शुक्रवार, 29 मार्च 2024
  • Webdunia Deals
  1. लाइफ स्‍टाइल
  2. »
  3. उर्दू साहित्‍य
  4. »
  5. शेरो-अदब
Written By WD
Last Modified: शनिवार, 30 अगस्त 2008 (15:45 IST)

फ़ाज़िल अंसारी बुरहानपुरी की ग़ज़लें

फ़ाज़िल अंसारी बुरहानपुरी की ग़ज़लें -
1. दिल के मकाँ में, आँख के आंगन में, कुछ न था
जब ग़म न था, हयात के दामन में, कुछ न था

ये तो ज़रा बताओ हमें एहले-कारवाँ
इन रेहबरों में क्या है जो रेहज़न में कुछ न था

ज़ुलमत का जब तिलिस्म न टूटा निगाह से
रोशन हुआ के दीदा-ए-रोशन में कुछ न था

वो तो बहार का हमें रखना पड़ा भरम
वरना ये वाक़िआ है के गुलशन में कुछ न था

मुझ पर बतौरे-ख़ास थी उसकी निगाहे-लुत्फ
कहता मैं किस तरह मेरे दुश्मन में कुछ न था

ये भी दुरुस्त है के नशेमन में बर्क़ थी
ये भी गलत नहीं के नशेमन में कुछ न था

फ़ाज़िल रुख़े-हयात पे यूँ थीं मसर्रतें
जैसे ग़मे-हयात की उलझन में कुछ न

2. शोलों से हवादिस के गुज़र जाऊँगा इक दिन
सोने की तरह मैं भी निखर जाऊंगा इक िन

मैं ज़िन्दा हुआ मुर्दा परस्ती से जहाँ की
सोचा भी न था मिट के उभर जाऊँगा इक सिन

बनते रहें हालात मेरी राह के पत्थर
तूफ़ान की मानिन्द गुज़र जाऊँगा इक दिन

रेह ख़िज़्र के साथ ऎ ग़मे-हस्ती के मेरा क्या
सौ साल जिऊँगा भी तो मर जाऊँगा इक दिन

शीराज़ा-ए-हस्ती है बंधा तार-ए-नफ़स से
ये तार जो टूटा तो बिखर जाऊँगा इक दिन

बिगड़े हुए हालात से मायूस नहीं मैं
उम्मीद है फ़ाज़िल के संवर जाऊँगा इक दिन