फाल्गुनी अकेली बैठी आँगन में सोच रही थी उस दर्द को जो तुमसे मिला, धन्यवाद इस पहली बूँद को जिसने चेहरे पर गिरते ही पुलकित कर दिया मुझे और मैं भूल गई तुम्हारे दर्द को, तुमसे कहीं ज्यादा सार्थक है वह बारिश की पहली बूँद -----
वह साँवली शाम यह सलोनी सुबह बारिश की झड़ी और मैं अकेली, मायूस, तन्हा तुम्हारी यादें बिखरी हुई है यहाँ-वहाँ जाने कहाँ-कहाँ...?