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लघु उद्योगों के प्रति बदले सरकारी नीति

रायपुर| Naidunia| Last Modified रविवार, 8 अप्रैल 2012 (00:50 IST)
सरकार भी इस बात को स्वीकार करती है कि देश की अर्थव्यवस्था में रीढ़ की हड्डी लघु उद्योग हैं। इसका अर्थव्यवस्था में 97 फीसदी योगदान है। इसके बावजूद सरकार लघु उद्योगों को बढ़ावा देने के लिए नीति बनाने के विपरीत और इसके पतन के लिए कठिन नीतियाँ बना रही हैं। यह बात यहाँ लघु उद्योग भारती के राष्ट्रीय बैठक के दौरान चर्चा में निकलकर सामने आई। राजधानी के वीआईपी रोड स्थित अग्रसेन धाम में तीनदिवसीय इस राष्ट्रीय बैठक का किया गया है।


शनिवार से शुरू हुई राष्ट्रीय बैठक में देश के विभिन्न प्रांतों से 100 से अधिक लघु उद्योग संचालक हिस्सा ले रहे हैं। इस दौरान लघु उद्योगों के समक्ष समस्याओं व संभावनाओं पर चिंतन तथा चर्चा की गई। यहाँ बताया गया कि अकेले भारत में दो करोड़ 60 लाख लघु व सूक्ष्म दर्जे के उद्योग संचालित हो रहे हैं। इसमें 6 करोड़ कर्मचारी कार्यरत हैं। सम्मेलन में सभी ने एक स्वर में लघु उद्योगों की गिरावट में सरकारी नीतियों को दोषी बताया। बैठक के शुभारंभ मौके पर मुख्यमं़त्री डॉ. रमन सिंह मुख्यअतिथि के रूप में मौजूद थे। विशेष अतिथि उद्योग मंत्री राजेश मूणत, लोक निर्माण मंत्री बृजमोहन अग्रवाल, तथा कृषि मंत्री चंद्रशेखर साहू थे।


मनरेगा ने किया खोखला : पूर्वी जोन के प्रभारी तथा लघु उद्योग भारती के पूर्व राष्ट्रीय उपाध्यक्ष नंद कुमार सिंह ने नईदुनिया से चर्चा के दौरान कहा कि केन्द्र सरकार द्वारा चलाई जा रही मनरेगा स्कीम ने लघु उद्योगों को खोखला कर दिया है। मनरेगा की वजह से लघु उद्योगों को मजदूर नहीं मिल रहे। वहीं बैंक भी बड़े उद्योगों को आसानी से कम ब्याज दर पर लोन दे देती है लेकिन लघु उद्योगों के साथ ऐसा नहीं है। श्री सिंह ने मनरेगा को लघु उद्योगों से जोड़ने के लिए कहा है। उन्होंने कहा कि इसमें सरकार के साथ उद्योग भी श्रमिक को पारिश्रमिक देंगे जिससे सरकार के उद्देश्य पूर्ति के साथ लघु उद्योग को भी मजदूर मिलेंगे और मजदूरों को आर्थिक रूप से अधिक लाभ भी होगा।


स्कूलों तक पहुँचेगा लघु उद्योग : सम्मेलन में सुझाव के रूप में एक बात सामने आई कि स्कूलों तक लघु उद्योगों से संबंधित जानकारी पहुँचाई जाएगी। इसमें बारहवीं में अध्ययनरत छात्रों को जोड़ा जाएगा, जिससे वे बारहवीं के बाद ही स्वरोजगार से जुड़ सकें।

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