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Written By वार्ता
Last Modified: फरीदाबाद , गुरुवार, 16 अगस्त 2012 (22:13 IST)

भारतीय खेलों में शुरू हुआ नया युग-नारंग

भारतीय खेलों में शुरू हुआ नया युग-नारंग -
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ओलिंपिक में कांस्य पदक जीतकर लौटे राइफल निशानेबाज गगन नारंग ने गुरुवार को यहां कहा कि लंदन ओलिंपिक से भारतीय खेलों में एक नए युग की शुरुआत हुई है और इसे आने वाले समय में ज्यादा मजबूत किए जाने की जरूरत है।

लंदन ओलिंपिक में 10 मीटर एयर राइफल स्पर्धा में कांस्य पदक जीतने वाले नारंग का यहां मानव रचना इंटरनेशनल यूनिवर्सिटी में शाही स्वागत हुआ और इस विश्वद्यालय के कुलाधिपति डॉ. ओपी भल्ला ने नारंग को उनकी अभूतपूर्व उपलब्धि के लिए चौथे मानव रचना कीर्ति पुरस्कार तथा 11 लाख रुपए की नगद पुरस्कार राशि देकर सम्मानित किया। नारंग इस विश्वविद्यालय में एमबीए की पढ़ाई कर रहे हैं और वे 2013 में यहां से पास आउट होंगे।

मानव रचना इंटरनेशनल यूनिवर्सिटी में अपने शाही स्वागत से अभिभूत नारंग ने कहा, हरियाणा मेरे दिल में एक खास स्थान रखता है, क्योंकि मेरे माता-पिता का संबंध इसी राज्य से है और यह राज्य खेलों को बढ़ावा देने में देश में सबसे आगे है।

राइफल निशानेबाज ने ओलिंपिक के अपने पहले पदक और भारत के कुल छह पदकों के सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन का जिक्र करते हुए कहा, लंदन ओलिंपिक से भारतीय खेलों में एक नए युग की शुरुआत हुई है और मुझे खुशी है कि मैंने कांस्य पदक जीतकर इसमें अपनी तरफ से एक योगदान दिया।

वर्ष 1997 में 14 वर्ष की उम्र में निशानेबाजी की शुरुआत करने वाले और 2012 में लंदन ओलिंपिक में अपनी कीर्ति पताका फहराने वाले नारंग ने कहा, मेरे माता-पिता ने एक प्‍लॉट बेचकर मुझे पहली राइफल दिलाई थी, जिसके बाद हम 15 साल तक किराए के मकान में रहे थे।

उन्होंने कहा, मेरा मानना है कि एक मंजिल पर पहुंचने के लिए आपको जीवन में बड़ा संघर्ष करना पड़ता है और अपना लक्ष्य हासिल करने के लिए प्रतिबद्धता दिखानी पड़ती है। मेरे लिए भी इस मंजिल तक पहुंचने का सफर बहुत लंबा रहा। वर्ष 2003 के एफ्रो एशियाई खेलों में मैंने अपना पहला मेडल जीता था। तब जसपाल राणा हमारे हीरो हुआ करते थे। यह जसपाल ही थे, जिन्होंने निशानेबाजी को बुलंदियों पर पहुंचाया था।

खेलों को स्कूली पाठ्यक्रम में शामिल करने पर जोर देते हुए कांस्य विजेता ने कहा, अपने करियर में माता-पिता के बाद मुझे टीचर्स से काफी समर्थन मिला। सरकार और कॉर्पोरेट ने भी काफी समर्थन दिया, लेकिन ओलिंपिक खेलों में बुहत कुछ किए जाने की जरूरत है, तभी जाकर आप चीन जैसे देशों की बराबरी पर पहुंच पाएंगे।

लंदन से लौटने के बाद पुणे, हैदराबाद और अब यहां हरियाणा में अपने स्वागत को अभूतपूर्व बताते हुए उन्होंने कहा, पदक जीतने के बाद जब खिलाड़ी का इस तरह सम्मान होता है, तब लगता है कि जो खून-पसीना बहाया था, वह सार्थक साबित हो गया। (वार्ता)