकि टैक्स स्लैब को कुछ नहीं किया गया है, बस कुछ छूट दी गई हैं। गैर संगठित क्षेत्रों से जुड़े लोगों के लिए पेंशन की बात भी की गई है।
 
 
कर्जमाफी Vs सालाना छह हज़ार
कुल मिलाकर बजट में कृषि, सैन्य, वेतनभोगी और गैर संगठित क्षेत्र से जुड़े लोगों को खुश करने की कोशिश हुई है। सूक्ष्म और मध्यम उद्यम से जुड़ी महिलाओं से अगर कुछ खरीदारी की जाती है तो जीएसटी में कुछ लाभ दिया जाएगा।
 
 
बजट में नरेंद्र मोदी की सरकार ने हर क्षेत्र को कुछ न कुछ देने की कोशिश की है। अब सवाल यह उठता है कि जिस हिस्से को ध्यान में रख कर बजट में घोषणाएं हुई हैं, वो भाजपा को आगामी चुनावों में फायदा दिला पाएगी? जहां तक किसानी वर्ग की बात है तो कर्जमाफी का असर ऐसी घोषणाओं से कहीं अधिक होता है।
 
 
योजना लागू करना कितना मुश्किल?
किसानों को सालाना छह हज़ार रुपए दिने जाने की पीयूष गोयल की घोषणा एक लक्षित योजना है और इसे लागू करने में कई परेशानियां आड़े आ सकती हैं। पहला, हमारे देश में भूमि रिकॉर्ड की हालत पहले से ही काफी बुरी है और ऐसे में किसानों को अधिकारियों के सामने यह साबित करना होगा कि उनके पास दो हेक्टेयर या उससे कम भूमि है।
 
 
भूमि रिकॉर्ड पीढ़ियों पुरानी है और ऐसे में उन्हें योजना का लाभ लेने में काफी मुश्किलों का सामना करना पड़ सकता है। दूसरी परेशानी यह है कि भूमि रिकॉर्ड के लिए किसानों को अधिकारियों के पास चक्कर लगाने होंगे। जाहिर सी बात है यह भ्रष्टाचार को बढ़ावा देगा।
 
 
इतनी परेशानियों के बाद किसानों को सालाना महज छह हज़ार रुपए मिलेंगे। किसानों को कृषि के लिए सामान, जैसे उर्वरक, बीज आदि खरीदने में इससे कहीं ज़्यादा खर्च होते हैं। इन बिंदुओं पर ग़ौर करें तो मुझे नहीं लगता है कि छह हज़ार रुपए सालाना किसानों को बहुत फायदा पहुंचा पाएगा।
 
 
गैर संगठित क्षेत्र को मिल पाएगा फायदा?
अब बात करते हैं गैर संगठित क्षेत्र की। इस क्षेत्र की परेशानी की कमोबेश किसानी क्षेत्र से मिलती जुलती है। सरकार के पास इससे जुड़े आंकड़े स्पष्ट नहीं हैं। अब सरकार यह कैसे तय करेगी कि गैर संगठित क्षेत्र से जुड़े अमुक व्यक्ति की आमदनी 15 हज़ार रुपए या उससे कम है।
 
 
इस क्षेत्र में आमदनी बढ़ती-घटती रहती है। कभी पांच हज़ार की कमाई भी होती है तो कभी 20 हज़ार रुपए की भी। इस क्षेत्र के कामगार की कमाई निश्चित नहीं है और पलायन काफी ज्यादा है। मान लीजिए कि एक कामगार आज दिल्ली में काम कर रहा है, कल वो कुछ महीनों के लिए अपने गांव जा सकता है और वहां छोटे-मोटे काम कर सकता है।
 
 
इस हिसाब से देखा जाए तो गैर संगठित क्षेत्र के लिए जो पेंशन योजना की घोषणा की गई है, वो अच्छी तो ज़रूर है पर इसे लागू कैसे किया जाएगा, यह स्पष्ट नही हैं और मुझे लगता है कि इसको लागू करने में काफी परेशानियां आएंगी। कुछ ऐसे राज्य हैं, जहां गैर संगठित क्षेत्र के कामगार को पेंशन दिया जा रहा है। यह पहली दफा नहीं है जब इस तरह की घोषणा की गई हो।
 
 
बजट या चुनावी घोषणा पत्र?
यह भी सवाल उठ रहे हैं कि किसानों को छह हज़ार रुपए सालाना दिए गए तो इससे सरकारी कोष पर दबाव बढ़ेगा। लेकिन यह सच नहीं है। आर्थिक विशेषज्ञों की मानें तो इसमें बहुत ज़्यादा खर्च नहीं आएगा।
 
 
किसानों के लिए बहुत सारी योजनाएं पहले से चल रही हैं। उन सभी योजनाओं को ख़त्म तो नहीं किया जाएगा, लेकिन यह योजना भी साथ चलाई जाएगी। चुनावों से पहले कई लोकलुभावन योजनाओं की घोषणा होती रही है और इस बार भी ऐसा ही हुआ है। सभी वर्गों को सरकार ने लुभाने की कोशिश की है।
 
 
मेरे हिसाब से सरकार ने अपना चुनावी घोषणा पत्र बजट के जरिए लोगों के सामने रखा है। जिस ढंग से प्रभारी वित्त मंत्री पीयूष गोयल ने संसद में भाषण दिया है, वह पूरी तरह चुनावी भाषण जैसा लगा।
 
 
अंतरिम बजट या पूर्ण बजट?
चुनावी साल में इसी तरह का बजट और भाषण सरकारें देती आई हैं। यह भी बहस चल रही थी कि सरकार अंतरिम बजट की जगह पूर्ण बजट पेश करेगी। भले ही सरकार इसे अंतरिम बजट कह रही हो, लेकिन घोषणाएं पूर्ण बजट की तरह की गई हैं।
 
 
हालांकि चुनावी साल में पूर्ण बजट पेश करना गैर संवैधानिक नहीं है पर पहले से यह परंपरा चली आ रही है कि सरकारें चुनावी साल में अंतरिम बजट पेश करती हैं। किसानों को छह हजार रुपए दिए जाने की योजना दिसंबर से लागू करने की बात कही गई है और जल्द ही इसकी पहली किस्त किसानों के खातों में भेजी जाएगी।
 
 
कुल मिलाकर अंत में यही कहा जा सकता है कि सरकार द्वारा पेश किया गया बजट आगामी चुनावों को ध्यान में रख कर तैयार किया गया था।
 
(बीबीसी संवाददाता संदीप कुमार सोनी से बातचीत पर आधारित)
 
 
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