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Written By WD

एक अनोखी वसीयत

एक अनोखी वसीयत -
सुधा मूर्ति

अक्सर जब भी परिवार में दो या अधिक भाई होते हैं, बड़े होकर वे चाहते हैं कि परिवार की संपत्ति का बँटवारा हो। इस विषय में बहस छिड़ जाती है और मामला कचहरी में चला जाता है।

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गाँव के अंदर पंचायत फैसला करती है कि किस प्रकार संपत्ति का विभाजन होना चाहिए। बचपन में मैं अपने दादाजी के साथ पंचों द्वारा बुलाई गई सभा में बैठा करती थी। सभा में पंच चर्चा करते थे कि गाँववासियों की संपत्ति का बँटवारा किस प्रकार होगा। गाँव के बुजुर्ग इसमें शामिल होकर संपत्ति के बँटवारा विवाद में फँसे दोनों भाइयों को बुलाते एवं उन्हें समझाते थे। यदि तीन भाई हैं तो संपत्ति के तीन भाग किए जाते थे। विभाजित संपत्ति के भागों का मूल्य समान होता था।

उदाहरण के लिए हर भाग में थोड़ा सोना, थोड़ी चाँदीएवं कुछ बर्तन होते थे। घर की हर वस्तु की कीमत गाँव के बुजुर्ग तय करते थे। यह प्रयास किया जाता था कि विभाजित किए गए तीन भाग एक समान ही हों, परंतु यह कठिन कार्य था। इस स्थिति में परिवार के छोटे भाई को अवसर मिलता था कि वह अपने भाग को पहले चुने,क्योंकि उसने अपने माता-पिता के साथ बहुत कम दिन गुजारे हैं।

  गाँव में एक धनी व्यक्ति रहता था। उसके तीन पुत्र थे जो कि किसी भी बात पर अपने पिता से सहमत नहीं होते थे। उस धनी व्यक्ति का एक दोस्त था जिसका नाम था सुमंत। वह बहुत ही शिक्षित एवं विद्वान था। उसका कहना था कि समय उन्हें सब कुछ सिखा देगा।      
उन दिनों गाँवों में माता-पिता के साथ रहना भी संपत्ति की तरह माना जाता था। सभी गाँव वाले गाँव के बुजुर्गों का आदर करते थे। सभी जानते थे कि वे निष्पक्ष होकर न्याय करते हैं। पंचों द्वारा लिए गए फैसले को अंतिम माना जाता था।

गाँववासी उनके खिलाफ कचहरी में मुकदमा दर्ज नहीं करते थे। कचहरी में ऐसे मुकदमे के लिए जाना समय एवं श्रम दोनों की बर्बादी समझते थे। गाँव में कहावत प्रचलित है कि यदि दो पक्ष के लोग कचहरी में मुकदमा लड़ते हैं तो मुकदमा लड़ रहे वकील धनी बन जाते हैं एवं लड़ाई कर रहे दोनों पक्ष निर्धन हो जाते हैं। एक बार संपत्ति को लेकर एक परिवार के सदस्यों के बीच कुछ मतभेद हो गए।

सरपंच ने बहुत प्रयत्न किया कि दोनों भाइयों का विवाद सुलझ जाए, परंतु उन्होंने इस निर्णय को स्वीकार नहीं किया। आखिर में सरपंच सोम गोउडा ने एक कहानी सुनाई। बहुत साल पहले की बात है, जब गाँव में एक धनी व्यक्ति रहता था। उसके तीन पुत्र थे जो कि किसी भी बात पर अपने पिता से सहमत नहीं होते थे। उस धनी व्यक्ति का एक दोस्त था जिसका नाम था सुमंत। वह बहुत ही शिक्षित एवं विद्वान था। उसका कहना था कि समय उन्हें सब कुछ सिखा देगा।
एक दिन वह धनी व्यक्ति चल बसा। उसके पास सत्रह घोड़े थे। वह बहुत धन, जायदाद छोड़कर गया था। अपने जीवनकाल में उसने बड़ी अद्भुत वसीयत लिखी। उसने धन एवं भूमि के बराबर तीन हिस्से कर दिए थे। परंतु घोड़ों के बँटवारे के लिए एक पहेली सुलझाने की शर्त रखी थी।इस पहेली को समझना कठिन लग रहा था। घोड़ों की संख्या से आधा हिस्सा बड़े बेटे को, बचे हुए आधे हिस्से में से दो तिहाई भाग दूसरे बेटे को और दो तिहाई भाग तीसरे बेटे को मिलेगा।

घोड़ों की संख्या सत्रह थी। उस संख्या का आधा करना मतलब आठ घोड़े बड़े बेटे को जाएँगे व एक घोड़े को आधा करने के लिए उसे मारना पड़ेगा। उन आठ घोड़ों के दो तिहाई भाग करने के लिए एक और घोड़े को मारना पड़ेगा। यह कार्य करना बहुत ही कठिन था, क्योंकि उनके पिता को सभी घोड़ों से लगाव था। वे कभी नहीं चाहेंगे कि किसी घोड़े की हत्या की जाए। इसका क्या अर्थ था? उन्हें समझ में नहीं आ रहा था।

जब वे अपनी पहेली की गुत्थी को सुलझा नहीं सके, तब उन्होंने उनके पिता के मित्र सुमंत को वसीयत दिखाई। सुमंत वसीयत को पढ़कर मुस्कुरा दिए और कहा कि इस पहेली का समाधान करना बहुत ही आसान है। कल सुबह आकर मैं इस गुत्थी को सुझाऊँगा।

दूसरे दिन सभी लोग एकत्रित होकर इंतजार कर रहे थे। सत्रह घोड़े एक कतार में खड़े हुए थे। सुमंत अपने घोड़े पर सवार होकर आए। उन्होंने अपने घोड़े को अन्य सत्रह घोड़ों के साथ खड़ा कर दिया। सुमंत ने कहा, 'अब अठारह घोड़े हो गए हैं। मैं तुम्हारे पिता समान हूँ। अब तुम इन घोड़ों का बँटवारा वसीयत के अनुसार कर सकते हो।'

परंतु लड़कों ने विरोध करते हुए कहा कि आपने अपने घोड़े को हमारे घोड़े के साथ जोड़ दिया है। परंतु वसीयत के अनुसार पिताजी ऐसा नहीं चाहते थे।

सुमंत ने कहा, 'तुम लोग चिंता मत करो, बँटवारा समाप्त होने तक प्रतीक्षा करो। बँटवारे के बाद मैं अपने घोड़े को वापस लेकर चला जाऊँगा। अब घोड़ों की संख्या अठारह हो गई है। इसका आधा करना मतलब कि बड़े बेटे को नौ घोड़े मिलेंगे। अब रह गए नौ घोड़ेजिसमें से दो तिहाई घोड़े मतलब छः घोड़े दूसरे बेटे को मिलेंगे। अब मात्र तीन घोड़े बचे हैं। तीन घोड़ों में से दो तिहाई तीसरे को मिलेंगे। इसका अर्थ है कि तीन घोड़ों में से दो घोड़े तीसरे पुत्र को मिलेंगे।

एक घोड़ा बच गया है, जो कि मेरा है और मैं इसे अपने साथ ले जा रहा हूँ।' वहाँ पर एकत्रित लोग चकित रह गए। वे कुछ समझ नहीं पा रहे थे। तीनों बेटे यह सोचते रह गए कि बिना घोड़े की हत्या किए घोड़ों का बँटवारा कैसे हो गया। उन्होंने सुमंत से कहा, 'चाचाजी, आपने घोड़ों का बँटवारा कैसे किया?' सुमंत ने कहा, 'मेरे अनुभवों ने मुझे जिंदगी में बहुत कुछ सिखाया है। तुम्हारे पिता को भी इस बात का पता था। कई बार काम असंभव लगता है, लेकिन छोटी से छोटी सलाह भी बड़े काम की हो सकती है।

इसी कारण तुम्हारे पिताजी ने अपनी वसीयत इस प्रकार लिखी थी कि तुम्हें किसी अन्य व्यक्ति से सुझाव लेना पड़ा। तुम्हें ऐसा लगता है कि तुम्हें सब कुछ पता है। परंतु याद रखो कि तुम लोग अभी भी वि'ार्थी ही हो। जिंदगी से हम बहुत कुछ सीख सकते हैं, लेकिन खुले नजरिए एवं दिमाग से ही इस ज्ञान को प्राप्त किया जा सकता। गाँव के सरपंच सोम गोउडा ने कहा, 'इस प्रकार बुजुर्गों ने हमें सीख दी है। अनुभव ही जिंदगी का सबसे अच्छा शिक्षक है।

उम्र में बड़े व्यक्ति जिंदगी के उतार-चढ़ाव से बहुत कुछ सीखते हैं। लोगों से मिलकर हम बहुत कुछ सीखते हैं। अनुभवों के आधार पर हमने जो ज्ञान प्राप्त किया है, वह किसी स्कूल या कॉलेज में नहीं सीखा जा सकता। समय के साथ इस ज्ञान को प्राप्त किया जाता है। इस सिलसिले में अब आप क्या फैसला करना चाहते हैं, वह मैं आपके ऊपर छोड़ता हूँ।' दोनों भाइयों ने यह बात सुनकर निर्णय लिया कि संपत्ति के बँटवारे के लिए पंचों के निर्णय को वे स्वीकार करेंगे।