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Written By Naidunia
Last Modified: बड़वानी , मंगलवार, 10 जनवरी 2012 (00:52 IST)

प्रदेश के तीन आदिवासी जिले 62 वर्षों से रेल सुविधा से दूर

प्रदेश के तीन आदिवासी जिले 62 वर्षों से रेल सुविधा से दूर -
क्षेत्र में छुक-छुक गाड़ी यानी रेल का इंतजार बरसों से किया जा रहा है। खंडवा से धार व्हाया खरगोन-बड़वानी नवीन रेलमार्ग को आगामी बजट में स्वीकृत कराने की माँग क्षेत्रवासियों ने की है। प्रदेश के तीन आदिवासी बहुल जिले खरगोन, बड़वानी व धार में पिछले 62 वर्षों से रेल सुविधा से अछूते हैं।


रेलवे ने पिछले वर्ष इंजीनियरिंग सर्वेक्षण करवाया और इसे आर्थिक रूप से पैचमनी प्रोजेक्ट नहीं माना है। साथ ही रेलवे ने इन जिलों कोआदिवासी जिला भी नहीं माना है। जबकि मप्र सरकार ने खंडवा, खरगोन, बड़वानी व धार जिलों को आदिवासी जिला एवं आर्थिक रूप से पिछड़ा जिला घोषित कर, यहाँ विकास के लिए विशेष ध्यान केंद्रित किया है। रेल लिंक के अभाव में इन जिलों का सामाजिक व आर्थिक विकास प्रभावित हुआ है।


बड़ी आबादी सुविधाहीन

इन जिलों की बड़ी आबादी की रेल सुविधा की माँग पर केंद्रीय रेल मंत्री, रेलवे बोर्ड के अधिकारियों, सेंट्रल रेलवे ने आँखें मूँद रखी हैं। स्मरण रहे कि सेंट्रल रेलवे ने पिछले वर्ष 10 जनवरी को खंडवा, धार नई ब्रॉडगेज लाइन के लिए रेलवे बोर्ड को इंजीनियरिंग सर्वेक्षण रिपोर्ट प्रस्तुत की है। इस रिपोर्ट को सेंट्रल रेलवे के मुख्य प्रशासनिक अधिकारी द्वारा आर्थिक रूप से संभव नहीं बताई गई है।


सर्वे रिपोर्ट जनता से छलावा

सामाजिक कार्यकर्ता डॉ. ओपी खंडेलवाल ने बताया कि सर्वे रिपोर्ट क्षेत्र के लोगों के साथ छलावा है। जान-बूझकर रिपोर्ट में कई तथ्यों को छुपाया गया है। रिपोर्ट के प्रोजेक्ट की लागत 2025.06 करोड़ आँकी गई है। इस प्रकार प्रति किमी रेलवे लाइन की लागत 7.70 करोड़ रु. आती है, जो मुख्य प्रशासनिक अधिकारी ने बहुत अधिक बताई है। डॉ. खंडेलवाल ने बताया कि इन आदिवासी जिलों को रेलवे सुविधा से वंचित रखना सुनियोजित षड्यंत्र का हिस्सा है। सर्वेक्षण रिपोर्ट में गलत जानकारी देना, आदिवासी क्षेत्र की भोली-भाली जनता के साथ अन्याय है।


किसानों को नुकसान

आरटीआई के अंतर्गत प्राप्त सर्वे रिपोर्ट में कई आश्चर्यजनक जानकारियाँ सामने आई हैं। सर्वे रिपोर्ट में यह बताया है कि आने वाले 11 वर्षों तक माल से कोई आय प्राप्त नहीं होगी। सर्वेक्षण रिपोर्ट में जानबूझकर केश क्राप जैसे मिर्च, कपास, गन्नाा, केला एवं उद्यानिकी की फसलों का उल्लेख नहीं किया गया है। इन जिलों में रेल लिंक के अभाव के कारण कृषकों को अपनी फसलें स्थानीय मंडियों में ही बेचना पड़ती हैं, जिससे कृषकों को हानि उठाना पड़ती है।


कैसे हुआ सर्वेक्षण

जनवरी 07 में केंद्रीय रेल मंत्री, रेलवे बोर्ड के चेयरमैन को डॉ. खंडेलवाल द्वारा खंडवा से दाहोद व्हाया खरगोन, बड़वानी नवीन रेलमार्ग के लिए एक प्रोजेक्ट रिपोर्ट भेजी गई। किंतु एक वर्ष तक इस पर कोई कार्रवाई नहीं हुई। कई स्मरण पत्र भेजे, पर कोई जवाब नहीं। इसके बाद जनवरी 08 में हाईकोर्ट इंदौर में जनहित याचिका लगाई गई। नोटिस जारी किए गए। 2008 के बजट में इसे नवीन रेल लाइन के लिए सर्वेक्षण के लिए शामिल किया गया। इसके लिए बजट में 29 लाख की राशि नियत की गई। लगातार दबाव आरटीआई के माध्यम से बनाया गया। जब दिसंबर 10 में सर्वे रिपोर्ट पूर्ण होकर 7 जनवरी 11 को रेलवे बोर्ड के चेयरमैन को अगली कार्रवाई के लिए प्रस्तुत की गई। इसमें झूठी गणनाओं के आधार पर इस नवीन रेल मार्ग को अलाभकारी दर्शाया गया।


अब क्या किया जाएगा

सेंट्रल रेलवे के मुख्य प्रशासनिक अधिकारी को सर्वे रिपोर्ट में दी गई झूठी जानकारियों से सबूत के साथ अवगत कराया जाएगा। उनसे अपेक्षा होगी कि सर्वे रिपोर्ट की झूठी जानकारी को संशोधित कर सही जानकारी रेलवे बोर्ड को देकर इस आदिवासी क्षेत्र की नवीन रेल लाइन को इसी रेल बजट में शामिल करने की अनुशंसा करें। सेंट्रल रेलवे के द्वारा इस रेलवे अधिकारी बहुल क्षेत्र के विकास के लिए अनुशंसा नहीं करने पर उच्च न्यायालय में जनहित याचिका लगाई जाएगी। -निप्र