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Written By Naidunia
Last Modified: झाबुआ , गुरुवार, 23 फ़रवरी 2012 (22:37 IST)

आ गया ताड़ी का सीजन

आ गया ताड़ी का सीजन -
जिले में इन दिनों ताड़ी का सीजन अपने शबाब पर आता जा रहा है। ताड़ी की भरपूर उपलब्धता व आवक से मधुप्रेमियों के चेहरों पर चमक दिखाई दे रही है। इस साल पड़ी खासी सर्दी के कारण ताड़ी के आने का सिलसिला विलंब से आरंभ हुआ है। इन दिनों झाबुआ में प्रतिदिन करीब डेढ़ हजार लीटर ताड़ी की आवक हो रही है। भगोरिया के दौरान दो से तीन गुना अधिक ताड़ी की आवक रहेगी। उल्लेखनीय है कि ताड़ी के मौसम में प्रतिवर्ष लाखों रुपए का व्यवसाय होता है।


प्राकृतिक संसाधनों के धनी वनांचल झाबुआ में इन दिनों ताड़ी की आवक अच्छी है। जिले में ग्रामीण क्षेत्र सहित आलीराजपुर जिले से ताड़ी की आवक हो रही है। उल्लेखनीय है कि क्षेत्र में ताड़ी का सीजन दिसम्बर के अंतिम पखवाड़े से मई के अंत तक जोरदार रहता है।


भगोरिया में फैलेगी मस्ती

क्षेत्र का मस्तीभरा पर्व भगोरिया 1 मार्च से आरंभ हो रहा है। भगोरिया के बाद होली, गल, शीतला सप्तमी उसके बाद गढ़ पर्व तक क्षेत्र में उत्साह का माहौल रहेगा। इस पूरी अवधि में ताड़ी की बम्पर आवक रहेगी और प्रतिदिन बड़ी संख्या में ताड़ी प्रेमी लुत्फ उठाएँगे।


करना पड़ता है लंबा इंतजार

ज्ञातव्य है कि ताड़ का वृक्ष लम्बे समय में तैयार होता है। ताड़ के बीज बोने और उसके पेड़ बनने से लेकर उससे ताड़ी प्राप्ति की अवस्था तक की प्रक्रिया में लगभग 25-30 साल का समय लग जाता है। ताड़ी के पेड़ 20 से 30 फीट तक ऊँचे होते हैं और उस पर मटकी व अन्य बर्तन टाँग दिया जाता है जिसमें ताड़ी रिसती रहती है। प़ेड के जिस स्थान से ताड़ी रिसती है वहाँ प्रतिदिन हत्थे से घिसाई करना पड़ती है, ताकि रिसने की गति कम न हो।


सुबह की ताड़ी मीठी होती है

उल्लेखनीय है कि सुबह के समय पेड़ से मिलने वाली ताड़ी मीठी एवं स्वादिष्ट होती है। इसको पीने पर नशा देरी से आता है। दोपहर में निकलने वाली ताड़ी थोड़ी कड़क और शाम के समय निकलने वाली तो अत्यंत ही नशीली रहती है। एक पेड़ से 10-12 लोटी ताड़ी एक समय में निकल पाती है और एक लोटी की कीमत 20 से 25 रुपए मिलती है। सुबह निकलने वाली ताड़ी को नीरा कहते हैं, जोकि मीठे शरबत जैसी होती है।


अच्छी आवक होने लगी

इन दिनों क्षेत्र में ताड़ी की अच्छी आवक होने लगी है। इन दिनों मुख्य रास्तों के किनारे जगह-जगह खुले में ताड़ी बिक रही है। ग्राम रंगपुरा निवासी तेरसिंह ने बताया कि वे रस्सी के सहारे ताड़ पर चढ़ते हैं और पेड़ के हत्थे के नीचे बँधी मटकियों में से ताड़ी निकालते हैं।


अच्छी माँग रहती है

अंचल में ताड़ी की अच्छी माँग रहती है। यहाँ ताड़ी के सीजन में बाहर से आने वाले मधुप्रेमी इसका मजा लेने से नहीं चूकते हैं। आदिवासियों के अलावा शहरी लोग भी भरपूर मात्रा में इसका सेवन करते हैं। कुछ लोगों का कहना रहता है कि इस प्राकृतिक पेय को सीमित मात्रा में पिया जाए तो नुकसान नहीं करता, बल्कि पाचन क्रिया अच्छी रखता है। ताड़ी व्यवसाय से जुड़े लोग इन दिनों अलसुबह ही अपनी मोटरसाइकल पर केन बाँधकर दूर-दूर तक ताड़ी लेने के लिए निकल पड़ते हैं। एक मोटरसाइकल सवार अमूमन 100-125 लीटर ताड़ी प्रतिदिन लाकर विभिन्न बाजारों में बेच देता है। ग्रामीण क्षेत्र से लाकर बाजार में वह करीब 40-50 प्रतिशत अधिक भाव से बेचता है। मोटे अनुमान के अनुसार क्षेत्र में इन दिनों रोजाना हजारों रुपए का ताड़ी का व्यवसाय हो रहा है।