गुरुवार, 25 अप्रैल 2024
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Written By WD

'है बस के हर इक उनके इशारे में निशाँ और'

''है बस के हर इक उनके इशारे में निशाँ और'' -
'है बस के हर इक उनके इशारे में निशाँ और'
ग़ालिब की ग़ज़ल-अशआर के मतलब के साथ

है बस के हर इक उनके इशारे में निशाँ और
करते हैं मोहब्बत तो गुज़रता है गुमाँ और

उनकी जानिब से इशारे तो ज़रूर होते हैं, लेकिन उन इशारों का मतलब समझना बहुत मुश्किल है। इसलिए जब वो मोहब्बत करते हैं तो भी हमें यक़ीन नहीं होता के क्या ये वाक़ई हमसे मोहब्बत कर रहे हैं या सिर्फ़ मज़ाक़ किया जा रहा है।

यारब न वो समझे हैं न समझेंगे मेरी बात
दे और दिल उनको जो न दें मुझको ज़ुबाँ और

ऎ ख़ुदा, वो मेरी बात न अब तक समझे हैं और न आगे समझेंगे, ऎसी मुझे पूरी उम्मीद है। इसलिए अगर तू मुझे ऎसी ज़ुबान नही देता जिस में इतना असर हो के उन्हें अपनी बात समझा सके तो फिर उनको ही ऎसा दिल देदे जो मेरी बात समझ सके।

अबरू से है क्या उस निगहा-ए-नाज़ को पेवन्द
है तीर मुक़रर्र, मगर उसकी है कमाँ और

उनकी आँखों को तीर बरसाना तो ख़ूब आता है। लेकिन इन तीरों की कमान अबरू (भवें) नहीं हैं। निगा-ए-नाज़ के तीर तो चलते हैं लेकिन इन तीरों की कमान कोई और ही है।

तुम शहर में हो तो हमें क्या ग़म जब उठेंगे
ले आएँगे बाज़ार से जाकर दिल-ओ-जाँ और

तुम्हारे शहर में होने की वजह से दिल-ओ-जान ख़ूब बिक रहे हैं। क्योंके लोग इनसे बेज़ार हो गए हैं और इन्हें फ़रोख़्त करना चाहते हैं। इसलिए हमें कोई ग़म नहीं है अगर हमारे दिल-ओ-जान चले गए हैं तो हम दूसरे ख़रीद लाएँगे।

लोगों को है ख़ुरशीद-ए-जहाँताब का धोका
हर रोज़ दिखाता हूँ मैं इक दाग़-ए-निहाँ और

मेरे सीने में बेशुमार दाग़ छुपे हुए हैं। सूरज जो रोज़ चमकता हुआ दिखाई देता है, दरअसल वो मेरे दिल का एक दाग़ होता है। लोग धोका खाते हैं और इसे चमकता हुआ सूरज समझ लेते हैं।

पाते नहीं जब राह तो चढ़ जाते हैं नाले
रुकती है मेरी तबआ तो होती है रवाँ और

पानी बहता रहता है तो बहता रहता है, लेकिन अगर वो रुक जाए या रोक दिया जाए तो वो चढ़ जाता है। इसी तरह जब मेरी तबीयत रुकती या रोकी जाती है तो उसमें और ज़्यादा रवानी पैदा हो जाती है।

हैं और भी दुनिया में सुख़नवर बहुत अच्छे
कहते हैं के ग़ालिब का है अन्दाज़-ए-बयाँ और

दुनिया में तो कई अच्छे अच्छे शायर हैं। लेकिन लोग कहते हैं के ग़ालिब की बात ही कुछ और है। किसी बात को बयान करने का ग़ालिब का अन्दाज़ सबसे जुदा, सबसे अलग है। मतलब कई अच्छे अच्छे शायर हैं लेकिन सबसे अच्छा शायर अगर कोई है तो वो ग़ालिब है।