बुधवार, 24 अप्रैल 2024
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Written By अनिरुद्ध जोशी 'शतायु'

आ‍धुनिक मन और योगनिद्रा

Yog Nidra | आ‍धुनिक मन और योगनिद्रा
निद्रा का मतलब आध्यात्मिक नींद। यह वह नींद है, जिसमें जागते हुए सोना है, सोने व जागने के बीच की स्थिति है योग निद्रा। तेज गति से चलने वाले इस चंचल मन को काबू में कर तनाव को दूर भगाएँ।

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विधि : ढीले कपड़े पहनकर शवासन करें। जमीन पर दरी बिछाकर उस पर एक कंबल बिछाएँ। दोनों पैर लगभग एक फुट की दूरी पर हों, हथेली कमर से छह इंच दूरी पर हो। आँखे बंद रखें।

अपने शरीर व मन-मस्तिष्क को शिथिल कर दीजिए। सिर से पाँव तक पूरे शरीर को शिथिल कर दीजिए। पूरी साँस लेना व छोड़ना है। अब कल्पना करें आप के हाथ, पाँव, पेट, गर्दन, आँखें सब शिथिल हो गए हैं। अपने आप से कहें कि मैं योगनिद्रा का अभ्यास करने जा रहा हूँ।

अब अपने मन को शरीर के विभिन्न अंगों पर ले जाइए और उन्हें शिथिल व तनावरहित होने का निर्देश दें। अपने मन को दाहिने पैर के अँगूठे पर ले जाइए।

पाँव की सभी अँगुलियाँ कम से कम पाँव का तलवा, एड़ी, पिंडली, घुटना, जाँघ, नितंब, कमर, कंधा शिथिल होता जा रहा है। इसी तरह बायाँ पैर भी शिथिल करें। सहज साँस लें व छोड़ें। अब लेटे-लेटे पाँच बार पूरी साँस लें व छोड़ें। इसमें पेट व छाती चलेगी। पेट ऊपर-नीचे होगा।

सावधानी : योगनिद्रा में सोना नहीं है। योगनिद्रा 10 से 45 मिनट तक की जा सकती है। योगनिद्रा के लिए खुली जगह का चयन किया जाए। यदि किसी बंद कमरे में करते हैं तो उसके दरवाजे, खिड़की खुले रखें। शरीर को हिलाना नहीं है, नींद नहीं निकालना, यह एक मनोवैज्ञानिक नींद है, विचारों से जूझना नहीं है।

लाभ : योगनिद्रा द्वारा मनुष्य से अच्छे काम भी कराए जा सकते हैं। बुरी आदतें भी इससे छूट जाती हैं। योगनिद्रा का प्रयोग रक्तचाप, मधुमेह, हृदय रोग, सिरदर्द, तनाव, पेट में घाव, दमे की बीमारी, गर्दन दर्द, कमर दर्द, घुटनों, जोड़ों का दर्द, साइटिका, अनिद्रा, अवसाद, प्रसवकाल की पीड़ा में बहुत ही लाभदायक है।

योगनिद्रा में किया गया संकल्प बहुत ही शक्तिशाली होता है। योगनिद्रा द्वारा शरीर व मस्तिष्क स्वस्थ रहते हैं। यह नींद की कमी को भी पूरा कर देती है। इससे थकान, तनाव व अवसाद भी दूर हो जाता है।

योगनिद्रा के कई आध्यात्मिक लाभ भी है, लेकिन आधुनिक चंचल, उत्तेजित और तनावग्रस्त मन के लिए यह बहुत ही लाभदायक है।