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फोक्सवागन और महिंद्रा के बीच इलेक्ट्रिक कार समझौता

फोक्सवागन और महिंद्रा के बीच इलेक्ट्रिक कार समझौता - Electric car agreement between Volkswagen and Mahindra
मोटरकार का आविष्कार जर्मनी में हुआ था। जर्मनी की सबसे बड़ी कार निर्माता कंपनी फोक्सवागन (जनता कार) ही इस समय विश्व की सबसे बड़ी कार निर्माता कंपनी है। भारत में उसे 'वोक्सवैगन' या 'फॉक्सवैगन' के नाम से जाना जाता है, जो कि उसके जर्मन नाम के ग़लत उच्चारण हैं। उसका नाम जर्मन भाषा के दो शब्दों- 'फ़ोल्क' यानी जनता और 'वागन' यानी वाहन- के मेल से बना है।

यह कंपनी 1937 में आम जनता के लिए सस्ती कारें बनाने के उद्देश्य से बनी थी। इसलिए उसका और उसके कार मॉडल का नाम 'फोक्सवागन' यानी जनता कार रखा गया। अब वह 9 अलग-अलग ब्रैंड वाली एक विश्वव्यापी कन्सर्न है। ये ब्रैंड हैं- फोक्सवागन (VW), आउडी (Audi), पोर्शे (Porsche), लाम्बोर्गिनी (Lamborghini), बेन्टली (Bentley), बुगाती (Bugati),  सेआट (SEAT), श्कोडा (Skoda) और मान (MAN)। 2021 में VW ने कुल मिलाकर 89 लाख कारें बनाईं और 263 अरब 30 करोड़ डॉलर कमाए।

पिछले दो दशकों से फोक्सवागन भारत में भी है, हालांकि जर्मनी के बाहर उसके कारोबार का मुख्य बाज़ार अब भी चीन है। वहां स्थिति अब उतनी अनुकूल नहीं रही, जितनी कुछ साल पहले तक लग रही थी। इसलिए फोक्सवागन को भारत एक नया विकल्प दिखने लगा है। उसकी डीज़ल-पेट्रोल कारों के कुछ जानेमाने नाम भारत में भी उपलब्ध हैं। लेकिन अब उसने भारत में इलेक्ट्रिक कारों के कारोबार में उतरने का भी मन बना लिया है।

फोक्सवागन समूह और भारतीय कार निर्मता 'महिंद्रा एंड महिंद्रा' के बीच इस बारे में बातचीत चल रही थी। जर्मनी के वोल्फ्सबुर्ग में स्थित फोक्सवागन के मुख्यालय में गत 19 मई को बताया गया कि दोनों पक्षों के बीच आपसी सहयोग पर सहमति बन गई है। इस वर्ष के अंत तक सहयोग के औपचारिक समझौते पर विधिवत हस्तक्षर भी हो जाएंगे।

तय यह हुआ है कि फोक्सवागन की ओर से महिंद्रा को इलेक्ट्रिकल मोटर, बैटरीसेल और 20 से 30 प्रतिशत अन्य मुख्य पुर्जे (कॉम्पोनेंट) अगले 6-7 वर्षों तक मॉड्यूल के रूप में मिलेंगे, जिन्हें भारत में बनने वाली इलेक्ट्रिक कारों में लगाया जाएगा। वे ऐसे बने होंगे कि उन्हें कारों के किसी एक ही मॉडल में नहीं, अलग-अलग मॉडलों में भी लगाया जा सके। महिंद्रा के अलावा दूसरे इलेक्ट्रिक कार निर्माता भी उनका उपयोग कर सकेंगे। उदाहरण के लिए अमेरिका की फ़ोर्ड कंपनी अपने दो इलेक्ट्रिक कार मॉडलों के लिए फोक्सवागन के बनाए मॉड्यूल इस्तेमाल करती है।

फोक्सवागन का समझना है कि महिंद्रा को बिजली चालित कारों में लगने वाले अवयवों की आपूर्ति से उसके लिए भारतीय बाजार में व्यापक प्रवेश का एक अच्छा आधार तैयार होगा। भारत में ऐसी कारों का प्रचलन अभी अपनी शैशव अवस्था में है। देश बड़ा है यानी कारों के लिए बाज़ार भी बहुत बड़ा है।

अभी ऐसे वाहनों का बोलबाला है, जिनके दहन-इंजन डीज़ल-पेट्रोल जलाकर उन्हें गति प्रदान करते हैं, पर साथ ही हवा को प्रदूषित और ऐसी गैसें उत्सर्जित करते हैं, जिनसे तापमान बढ़ता है। भारत सरकार भी 2030 वाले दशक के मध्य तक देश में केवल ऐसे वाहन चाहती है, जो उत्सर्जन मुक्त हों।

2021 में भारत में लगभग 30 लाख कारें बिकी थीं और चीन में 2 करोड़ 10 लाख। चीन में इस साल कारों की बिक्री बढ़ने की जगह अब घटने लगी है। भारतीय कार-बाज़ार में महिंद्रा की कारों का हिस्सा 6 प्रतिशत से कुछ अधिक है।

फोक्सवागन का सहयोग मिलने पर उसके हिस्से का अनुपात निश्चित रूप से बढ़ेगा। 2020 में भारत में बिकी सभी कारों में इलेक्ट्रिक कारों का हिस्सा केवल 0.5 प्रतिशत था। इन आंकड़ों से फोक्सवागन को लगता है कि चीन से अधिक अब उसके लिए भारत में अपना कारोबार बढ़ाने के अवसर हैं।

एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में फोक्सवागन के मुख्य प्रौद्योगिकी अधिकारी टोमास श्माल ने कहा, महिंद्रा के साथ मिलकर हम भारत के विद्युतीकरण में एक महत्वपूर्ण योगदान देना चाहते हैं। उनका कहना था कि भारतीय कार बाजार में विकास की अपार संभावनाएं हैं। जलवायु रक्षा का महत्व भारत में जिस तेजी से बढ़ेगा, बिजली से चलने वाली कारों का महत्व भी उसी तेज़ी से चढ़ेगा।

सिद्धांतः यह सही तो है, लेकिन तभी जब इलेक्ट्रिक कारों की बैटरी हर बार ऐसी बिजली से रिचार्ज की जाए, जो पूरी तरह 'ग्रीन' है। पूरी तरह 'ग्रीन' का अर्थ है ऐसी बिजली, जो पवन ऊर्जा, सौर ऊर्जा या ऊर्जा के किसी दूसरे अक्षय़ अथवा नवीकरणीय स्रोत से बनी हो। ऐसी बिजली, जो कोयला, गैस, तेल या किसी दूसरी चीज़ को जलाकर बिजली बनाने वाले बिजलीघरों से न आई हो वरना कार से तो धुंआ नहीं निकलेगा, पर इन बिजलीघरों से निकलने वाला धुंआ बढ़ता ही जाएगा। बिजली-चालित कार रखने का तब कोई तुक ही नहीं रह जाएगा।

कल्पना करें कि भारत में आज जो लाखों-करोड़ों वाहन डीज़ल-पेट्रोल से चल रहे हैं, जब उनकी जगह लेने वाले वाहनों की बैटरी को हर बार बिजली भरकर रिचार्ज करना पड़ेगा, तब बिजली की खपत हर दिन कितनी बढ़ जाएगी!

अतः इलेक्ट्रिक वाहनों की संख्या बढ़ाने से पहले उत्सर्जन-रहित ग्रीन बिजली के उत्पादन की क्षमता को आज की अपेक्षा कई गुना बढ़ाना पहली शर्त है। यही कारण है कि कारों के देश जर्मनी के कई विशेषज्ञ और शोध संस्थान (यह जानते हुए कि जर्मनी में लगभग 50 प्रतिशत बिजली 'ग्रीन' बिजली है) स्वयं जर्मनी में भी इलेक्ट्रिक कारों को प्रोत्साहन देने की पैरवी करने से हिचकते हैं।

वे कहते हैं कि सौर ऊर्जा के लिए फ़ोटोवोल्टाइक पैनलें बनाने में, पवन ऊर्जा के लिए ऊंचे-ऊंचे संयंत्रों के निर्माण में और लीथियम-अयन बैटरी के लिए लीथियम की प्राप्ति और प्रसंस्करण में भारी मात्रा में बिजली खपती भी है। इनकी उत्पादन प्रक्रिया में अनेक धातुएं और सामग्रियां लगती हैं, काफ़ी पानी ख़र्च होता है और तापमानवर्धक गैसों का भी कुछ न कुछ उत्सर्जन होता ही है।

अतः यह कहना ग़लत है कि सौर, पवन या नवीकरणीय ऊर्जा-स्रोतों से मिली बिजली पूरी तरह 'ग्रीन' होगी। हां, काफ़ी हद तक 'ग्रीन' हो सकती है। इस कारण से भी फोक्सवागन ग्रुप खुद भी इलेक्ट्रिक कारों के अखाड़े में बहुत देर से उतरा है।

महाराष्ट्र के पुणे में स्थित फोक्सवागन ग्रुप इंडिया, पांच यात्री कार ब्रैंडों के साथ भारत में अपने समूह का प्रतिनिधित्व करता है : आउडी, लाम्बोर्गिनी, पोर्शे, श्कोडा और फोक्सवागन। फोक्सवागन समूह ने श्कोडा के साथ 2001 में भारत में पहली बार पैर रखा था। 2007 में आउडी और फोक्सवागन ब्रैंडों को पेश किया गया। 2012 में पोर्शे और लाम्बोर्गिनी को बाज़ार में उतारा गया।

पुणे में चाकन और महाराष्ट्र के ही औरंगाबाद के शेन्द्र में फोक्सवागन की दो विनिर्माण सुविधाएं हैं। पुणे विनिर्माण सुविधा में निर्मित वाहनों को कई विकसित और विकासशील देशों की सड़कों पर भी देखा जा सकता है। भारत में फोक्सवागन के कुल मिलाकर 4800 से अधिक कर्मचारी हैं। वर्तमान में देशभर में 225 से अधिक डीलरों के माध्यम से 5 ब्रैंडों के 25 से अधिक मॉडल पेश किए जा रहे हैं। 
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