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डॉक्टर्स डे : धन्वंतरि, चरक और च्यवन सहित प्राचीन भारत के 6 श्रेष्‍ठ डॉक्टरों का परिचय, 30 के नाम

rishi muni
हर साल 1 जुलाई को राष्ट्रीय डॉक्टर दिवस मनाया जाता है। डॉक्टर को हिंदी में चिकित्सक, वैद्य आदि नामों से जाना जाता हैं। भारत में प्राचीन काल से ही वैद्य परंपरा रही है। आयुर्वेद मानव जाति के लिए ज्ञात सबसे आरंभिक चिकित्‍सा शाखा है। संसार की प्रथम पुस्तक ऋग्वेद में आयुर्वेद का उल्लेख मिलता है। अथर्ववेद में आयुर्वेद का सबसे ज्यादा उल्लेख है। आओ जानते हैं प्राचीन भारत के 30 सर्वश्रेष्ठ डॉक्टरों के नाम जिनमें से 6 खास डॉक्टरों का परिचय।
आयुर्वेद के डॉक्टरों के नाम :
1. अश्विनीकुमार 
2. धन्वंतरि
3. चरक
4. च्यवन
5. सुश्रुत 
6. ऋषि अत्रि 
7. ऋषि भारद्वाज
8. दिवोदास (काशिराज)
9. नकुल-सहदेव (पांडव पुत्र)
10. अर्कि
11. जनक
12. बुध
13. जावाल
14. जाजलि
15. पैल
16. करथ
17. अगस्त्य
18. अथर्व
19. अत्रि ऋषि के छः शिष्य
20. अग्निवेश
21. भेड़
22. जातूकर्ण
23. पराशर
24. सीरपाणि
25. हारीत
26. जीवक
27. बागभट्ट
28. नागार्जुन
29. पतंजलि
30. दक्ष प्रजापति
31. वरुण देव
आयुर्वेद के जन्म दाता :
 
1. अश्विनी कुमार : ऋग्वेद में इन दो कुमारों का उल्लेख मिलता है। इन्हें आयुर्वेद का आदि आचार्य कहा जाता है। कुछ जगहों नर 33 देवताओं की लिस्ट में इनका भी नाम है। इन्हें सूर्य का औरस पुत्र भी कहा जाता है। ये मूल रूप से चिकित्सक थे। ये कुल दो हैं। एक का नाम 'नासत्य' और दूसरे का नाम 'द्स्त्र' है। ये देवआतों के चिकित्सक और रोगमुक्त करने वाले माने जाते हैं। उल्लेखनीय है कि कुंती ने माद्री को जो गुप्त मंत्र दिया था उससे माद्री ने इन दो अश्‍विनी कुमारों का ही आह्वान किया था। 5 पांडवों में नकुल और सहदेव इन दोनों के पुत्र हैं।
 
वे कुमारियों को पति, वृद्धों को तारुण्य, अंधों को नेत्र देने वाले कहे गए हैं। दोनों कुमारों ने राजा शर्याति की पुत्री सुकन्या के पतिव्रत से प्रसन्न होकर महर्षि च्यवन का इन्होंने वृद्धावस्था में ही कायाकल्प कर उन्हें चिर-यौवन प्रदान किया था। इन्होंने ही दधीचि ऋषि के सिर को फिर से जोड़ दिया था। कहते हैं कि दधीचि से मधु-विद्या सीखने के लिए इन्होंने उनका सिर काटकर अलग रख दिया था और उनके धड़ पर घोड़े का सिर रख दिया था और तब उनसे मधुविद्या सीखी थी।
2. धन्वंतरि : कहते हैं कि भगवान धन्वंतरि की उत्पत्ति समुद्र मंथन से हुए थी। वे समुद्र में से अमृत का कलश लेकर निकले थे जिसके लिए देवों और असुरों में संग्राम हुआ था। समुद्र मंथन की कथा श्रीमद्भागवत पुराण, महाभारत, विष्णु पुराण, अग्नि पुराण आदि पुराणों में मिलती है। इसके बाद काशी के राजवंश में धन्व नाम के एक राजा ने उपासना करके अज्ज देव को प्रसन्न किया और उन्हें वरदान स्वरूप धन्वंतरि नामक पुत्र मिला। इसका उल्लेख ब्रह्म पुराण और विष्णु पुराण में मिलता है। यह समुद्र मंधन से उत्पन्न धन्वंतरि का दूसरा जन्म था। धन्व काशी नगरी के संस्थापक काश के पुत्र थे।
 
कहते हैं कि धन्वंतरि लगभग 7 हजार ईसापूर्व हुए थे। वे काशी के राजा महाराज धन्व के पुत्र थे। उन्होंने शल्य शास्त्र पर महत्वपूर्ण गवेषणाएं की थीं। उनके प्रपौत्र दिवोदास ने उन्हें परिमार्जित कर सुश्रुत आदि शिष्यों को उपदेश दिए। दिवोदास के काल में ही दशराज्ञ का युद्ध हुआ था। धन्वंतरि के जीवन का सबसे बड़ा वैज्ञानिक प्रयोग अमृत का है। उनके जीवन के साथ अमृत का स्वर्ण कलश जुड़ा है। अमृत निर्माण करने का प्रयोग धन्वंतरि ने स्वर्ण पात्र में ही बताया था।
 
उन्होंने कहा कि जरा-मृत्यु के विनाश के लिए ब्रह्मा आदि देवताओं ने सोम नामक अमृत का आविष्कार किया था। धन्वंतरि आदि आयुर्वेदाचार्यों अनुसार 100 प्रकार की मृत्यु है। उनमें एक ही काल मृत्यु है, शेष अकाल मृत्यु रोकने के प्रयास ही आयुर्वेद निदान और चिकित्सा हैं। आयु के न्यूनाधिक्य की एक-एक माप धन्वंतरि ने बताई है। धन्वंतरि वैद्य को आयुर्वेद का जन्मदाता माना जाता है। उन्होंने विश्वभर की वनस्पतियों पर अध्ययन कर उसके अच्छे और बुरे प्रभाव-गुण को प्रकट किया। धन्वंतरि के हजारों ग्रंथों में से अब केवल धन्वंतरि संहिता ही पाई जाती है, जो आयुर्वेद का मूल ग्रंथ है। आयुर्वेद के आदि आचार्य सुश्रुत मुनि ने धन्वंतरिजी से ही इस शास्त्र का उपदेश प्राप्त किया था। बाद में चरक आदि ने इस परंपरा को आगे बढ़ाया। धन्वंतरि नाम से और भी कई आयुर्वेदाचार्य हुए हैं। आयु के पुत्र का नाम धन्वंतरि था। गालव ऋषि ने एक वैश्या को पुत्रवतीभव: का आशीर्वाद दिया था जिससे धनवंतरि नाम के एक बालक का जन्म हुआ।
3. च्यवन : अश्‍विन कुमार, धन्वं‍तरि के बाद नंबर आता है च्यावन ऋषि का। कहते हैं कि च्यवन ऋषि ही जड़ी-बुटियों से 'च्यवनप्राश' नामक एक औषधि बनाकर उसका सेवन करके वृद्धावस्था से पुनः युवा बन गए थे। च्यवन ऋषि महान् भृगु ऋषि के पुत्र थे। इनकी माता का नाम पुलोमा था। इनकी ख्‍याती आयुर्वेदाचार्य और ज्योतिषाचार्य के रूप में है। ग्रंथ का नाम च्यवनस्मृति और जीवदान तंत्र है। च्यवन का विवाह मुनिवर ने गुजरात के भड़ौंच (खम्भात की खाड़ी) के राजा शर्याति की पुत्री सुकन्या से किया। भार्गव च्यवन और सुकन्या के विवाह के साथ ही भार्गवों का हिमालय के दक्षिण में पदार्पण हुआ। च्यवन ऋषि खम्भात की खाड़ी के राजा बने और इस क्षेत्र को भृगुकच्छ-भृगु क्षेत्र के नाम से जाना जाने लगा।
4. चरक : आयुर्वेद के आचार्य महर्षि चरक की गणना भारतीय औषधि विज्ञान के मूल प्रवर्तकों में होती है। ऋषि चरक ने 300-200 ईसापूर्व आयुर्वेद का महत्वपूर्ण ग्रंथ 'चरक संहिता' लिखा था। उन्हें त्वचा चिकित्सक भी माना जाता है। आचार्य चरक ने शरीरशास्त्र, गर्भशास्त्र, रक्ताभिसरणशास्त्र, औषधिशास्त्र इत्यादि विषय में गंभीर शोध किया तथा मधुमेह, क्षयरोग, हृदय विकार आदि रोगों के निदान एवं औषधोपचार विषयक अमूल्य ज्ञान को बताया।
 
चरक एवं सुश्रुत ने अथर्ववेद से ज्ञान प्राप्त करके 3 खंडों में आयुर्वेद पर प्रबंध लिखे। उन्होंने दुनिया के सभी रोगों के निदान का उपाय और उससे बचाव का तरीका बताया, साथ ही उन्होंने अपने ग्रंथ में इस तरह की जीवनशैली का वर्णन किया जिसमें कि कोई रोग और शोक न हो। आठवीं शताब्दी में चरक संहिता का अरबी भाषा में अनुवाद हुआ और यह शास्त्र पश्चिमी देशों तक पहुंचा। चरक और च्यवन ऋषि के ज्ञान पर आधारित ही यूनानी चिकित्सा का विकास हुआ।
5. सुश्रुत : 600 ईसा पूर्व में सुश्रुत हुए थे। भारत में प्लास्टिक सर्जरी की शुरुआत सुश्रुत ने की। सुश्रुत संहिता में 650 प्रकार की दवाओं का जिक्र है, 42 किस्म की सर्जरी और 300 तरह से ऑपरेशन की व्याख्‍या है। पुराने ऐतिहासिक दस्तावेजों में ये भी कहा गया है कि सर्जरी और ऑपरेशन करने के लिए इस ग्रंथ में चाकू, सुइयां, चिमटे इत्यादि सहित 121 प्रकार के औजारों का इस्तेमाल किया जाता था। इससे पहले भारतीय चिकित्सा शास्त्र के बारे में जानकारी वेदों और चरक संहिता जैसी किताबों से ही मिली थी। कहा जाता है कि इन किताबों में ये जानकारी 3000 से 1000 ईसा पूर्व दर्ज हो गई थी।
 
सुश्रुत ने अपने समय के स्वास्थ्य वैज्ञानिकों के साथ प्रसव, मोतियाबिंद, कृत्रिम अंग लगाना, पथरी का इलाज और प्लास्टिक सर्जरी जैसी कई तरह की जटिल शल्य चिकित्सा के सिद्धांत प्रतिपादित किए। आधुनिक विज्ञान केवल 400 वर्ष पूर्व ही शल्य क्रिया करने लगा है, लेकिन सुश्रुत ने 2600 वर्ष पर यह कार्य करके दिखा दिया था। सुश्रुत के पास अपने बनाए उपकरण थे जिन्हें वे उबालकर प्रयोग करते थे।
6. बागभट्ट : वाग्भट का अष्टांगसंग्रह आज भी भारतीय चिकित्सा विज्ञान (आयुर्वेद) के मानक ग्रन्थ हैं। वाग्भट का जन्म सिंधु देश में हुआ था। ये अवलोकितेश्वर के शिष्य थे। इनके पिता का नाम सिद्धगुप्त और पितामह का नाम वाग्भट था। 675 और 685 ईस्वी में जब ह्वेन त्सांग के आने के पूर्व बागभट्ट हुए थे। वाग्भट का समय 5वीं सदी के लगभग का है। इन्होंने आयुर्वेद चिकित्सा पद्धति को पुन:जीवित कर दिया था।
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