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Written By WD

औरत कब तक रहेगी पहचान की मोहताज

- तस्लीमा नसरीन

औरत कब तक रहेगी पहचान की मोहताज -
शादी स्त्री और पुरुष दोनों की होती है। लेकिन विवाहित होने के जो भी चिह्न हैं, वे अकेले स्त्री को ही वहन करने पड़ते हैं, पुरुष को नहीं। अविवाहित और विवाहित पुरुषों में कोई अंतर नहीं- न नाम में, न कपड़े-लत्ते में, न मांग और न ही उंगलियों में।

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विवाहित एवं अविवाहित पुरुषों में अंतर करने का कोई उपाय नहीं है। लेकिन विवाहित एवं अविवाहित स्त्रियों के बीच अंतर करने के लिए बहुत-सी व्यवस्था रखी गई है, विवाहित एवं विधवा स्त्री के मामले में भी अंतर करने की ढेर सारी व्यवस्था है।

पृथ्वी के सभी देशों के सभी समाजों के पुरुषों के लिए एक ही तरह का संबोधन रखा गया है। अविवाहित स्त्री अपने नाम के आगे 'मिस' एवं विवाहित स्त्री 'मिसेज' शब्द का प्रयोग करके अपनी वैवाहिक स्थिति के साथ खुद को जोड़ती है। लेकिन पुरुष अपने 'मिस्टर' संबोधन को शुरू से रखता है।

क्या मिस्टर सौमेन और मिस्टर मिलन में कौन विवाहित है और कौन अविवाहित, कोई अंतर कर सकता है? लेकिन मिस लीना और मिसेज बीना में कौन विवाहित है, इस पर किसी को संदेह नहीं होगा। स्त्री विवाहित है या अविवाहित- यह उसके नाम में ही समाहित है- विवाह अवश्य ही किसी नारी के लिए बहुत महत्वपूर्ण चीज वहन करने जैसा कुछ है, जो पुरुष के लिए नहीं है।

विधवा या विधुर में भी जमीन-आसमान का अंतर किया गया है। विधवा को शरीर के समस्त अलंकारों को उतार देना पड़ता है। विधवा के पहनने का वस्त्र होगा दूध की तरह सफेद। एक संप्रदाय में विधवाओं के लिए मांसाहार मना है। लेकिन विधुर पुरुष के लिए कोई मनाही नहीं। उसे अलंकाररहित और शाकाहारी नहीं होना पड़ता। यही हमारा समाज है।