शुक्रवार, 19 अप्रैल 2024
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'सूतक' को लेकर शास्त्रों में क्या निर्देश है, जानिए

'सूतक' को लेकर शास्त्रों में क्या निर्देश है, जानिए - Sutak In Astrology
Sutak in Astrology
कितनी हो ‘सूतक’ की अवधि...!

जिस प्रकार आज एक संक्रामक रोग के कारण बहुत से व्यक्तियों को एकांतवास (क्वारंटाइन) या पृथकता (आइसोलेशन) में रहना पड़ रहा है, क्योंकि संक्रामक रोग उनसे किसी अन्य व्यक्ति या संपूर्ण समाज में फैल सकता है, ठीक उसी प्रकार हमारे सनातन धर्म में भी इस प्रकार के संभावित संक्रमण को रोकने के लिए जिस व्यवस्था का अनुपालन किया जाना आवश्यक होता था उसे 'सूतक' कहा जाता है। आइए जानते हैं कि 'सूतक' अर्थात् पृथकता को लेकर हमारे शास्त्रों में क्या निर्देश है? 
 
जब परिवार या कुटुंब में भी किसी का जन्म या मृत्यु होती है तब उसके पारिवारिक सदस्यों को 'सूतक' (पृथकता) का अनुपालन करना आवश्यक होता है। शास्त्रों में 'सूतक' (पृथकता) के अनुपालन का निर्देश हैं। किंतु अक्सर 'सूतक' की अवधि को लेकर लोगों के मन में दुविधा रहती है कि 'सूतक' की अवधि कितनी हो अर्थात् 'सूतक' का पालन कितने दिनों तक किया जाए?
 
शास्त्रानुसार शौच दो प्रकार का माना गया है।
 
1. जनन शौच- जब परिवार या कुटुंब में किसी का जन्म होता है तो पारिवारिक सदस्यों को ‘जनन शौच’ लगता है।
 
2. मरण शौच- जब परिवार या कुटुंब में किसी की मृत्यु होती है तो पारिवारिक सदस्यों को ‘मरण शौच’ लगता है।
 
शास्त्रों के अनुसार उपर्युक्त दोनों ही शौच में 'सूतक' का पालन करना अनिवार्य है। शास्त्रों में 'सूतक' की अवधि को लेकर भी स्पष्ट उल्लेख है।
 
'जाते विप्रो दशाहेन द्वादशाहेन भूमिप:।
वैश्य: पंचदशाहेन शूद्रो मासेन शुद्धयति॥' 
-(पाराशर स्मृति)
 
जैसा कि उपर्युक्त श्लोक से स्पष्ट है कि ब्राह्मण दस दिन में, क्षत्रिय बारह दिन में, वैश्य पंद्रह दिन में और शूद्र एक मास में शुद्ध होता है। अत: इन चतुर्वर्णों को क्रमश: दस, बारह, पंद्रह व एक माह तक 'सूतक' का पालन करना चाहिए।

जो ब्राह्मण वेदपाठी हो, त्रिकाल संध्या करता हो एवं नित्य अग्निहोत्र करता हो ऐसा ब्राह्मण क्रमश: तीन दिन व एक दिन में शुद्ध होता है। शास्त्रानुसार वेदपाठी विप्र तीन दिन में शुद्ध होता है। अत: वेदपाठी ब्राह्मण को तीन दिनों तक 'सूतक' का पालन करना चाहिए।
 
-ज्योतिर्विद् पं. हेमन्त रिछारिया
प्रारब्ध ज्योतिष परामर्श केन्द्र
सम्पर्क: [email protected]