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Written By Naidunia

भगोरिया पर आधुनिकता का रंग

भगोरिया पर आधुनिकता का रंग -
भगोरिया पर्व परंपरागत तरीके से संपन्ना हुआ। वक्त के साथ आदिवासी अंचलों में आधुनिकता ने दस्तक दी, जिसमें सबसे अधिक वेशभूषा पर प्रभाव दिखा। बदलते माहौल में आदिवासी युवक-युवतियों ने चाहे आधुनिक वेशभूषा को स्वीकार किया हो, परंतु चटख रंग लिए आदिवासी परंपरा और वेशभूषा को शहरी माहौल में और अधिक पसंद किया जाने लगा है। यही कारण है कि शहर में होने वाले आयोजनों में भगोरिया नृत्य व खूबसूरत वेशभूषा लोगों की पहली पसंद बनी हुई है। पसंद के कारण इनके दाम भी बढ़ गए हैं। परंपरागत वेशभूषा का आकर्षण आधुनिक बालाओं के सिर चढ़कर बोल रहा है।


आदिवासियों का मुख्य त्योहार भगोरिया में आदिवासी पारंपरिक वेशभूषा के रूप में महिलाएॅं 'नाटी' (लगभग 8 फुट की साड़ी) तथा पुरुष 'धोती-कुर्ता' व फेटा बाँधते आए हैं। आज के समय में इनमें कुछ हद तक परिवर्तन आ गया। महिलाएँ साड़ी तथा पुरुष जींस-शर्ट में नजर आने लगे हैं। इसके पीछे आधुनिकता के साथ-साथ महँगाई भी मुख्य कारण है। आदिवासियों की पारंपरिक वेशभूषा 'नाटी' की कीमतें बढ़ गई हैं। कुछ वर्षों पहले 200 से 250 रु. में मिलने वाली नाटी अब 600 से 1600 रु. तक पहुँच गई है, जबकि 150 से 300 रु. के मध्य आधुनिक डिजाइन वाली साड़ियाँ मिल जाती हैं।


इनके दाम आधुनिक समाज के कुछ लोगों ने बढ़ाए हैं। आदिवासी संस्कृति से जुड़े विक्रम बालके का मानना है कि मनोरंजन या परंपराओं के लिए कई स्कूलों व कॉलेजों में आदिवासी वेशभूषा की नुमाईश होने लगी है। इसके चलते इनकी माँग बढ़ गई है। साथ ही इनके मूल्य में भी बढ़ोतरी आई है। संपन्ना तबके के लोग उनके बच्चों के लिए यह परिवेश आसानी से उपलब्ध कर लेते हैं, परंतु अब इनका मोल अधिक होने से यह आदिवासियों की पहुँच से बाहर हो गए हैं। अखिल भारतीय आदिवासी विकास परिषद जिलाध्यक्ष विजयसिंह मंडलोई ने बताया कि रोजगार की तलाश में कई आदिवासियों के महानगरों में चले जाने से नई पीढ़ी पर आधुनिकता का प्रभाव पड़ा है।