शुक्रवार, 19 अप्रैल 2024
  • Webdunia Deals
  1. लाइफ स्‍टाइल
  2. नायिका
  3. आलेख
  4. बिन फेरे हम तेरे
Written By गायत्री शर्मा

बिन फेरे हम तेरे

लागी तुमसे मन की लगन ....

Live in Relationship | बिन फेरे हम तेरे
PRPR
पिछले दिनों जब 'लिव-इन-रिलेशनशिप' पर आधारित फिल्म 'सलाम-नमस्ते' का प्रदर्शन हुआ था, तब इस तरह के रिश्ते को लेकर देशभर में चर्चाएँ छिड़ी थीं कि क्या ये संबंध भारतीय संस्कृति के अनुकूल हैं?

लेकिन अब बदलते परिवेश में खुद सरकार ही इस रिश्ते को मान्यता देने का मन बना रही है तब सवाल यह उठ रहा है कि ये संबंध कितने उचित होंगे?

युवाओं का खुले तौर पर प्रेम-प्रदर्शन करना कानूनी व सामाजिक दृष्टि में भले ही अनुचित कृत्य माना जाता है, परंतु प्यार की बयार में उड़ते इन स्वच्छंद परिंदों को ज़माने की क्या परवाह?

'बिन फेरे हम तेरे' की तर्ज पर महाराष्ट्र सरकार कैबिनेट द्वारा लिव-इन-रिलेशनशिप को कानूनी मान्यता प्रदान करने का प्रस्ताव केंद्र सरकार को भेजते ही ये स्वच्छंद संबंध फिर से सुर्खियों में आ गए हैं।

एक तरफ है वैवाहिक बंधन जिसकी बुनियाद सात फेरों पर टिकी होती है। भारतीय संस्कृति में तो विवाह को 'पाणिग्रहण संस्कार' के रूप में सामाजिक मान्यता प्राप्त है।

वहीं इन संस्कारों को दरकिनार करते हुए बगैर किसी सामाजिक मान्यता और स्वीकृति के साथ रहने की अनुमति संबंधों के एक नए ताने-बाने को जन्म देते हुए अपने पीछे नए सवालों को खड़ा कर रही है।

वहीं दूसरी ओर एक ऐसा रिश्ता, जो समाज की परवाह किए बगैर दो दिलों को जोड़ता है, जिसे 'लिव-इन-रिलेशनशिप' कहा जाता है। न तो सात फेरों का बंधन, न समाज के रीति-रिवाजों की परवाह, यह रिश्ता तो आपसी समझ, पसंदीदा जीवनसाथी का चुनाव व उन्मुक्तता की नींव पर खड़ा होता है।

PRPR
* जब प्यार किया तो डरना क्या :-
कहते हैं युवा जोश और उत्साह से परिपूर्ण व मनमौजी होते हैं। ये वही करते हैं जो इनका दिल कहता है। इसी दिल की आवाज ने इन्हें बगैर किसी बंधन में बँधे ही एक ऐसे रिश्ते से बाँध दिया है, जिसकी शुरुआत आपसी विश्वास व समझौते के आधार पर होती है।

यह वह रिश्ता है, जिसे पहले जिया जाता है फिर सोच-समझकर आगे बढ़ाने की कोशिश की जाती है। इस रिश्ते की आयु आपसी समझ व विश्वास पर निर्भर करती है।

पश्चिम की तर्ज पर भारत में भी 'लिव-इन-रिलेशनशिप' प्रचलित है किंतु अब तक चोरी-छिपे, अनुबंध विवाह या अवैध संबंधों की आड़ में ये रिश्ते फल-फूल रहे थे। लेकिन महाराष्ट्र सरकार का इन रिश्तों की मंजूरी का प्रस्ताव केंद्र सरकार को भेजा जाना इन प्रेमियों के संबंधों के लिए उम्र बढ़ाने वाली ऑक्सीजन का कार्य कर रहा है।

जब दो व्यक्ति एक-दूसरे का चयन करके अपने जीवन की नई शुरुआत करने की पहल करते हैं तो इसमें हर्ज ही क्या है?
PRPR
* जरा समाज की तो परवाह करो :-
हम सभी समाज का एक अनिवार्य हिस्सा हैं। अत: समाज के कायदे-कानून का पालन करना हम सबकी जिम्मेदारी है। ये सामाजिक बंधन ही हैं जो व्यक्ति को लोकाचार, शिष्टाचार व रीति-रिवाजों के बंधनों से बाँधते हैं।

इससे व्यक्ति का आचरण स्वत: अनुशासित हो जाता है। लेकिन समाज की परवाह किए बगैर एक ऐसे रिश्ते को जिया जाना जो सामाजिक संबंधों से परे हो, उसकी विश्वसनीयता और वैधानिकता दोनों को ही संदेह के कटघरे में खड़ा करती है।

* पहल के लिए कदम उठाया :-
जिन राज्यों में प्रेम के इजहार का अर्थ ही खुलापन है, वही राज्य इस रिश्ते को वैधानिक स्वरूप देने के लिए आधार तैयार कर रहे है। ऐसे ही राज्यों की सूची में शुमार है - गुजरात और महाराष्ट्र। यह बात और है कि इसकी पहल गुजरात के बजाय उसके समीपवर्ती राज्य महाराष्ट्र ने की है।

यहाँ प्यार के इजहार के लिए सार्वजनिक स्थान प्रेमी युवाओं की पहली पसंद होती है।

हो सकता है समाज की तरुणाई पर हावी स्वच्छंदता का यह मर्यादाहीन आचरण देखकर सरकार ने इसे कानूनी रूप से संरक्षण देने के लिए एक नई शुरुआत करने की पहल की है। इसका सारा दारोमदार अब केंद्र सरकार पर निर्भर है।

जिस देश में एक ओर स्कूलों में यौन शिक्षा की अनिवार्यता व स्वास्थ्य मंत्री अंबुमणि रामदास का समलैंगिक संबंधों की पक्षधरता में दिया बयान आदि बवाल का विषय बनकर सामाजिक रीति-रिवाजों के तीखे नुकीले वारों से धराशायी हो जाते हैं, ऐसे में 'लिव-इन-रिलेशनशिप' की मान्यता को कितना जनसर्मथन मिलेगा? यह कहना अभी मुश्किल होगा।

जिस दिन महाराष्ट्र कैबिनेट द्वारा यह प्रस्ताव पारित हुआ, उसी दिन देश के समाचार चैनलों पर आमजन की प्रारंभिक राय एसएमएस व वोटिंग के जरिए सामने आई है। इसमें प्रस्ताव के विरोध में ज्यादा आवाजें उठी हैं। इसे देखते हुए इस रिश्ते का प्रस्ताव अधर में नज़र आता है।

अब देखना तो यह है कि देश का जनमानस इस प्रस्ताव को स्वीकार करते हुए 'सलाम' कहता है या फिर दूर से ही 'नमस्ते' कहकर इस प्रस्ताव को ठुकरा देता है।