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Written By WD

ईश्वर के बाद कौन...?

ईश्वर के बाद कौन...? -
हिन्दू धर्म ईश्वर को कर्ता-धर्ता नहीं मानता। वह तो एक 'शुद्ध प्रकाश' है। उसकी उपस्थिति से ही ब्रह्मांड निर्मित होते हैं और भस्म भी हो जाते हैं। ईश्वर को सर्वशक्तिमान घोषित करने के बाद हिंदुत्व कहता है कि ब्रह्मांड में तीन तरह की शक्तियां सक्रिय हैं- दैवीय, दानवी और मिश्रित शक्तियां। मिश्रित शक्तियों में गंधर्व, यक्ष, रक्ष, अप्सरा, पितृ, किन्नर, मानव आदि हैं।
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कौन है हिंदुओं का ईशदूत, जानिए

एक साधे सब सधे सब साधे कोई न सधे

वेदों अनुसार ईश्वर को छोड़कर किसी अन्य की प्रार्थना नहीं करनी चाहिए। इससे जीवन में विरोधाभाष बढ़ता है और मन भटकाव के रास्ते पर चला जाता है। द्वंद्व रहित मन ही संकल्पवान बन सकता है। संपल्पवान मन में ही रोग, शोक और तमाम तरह की परिस्‍थितियों से लड़कर सफलता को पाने की शक्ति होती है।
ईश्वर के बारे में विस्तार से जानने के लिए आगे क्लिक करें... परमपिता परमेश्व

अगले पेज पर, ईश्वर के बाद कौन है जो शक्तिशाली, कृपालु और दयालु है.....


ईश्वर के बाद तीन तरह की शक्तियां हैं- ब्रह्मा, विष्णु और महेश (शिव)।

ब्रह्मा : ब्रह्मा को हमारी सृष्टि में जीवों की उत्पत्ति का पिता माना जाता है। ब्रह्मांड या सृष्टि का रचयिता नहीं। उन्हें ही प्रजापिता, पितामह तथा हिरण्यगर्भ कहते हैं। इनके बारे में कहा जाता है कि यह हमें सृष्टि में लाने वाले देव हैं। सावित्री इनकी पत्नी, सरस्वती पुत्री और हंस वाहन है।

भगवान ब्रह्मा का परिचय

प्रजापिता से ही प्रजापतियों का जन्म हुआ। मरीचि, अत्रि, अंगिरा, पुलस्त्य, पुलह, क्रतु, भृगु, वशिष्ठ, दक्ष तथा कर्दम- ये 10 मुख्य प्रजापति हैं। ब्रह्माजी से ही सभी देवताओं, दानवों, गंधर्वों, मनुष्यों, मत्स्यों, पशु और पक्षियों की उत्पत्ति हुई।

विष्णु : विष्णु को पालक माना गया है। यह संपूर्ण विश्व भगवान विष्णु की शक्ति से ही संचालित है। विष्णु की सहचारिणी लक्ष्मी है। संपूर्ण जीवों का आश्रय होने के कारण भगवान श्रीविष्णु ही नारायण कहे जाते हैं। वे ही हरि हैं।

भगवान विष्णु के बारे में विस्तार से...

आदित्य वर्ग के देवताओं में विष्णु श्रेष्ठ हैं। मत्स्य, कूर्म, वाराह, वामन, हयग्रीव, परशुराम, श्रीराम, कृष्ण और बुद्ध आदि भगवान श्रीविष्णु के ही अवतार हैं।

शिव : शिव हैं सनातन धर्म का परम कारण और कार्य। शिव हैं धर्म की जड़। जो भी धर्म के विरुद्ध हैं, वे शिव की मार से बच नहीं सकते इसीलिए शिव को संहारक माना गया है। जिस तरह विष्णु के अवतार हुए हैं उसी तरह शिव के भी अवतार हुए हैं। शिव की अर्धांगिनी का नाम है- सती पार्वती। रुद्र वर्ग के देवताओं में शिव श्रेष्ठ हैं।
भगवान शिव के बारे संपूर्ण जानकारी।

अगले पन्ने पर पढ़ें देव और दानवों के माता-पिता और गुरु के बारे में...


देव और दानव : हिन्दू धर्मग्रंथों के मुताबिक देवता धर्म के, तो दानव अधर्म के प्रतीक हैं। देवताओं के गुरु बृहस्पति हैं, तो दानवों के गुरु शुक्राचार्य। देवताओं के भगवान विष्णु हैं तो दानवों के शिव। इन्हीं के कारण जहां सूर्य पर आधारित धर्म का जन्म हुआ, वहीं चंद्र पर आधारित धर्म भी जन्मा।

दैत्यों की उत्पत्ति का रहस्य जानिए...

दोनों की शक्तियां : इन्हें ही सुर और असुर कहा जाता है। ये आकाश में उड़ना जानते हैं और पानी पर भी चलना। ये पलभर में कहीं भी पहुंच जाते हैं और गायब होने की शक्ति भी इनमें है। ये सर्वशक्ति संपन्न रहते हैं। ये जहां मानव का दिमाग-बुद्धि बदलना जानते हैं वहीं ये मानव के धर्म और अधर्म को भी संचालित करते हैं।

गीता में कहा ‍गया है, जो मानव देवताओं को भजता है वह देवलोक जाता है और जो दानवों को भजता है वह दानवी शक्तियों के अधीन रहता है। ये सकारात्मक और नकारात्मक शक्तियां हैं। उनमें से एक ईश्वर की शक्ति को मानती है और एक नहीं।

देव-दानवों की उत्पत्ति : देवता और दानव दोनों की उत्पत्ति एक ही पिता से हुई है, लेकिन उनकी माताएं अलग-अलग थीं। देव-दानवों के पिता ऋषि कश्यप हैं, वहीं देवताओं की माता का नाम अदिति और दानवों की माता का नाम दिति है। ब्रह्मा इन दोनों के कुल के पूर्वज हैं।

अगले पन्ने पर पढ़ें... पितृ और पितृलोक का सच


देव और दानवों के नीचे पितृलोक की सत्ता है। जो भी व्यक्ति मर जाता है वह पुन: धरती पर जन्म लेने के ‍पूर्व पितृलोक चला जाता है। पितृलोक चंद्रमा के पास स्थित है।

धर्मशास्त्रों के अनुसार पितरों का निवास चंद्रमा के उर्ध्वभाग में माना गया है। आत्माएं मृत्यु के बाद 1 से लेकर 100 वर्ष तक यहां मृत्यु और पुनर्जन्म के मध्य की स्थिति में रहती हैं। जरूरी नहीं कि सभी आत्माएं 100 वर्ष तक रहें। सभी के कर्म और स्मृति के आधार पर उन्हें निश्चित समय में धरती पर गर्भ में फेंक दिया जाता है। पितृलोक के श्रेष्ठ पितरों को न्यायदात्री समिति का सदस्य माना जाता है।

पक्षी लोक : अन्न से शरीर तृप्त होता है। अग्नि को दान किए गए अन्न से सूक्ष्म शरीर और मन तृप्त होता है। इसी अग्निहोत्र से आकाश मंडल के समस्त पक्षी भी तृप्त होते हैं। पक्षियों के लोक को भी पितृलोक कहा जाता है।

इन पितरों में से ही कोई भूत बनता है कोई राक्षस। हिन्दू धर्म में गति और कर्म अनुसार मरने वाले लोगों का विभाजन किया गया है- भूत, प्रेत, पिशाच, कूष्मांडा, ब्रह्मराक्षस, वेताल और क्षेत्रपाल। उक्त सभी के उपभाग भी होते हैं। आयुर्वेद के अनुसार 18 प्रकार के प्रेत होते हैं। भूत सबसे शुरुआती पद है या कहें कि जब कोई आम व्यक्ति मरता है तो सर्वप्रथम भूत ही बनता है।

भूतों के बारे में जानने के लिए पढ़ें... कौन बनता है भूत

आत्माओं के बारे में और विस्तार से जानने के लिए यहां क्लिक करें... आत्मा ही ब्रह्म है
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