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Last Updated : सोमवार, 26 अक्टूबर 2020 (11:50 IST)

बिहार चुनाव : महादलित, जिन पर नीतीश कुमार पर जानलेवा हमले का मुकदमा चल रहा है

बिहार चुनाव : महादलित, जिन पर नीतीश कुमार पर जानलेवा हमले का मुकदमा चल रहा है - Bihar elections Nitish Kumar Nandan Tola
नीरज प्रियदर्शी
बक्सर से, बीबीसी हिंदी के लिए
 
 
ढाई साल से अधिक वक़्त बीत गया। अब तो सब लोग भूल भी गए हैं। मगर हम लोगों को याद है कि हमारे टोले में प्रशासन ने कितना तांडव मचाया था। घर की बहू-बेटियों पर कितना अत्याचार हुआ था। उन्हें जबरन घर से उठाकर जेल में डाल दिया गया। वैसे लोगों पर मुकदमा किया गया जो मर चुके हैं और जो विदेश में रहते हैं। आरोप लगाया गया कि हमने नीतीश कुमार के ऊपर जानलेवा हमला किया।
 
ये शब्द हैं बक्सर ज़िले के नंदन टोला की बुजुर्ग महादलित महिला मन्ना देवी के।
 
नंदन टोला बिहार की राजधानी पटना से लगभग 150 किमी दूर बक्सर के डुमरांव प्रखंड में बसे नंदन गाँव का एक हिस्सा है।
 
महादलितों की बहुलता वाला यह टोला 12 जनवरी 2018 को तब चर्चा में आया था जब सात निश्चय योजना की समीक्षा यात्रा के क्रम में मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के काफ़िले पर पत्थरबाजी की घटना घटी थी।
 
 
इस मामले में 91 नामजद समेत करीब 2100 लोगों के ख़िलाफ़ नीतीश कुमार के ऊपर जानलेवा हमला करने का मुक़दमा दर्ज किया गया।
ग़रीबों पर किस बात के लिए मुकदमा?'
डुमरांव विधानसभा से इस बार चुनाव में उतरी जेडीयू प्रत्याशी अंजुम आरा से नंदन गांव के लोगों को उम्मीद है कि वो उनके ख़िलाफ़ मुकदमे को हटाने के लिए मुख्यमंत्री से बात करेंगी। अंजुम आरा ने इस बारे में बीबीसी से कहा कि मैं नंदन गांव के लोगों से मिली हूं. उनसे सभी मसलों पर बात हुई है। उन्हें अभी कोई दिक्कत नहीं है। उनका आशीर्वाद मेरे साथ है और मैं इस बात के लिए प्रतिबद्ध हूं कि मामले में जिन भी निर्दोष लोग उलझे हैं, उन्हें न्याय मिले। मैं इसके लिए मुख्यमंत्री जी से बात करूंगी।
इस मामले में अभियुक्त बेटे और बहू की बुजुर्ग मां मन्ना देवी आगे कहती हैं- "हम पूरी दुनिया में बदनाम हुए। अब जब यह सच भी सामने आ गया है कि घटना की वजह प्रशासनिक चूक थी और उसमें सरकार के ही लोगों का हाथ था, फिर भी हमारे ख़िलाफ़ मुक़दमा वापस नहीं लिया गया।''
 
''उल्टा हमें प्रताड़ित किया गया। अब कचहरी के चक्कर लगाकर परेशान हो गए हैं। आख़िर अब किस बात के लिए हम गरीब लोगों पर मुकदमा चलाया जा रहा है?"
 
क्यों हुई थी पत्थरबाजी?
नंदन गांव में मुख्यमंत्री के काफ़िले पर हुई पत्थरबाज़ी की घटना क्यों हुई थी, इसकी जांच पुलिस कर रही है और यह मामला अदालत के विचाराधीन है।
 
लेकिन, घटना के कुछ ही दिनों बाद मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने सरकार और पार्टी के स्तर से जांच के लिए बिहार जदयू अनुसूचित जाति प्रकोष्ठ के अध्यक्ष विद्यानंद विकल को नंदन गांव भेजा था।
 
विद्यानंद विकल ने मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को सौंपी अपनी रिपोर्ट में लिखा था कि स्थानीय विधायक ददन पहलवान और मंत्री संतोष निराला को मुख्यमंत्री के भ्रमण के पूर्व ही महादलित टोला के लोगों ने अपनी समस्याओं और मांगों से अवगत करा दिया था।
 
रिपोर्ट के अनुसार विधायक और मंत्री ने अगर थोड़ी गंभीरता के साथ महादलितों को समझाने की कोशिश की होती तो उन्हें साज़िश रचने वालों को चंगुल से बचाया जा सकता था।
 
पत्थरबाजी की साज़िश किसने रची?
विकल की जांच रिपोर्ट में पत्थरबाज़ी की घटना के मुख्य साज़िशकर्ता के रूप में रामजी यादव का नाम दर्ज है और उन्हें राजद पार्टी का समर्थक बताया गया है।
 
रामजी यादव नंदन गांव के ही रहने वाले हैं और महादलितों के टोले में लकड़ी चीरने वाली मशीन चलाते हैं।
 
रामजी ने बीबीसी से बातचीत में कहा- "सबसे पहले तो हम भाकपा माले से जुड़े हैं। राजद से मेरा कोई ताल्लुक नहीं हैं। और रही बात साज़िश रचने की तो मैं बस इतना ही कहूंगा कि अगर किसी की मां-बेटी के ऊपर आप हाथ उठाएंगे, तो कोई देखता नहीं रहेगा, वह प्रतिकार करेगा।''
 
''साज़िश तो उन लोगों ने रची जो टोला के लोगों को यह कहकर मुख्यमंत्री के पास ले गए कि उनकी बात मुख्यमंत्री से कराई जाएगी।‌ और यह काम वही लोग कर सकते हैं जो मुख्यमंत्री के करीबी हैं।"
 
रामजी यादव के मुताबिक़ नंदन टोला के लोग उस दिन मुख्यमंत्री से मिलकर सिर्फ़ इतना ही कहना चाहते थे कि सात निश्चय योजना का काम उनके टोले में नहीं हो रहा है, जो कि योजना के मुताबिक़ होना था।
अब नंदन गांव कैसा है?
नंदन गांव की आबादी लगभग 5000 है। दलितों और महादलितों की संख्या ज्यादा है। विशेष रूप से, नंदन टोला में 100 से अधिक महादलित परिवार रहते हैं।
 
टोले में प्रवेश के साथ ही सड़क के दोनों किनारे मानव मल दिखता है, जबकि सरकारी रिकॉर्ड में गांव खुले में शौच से मुक्त घोषित हो चुका है।
 
इसकी वज़ह बताते हुए जमुना राम कहते हैं- "शौचालय काग़ज़ पर बने हैं। हक़ीक़त यह है कि हमारे पास शौचालय बनाने की जगह ही नहीं है। एक कमरे के घर में रहने वाला ग़रीब उसमें खाना बनाकर खाएगा कि शौचालय बनवाएगा? यहां किसी भी महादलित के पास एक कमरे के घर से ज्यादा कुछ हो तो कहिएगा! कुछ के पास तो वह भी नहीं है।"
 
जमुना राम अपनी पत्नी रामरती देवी के साथ मामले में अभियुक्त हैं। उनके मुताबिक़ घटना के बाद रामरती को पुलिस ने बहुत पीटा था, तब से वे बीमार हैं।
नंदन गांव में सात निश्चय के बाकी काम हुए?
मामले में अभियुक्त युवक संजय राम कहते हैं- "काम से ज़्यादा हम बदनाम हो गए। घटना के बाद से हमारा गांव, हमारा टोला सबके निशाने पर आ गया। नया तो कोई काम ही नहीं हुआ है। गली, नल, शौचालय और इंदिरा आवास के जो पुराने काम थे, वो भी अधूरे के अधूरे ही हैं।" संजय के माता-पिता समेत घर के चार लोग नामजद अभियुक्त हैं।
 
उन्होंने कहा कि "अगर हमें पता होता कि मुख्यमंत्री से अपनी बात कहने की सज़ा ये मिलेगी, हम कभी नहीं जाते। हमें ले जाने वाले ददन पहलवान थे और वे सरकार के ही आदमी थे। उन्होंने अपनी राजनीति चमकाने के लिए हमारा इस्तेमाल कर लिया।"
 
डुमरांव विधानसभा क्षेत्र के विधायक ददन पहलवान की भूमिका पर सबसे ज्यादा सवाल उठे। इस बार के विधानसभा चुनाव में जदयू ने ददन पहलवान का टिकट काटकर अंजुम आरा को दे दिया है।
 
 
बीबीसी से बातचीत में ददन पहलवान ने कहा कि "नंदन गांव का बहाना बनाकर मेरा टिकट काटा गया। सच ये है कि मैंने नीतीश कुमार की जान बचाई थी। अगर मैं न होता तो वहां क्या से क्या हो जाता।"
 
लोगों को ले जाने के लिए अपने ऊपर लगे रहे आरोपों पर ददन कहते हैं, "जनप्रतिनिधि होने के नाते मेरा यही काम था कि जनता की बात सरकार से कराऊं। मैंने लोगों से यही कहा भी था।" नंदन गांव की घटना को लेकर शुरुआत से ही राजनीति होती आ रही है।
 
घटना के तुरंत बाद सत्ताधारी दल जेडीयू ने आरोप लगाया था कि पत्थरबाजी में राजद कार्यकर्ताओं की भूमिका है। वहीं, गांव के लोगों से बात करने पर पता चलता है घटना के पीछे स्थानीय प्रशासन और स्थानीय जनप्रतिनिधियों की भूमिका थी।
 
कब तक‌ चलता रहेगा मुक़दमा?
नंदन टोला के लोग बातचीत में बार-बार यह सवाल करते हैं कि उनके ख़िलाफ़ मुक़दमा आख़िर कब तक चलाया जाएगा? जबकि अब जांच में सच भी सामने आ चुका है।
 
उमाशंकर राम कहते हैं- "सरकार की ओर से आदमी भेजकर जांच कराई गई। पुलिस ने हर तरह की प्रताड़ना देकर पूछताछ की. जब सच सामने आया तो सरकार की तरफ़ से एक बार कहा भी गया था कि केस उठा लिया जाएगा। ''
 
''पर अब तो पुलिस ने चार्जशीट दायर कर दिया है। सरकारी वकील ने हमारी बेल का विरोध किया। इसका साफ़ मतलब है कि वे बदला लेने की नीयत से ऐसा कर रहे हैं।"
 
जदयू पार्टी की तरफ़ से मुख्यमंत्री के कहने पर जांच करने वाले विद्यानंद विकल ने अपनी रिपोर्ट के आख़िर में यह भी लिखा है कि 'महिलाओं, दलितों-महादलितों और अन्य वर्ग के निर्दोष लोगों का नाम प्राथमिकी से हटाने और जेल में बंद लोगों को सरकार के स्तर से रिहा करने का विचार करना चाहिए'.
 
इस सवाल पर कि उनकी रिपोर्ट में दलितों, महिलाओं और महादलितों के नाम प्राथमिकी से हटाए जाने वाले सुझाव पर मुख्यमंत्री ने क्यों नहीं अमल किया?
 
इसके जवाब में विकल कहते हैं, "मेरा काम केवल रिपोर्ट करना था। मेरी रिपोर्ट के बाद से ही सरकार का रुख मामले पर नरम पड़ गया। सारे अभियुक्त रिहा भी हो चुके हैं। मैंने अपनी रिपोर्ट बनाकर मुख्यमंत्री महोदय के विचारार्थ छोड़ दिया था।"
 
क्या कहती है पुलिस?
नंदन गांव की घटना के बाद पुलिस के ऊपर फ़र्जी मुकदमा करने और ग़रीबों को प्रताड़ित करने के आरोप पर बक्सर एसपी नीरज कुमार सिंह कहते हैं "मामले की सुनवाई अब अदालत में चल रही है। पुलिस ने अपनी जांच रिपोर्ट अदालत को सौंप दी है। आगे फ़ैसला भी कोर्ट को करना है।"
 
अभियुक्तों की पहचान को लेकर वो कहते हैं, "वैसे तो उस वक़्त मैं बक्सर पुलिस के साथ नहीं जुड़ा था, लेकिन घटना के वीडियो फुटेज उपलब्ध हैं। उसी आधार पर अभियुक्त बनाए गए होंगे। जहां तक बात उन लोगों को अभियुक्त बनाने का है जो मृत थे या बाहर रहते थे, जांच के बाद उनके नाम रिपोर्ट से हटा दिए गए होंगे।"
 
चुनाव का समय आया है। इसलिए नंदन गांव के लोगों के जहन में पत्थरबाजी की घटना के बाद हुई पुलिसिया कार्रवाई की यादें फिर से ताज़ा हो रही हैं।
 
एक बुजुर्ग महिला अभियुक्त सुमित्रा देवी ने कहा कि "चुनाव में वोट मांगने हमारे पास बहुत से लोग आ रहे हैं, लेकिन हमलोग अब किसी से कुछ कहने में डरते हैं। लगता है कुछ कहेंगे तो आग फ़िर से लग जाएगी जो अब बुझ चुकी है। हमें और कुछ कहने की ज़रूरत भी नहीं है, हम वोट देकर उस आग को हमेशा के लिए शांत कर देंगे।"
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