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Written By WD

दूसरों के लिए भी सोचो

दूसरों के लिए भी सोचो -
- प्रीता जैन

NDND
बीच सड़क पर पड़े कचरे या टूटी पाइप लाइन से बहते पानी को देखकर 'कौन इस चक्कर में पड़े' ऐसा मत सोचिए। याद रखिए हम व्यवस्थाओं को दुरुस्त करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं। बस, जरूरत है एक पहल की और आवाज उठाने की।

सुप्रिया की नाते-रिश्तेदारों, जान-पहचान वालों के बीच हमेशा ही तारीफ होती है। कारण, उसके व्यवहार में मधुरता-शिष्टता होने के साथ-साथ साफगोई-स्पष्टता का झलकना। अक्सर ही अपने आसपास हम कुछ ऐसा अनुचित होते देखते हैं कि बरबस ही मुँह से निकल जाता है, 'अरे! कितनी गलत बात है, ऐसा नहीं होना चाहिए,' लेकिन केवल सोचने भर से तो सब कुछ सही नहीं हो जाता। ऐसा फिर न हो, इसके लिए हम में से कुछ ही लोग आगे बढ़ पहल करते हैं।

सुप्रिया भी उन्हीं में से एक है। अभी ५-६ दिन पहले उसके बच्चे के स्कूल में रिजल्ट-डे था। उसने देखा कि सभी पैरेंट्स के वाहन स्कूल के बाहर ही रोके जा रहे हैं, किंतु जो ऊँचे ओहदे पर अधिकारी हैं या फिर शहर के अच्छे-खासे रइसों में माने जाते हैं, उनके क्लास रूम के ठीक सामने जाकर रुक रहे हैं व किसी प्रकार की रोक-टोक भी उनके साथ नहीं की जा रही है।

  कायदे-कानून बलवती होंगे कैसे, जरा-सा गौर कर यदि समझदारी से विचार-विमर्श किया जाए तो यही निष्कर्ष सामने आता है कि आप व हम ही हैं, जो समाज की बिगड़ी व्यवस्था व्यवस्था को काफी हद तक व्यवस्थित कर एक स्वस्थ समाज की स्थापना कर सकते हैं।      
अन्य माता-पिता तो आपस में खुसर-पुसरकर चलते बने, पर सुप्रिया से यह सब देख, सहन नहीं हुआ। सीधे ही प्रिंसिपल के पास जाकर उसने आइंदा ऐसा न होने की गुजारिश की, ताकि और बच्चों के बालमन पर अपने माता-पिता को लेकर किसी भी तरह की ही भावना न आने पाए। वे अपने को दीन-हीन, कमजोर न समझ लें।

सुप्रिया के ऐसा करने के पीछे उसका स्वार्थ न होकर सबका ही भला था। एक अच्छे कार्य की सकारात्मक सोच थी, पहल थी। ऐसा ही आदत हमारी सोसाइटी में रहने वाली मिसेज खुराना की भी है। जब भी वे डिपार्टमेंटल स्टोर जाती हैं, ध्यान रखती हैं कि वहाँ रखा खाने-पीने या घरेलू उपयोग का कोई भी सामान उस पर लिखी तारीख के अनुसार एक्सपायर अथवा खराब तो नहीं हो गया।

यदि उनकी नजर ऐसे सामान पर पड़ती है तो यह सोचकर चुप नहीं रह जाती कि हमें क्या करना है, क्यों बेकार के लफड़े में पड़ समय खराब किया जाए, बल्कि तुरंत ही स्टोर मालिक के पास जाकर जब तक वह सामान वहाँ से हटवा नहीं लेतीं, चैन नहीं लेतीं। अब यहाँ भी ऐसा करने के पीछे केवल मिसेज खुराना का ही फायदा नहीं हैं अपितु सभी लोगों का है।

यह एक तरह से जनचेतना की ही शुरुआत है। सुप्रिया व मिसेज खुराना के उदाहरणों से यह बात स्पष्ट होती है कि हमें सिर्फ अपने लिए ही न सोचकर औरों के हित के बारे में भी सोचना चाहिए। अपना हित तो सभी करते हैं, सोचते हैं, लेकिन असली जीने का मजा तो तब ही है, जब औरों की भलाई के लिए कुछ कदम उठाए जाएँ। वैसे बड़ी-बड़ी बातें करना बहुत आसान है, जो कि अधिकतर लोग करते ही हैं, किंतु क्या कभी हमने-आपने सोचा है कि सब कुछ अच्छा होगा कैसे?

कायदे-कानून बलवती होंगे कैसे, जरा-सा गौर कर यदि समझदारी से विचार-विमर्श किया जाए तो यही निष्कर्ष सामने आता है कि आप व हम ही हैं, जो समाज की बिगड़ी व्यवस्था व्यवस्था को काफी हद तक व्यवस्थित कर एक स्वस्थ समाज की स्थापना कर सकते हैं। सही-गलत का, भेदभाव का आकलन कर भविष्य में ऐसा न होने देने के लिए इस दिशा में प्रयासरत रह सकते हैं।

यह कोई मुश्किल या फिर बड़ा काम भी नहीं है, बस थोड़ी-सी समझदारी, जागरूकता व प्रेम-अपनत्व की भावना का होना जरूरी है, जो कि हम सभी में कहीं न कहीं विद्यमान है। अतः जहाँ भी कुछ गलत होते हुए जानें-देखें, अनदेखा व अनसुना कर मुँह न फेर लें, बल्कि सही दिशा में सही फैसला लेते हुए सार्थक व सराहनीय कदम अवश्य उठाएँ।