शुक्रवार, 19 अप्रैल 2024
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Written By अनिरुद्ध जोशी 'शतायु'

मुरलीधर की मथुरा

मुरलीधर की मथुरा -
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यमुना नदी के पश्चिमी तट पर बसा विश्व के प्राचीन शहरों में से एक मथुरा प्राचीन भारतीय संस्कृति एवं सभ्यता का केंद्र रहा है। भारत की सात प्राचीन नगरी अयोध्या, मथुरा, हरिद्वार, काशी, कांची, अवंतिका और द्वारका में से एक है मथुरा। इस शहर का इतिहास बहुत ही पुराना है। हिंदुओं का इस स्थान के लिए वैसा ही महत्व है जैसा की मुसलमानों के लिए मदीना का।

मथुरा जिले में चार तहसीलें हैं- माँट, छाता, महावन और मथुरा तथा 10 विकास खण्ड हैं- नन्दगाँव, छाता, चौमुहाँ, गोवर्धन, मथुरा, फरह, नौहझील, मांट, राया और बल्देव। जिले का भौगोलिक क्षेत्रफल 3329.4 वर्ग कि.मी. है। प्राचीन काल में यह शूरसेन देश की राजधानी थी। वाल्मीकि रामायण में मथुरा को मधुपुर या मधुदानव का नगर कहा गया है।

मंदिर, कुंड, जंगल और घाटों के शहर मथुरा के आसपास बसे स्थानों में प्रमुख है, गोगुल, वृंदावन, ब्रज मंडल, गोवर्धन पर्वत, बरसाना, नंदगाँव और यमुना के घाट तथा जंगल। मथुरा और उसके आसपास के प्रमुख मंदिर हैं- कृष्ण जन्मभूमि मंदिर, सती बुर्ज, आदिवराह मंदिर, कंकाली देवी, कटरा केशवदेव मंदिर, कालिन्दीश्वर महादेव, दाऊजी मंदिर, दीर्घ विष्णु मंदिर, द्वारिकाधीश मंदिर, पद्मनाभजी का मंदिर, पीपलेश्वर महादेव, बलदाऊजी, श्रीनाथ जी भंडार आदि।

प्रमुख कुंड में पोखरा का कुंड और शिवताल का महत्व ही अधिक है। प्रमुख घाटों में ब्रह्मांड घाट, विश्राम घाट और यमुना के घाट की सुंदरता देखते ही बनती है। इसके अलावा मथुरा जिले में 12 वन थे- मधुवन, तालवन, कुमुदवन, काम्यवन, बहुलावन, भद्रवन, खदिरवन, महावन, लौहजंघवन, बिल्व, भांडीरवन एवं वृन्दावन। इसके अलावा 24 उपवन भी थे।

मथुरा से वृन्दावन की ओर जाने पर पागल बाबा का मंदिर, बाँकेबिहारी मंदिर, शांतिकुंज, बिड़ला मंदिर और राधावल्लभ का मंदिर देखने लायक है। मथुरा से गोकुल की ओर ठकुरानी घाट, नवनीतप्रियाजी का मंदिर, रमण रेती, 84 खम्बे, बल्देव आदि दर्शनीय स्थल हैं।

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मथुरा से गोवर्धन की ओर गोवर्धन, जतीपुरा, बरसाना, नन्दगाँव, कामा, कामवन आदि स्थल देखने लायक है। मुख्यत: मथुरा में प्रमुख दर्शनीय स्थल है- कृष्ण जन्मभूमि, अंग्रेजों का मंदिर, द्वारिकाधीश मंदिर और विश्राम घाट।

यमुना में नौका विहार और प्रातःकाल और सांयकाल में विश्राम घाट पर होने वाली यमुनाजी की आरती दर्शनीय है।

कृष्णजन्मभूमि :
मथुरा में सबसे महत्वपूर्ण स्थान है कृष्णजन्मभूमि। उक्त स्थान पर सबसे पहले कृष्ण के प्रपोत्र ने एक मंदिर बनवाया था, जहाँ पहले कारागार हुआ करता था। कालांतर में यह मंदिर बहुत बार नष्ट किया गया। पहले बौद्ध काल में फिर मुगल काल में और फिर अंग्रेजों के काल में। मेहमुद गजनवी ने इसे तोड़ा था। यहाँ पुन: मंदिर बनाया गया जिसे सिकंदर लोदी के शासनकाल में नष्ट कर दिया गया।

फिर जहाँगीर के शासन काल में पुन: इस मंदिर का निर्माण हुआ। 1669 ई. में औरंगजेब ने पुन: यह मंदिर नष्टकर दिया गया और इसकी जगह एक ईदगाह बनवा दी गई जो आज विद्यमान है। इसीके पीछे फिर मंदिर बनाया गया। यहीं एक कुंड है जिसे पोखरा कुंड कहा जाता है। माना जाता है कि वहीं पर भगवान कृष्ण का जन्म हुआ था। हालाँकि कारागार के क्षेत्र में अब मस्जिद, मंदिर और पोखरा (कुंड) तीनों ही स्थित है।

प्राचीन केशव मंदिर के स्थान को केशवकटरा कहते हैं। खुदाई होने से यहाँ बहुत-सी ऐतिहासिक वस्तुएँ प्राप्त हुई थीं। इस मंदिर के अलावा गोविंदजी का मंदिर, किशोरीरमणजी का मंदिर, वसुदेव घाट पर गोवर्द्धननाथजी का मंदिर, उदयपुर वाली रानी का मदनमोहनजी का मंदिर, विहारीजी का मंदिर, रायगढ़वासी रायसेठ का बनवाया हुआ मदनमोहनजी का मंदिर, उन्नाव की रानी श्यामकुंवरी का बनाया राधेश्यामजी का मंदिर, असकुण्डा घाट पर हनुमान्‌जी, नृसिंहजी, वाराहजी, गणेशजी के मंदिर आदि हैं।

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विश्राम घाट :
विश्राम घाट या बहत ही सुंदर स्थान है, मथुरा में यही प्रधान तीर्थ है। यहाँ पर भगवान ने कंस वध के पश्चात विश्राम किया था। नित्य प्रातः-सायं यहाँ यमुनाजी की आरती होती है, जिसकी शोभा दर्शनीय है। इस घाट पर मुरलीमनोहर, कृष्ण-बलदेव, अन्नपूर्णा, धर्मराज, गोवर्धननाथ आदि कई मंदिर हैं। यहाँ चैत्र शुक्ल 6 (यमुना-जाम-दिवस), यमद्वितीया तथा कार्तिक शुक्ल 10 (कंसवध के बाद) को मेला लगता है।

गोवर्धन पर्वत :
गोवर्धन पर्वत को गिरिराज पर्वत भी कहा जाता है। वल्लभ सम्प्रदाय के वैष्णवमार्गियों के लिए इस पर्वत की परिक्रमा का बहुत महत्व है। श्रीगोवर्धन पर्वत मथुरा से 22 किमी की दूरी पर स्थित है। इस पर्वत की परिक्रमा मार्ग पर स्थित आन्यौर में श्रीनाथजी का प्राकट्य हुआ था। इस पर्वत की परिक्रमा के लिए समूचे विश्व से कृष्णभक्त, वैष्णवजन और वल्लभ संप्रदाय के लोग आते हैं। यह पूरी परिक्रमा 7 कोस अर्थात लगभग 21 किलोमीटर है।

मार्ग में पड़ने वाले प्रमुख स्थल आन्यौर, जातिपुरा, मुखार्विंद मंदिर, राधाकुंड, कुसुम सरोवर, मानसी गंगा, गोविन्द कुंड, पूंछरी का लौठा, दानघाटी इत्यादि हैं। गोवर्धन पर्वत पर सुरभी गाय, ऐरावत हाथी तथा एक शिला पर भगवान कृष्ण के चरण चिह्न हैं।

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जतीपुरा- गोवर्धन पर्वत परिक्रमा की शुरुआत वैष्णवजन जातिपुरा से और सामान्यजन मानसी गंगा से करते हैं और पुन: वहीं पहुँच जाते हैं।

पागल बाबा का मंदिर :
पागल बाबा का मंदिर पागल बाबा ने बनवाया था। सफेद संगमरमर के ढाँचे पर बना यह विशाल मंदिर काफी आकर्षक है। मंदिर का मुख्य आकर्षण है यहाँ पर होने वाला कठपुतली नृत्य। इसकी एक और खासियत है कि मंदिर के सबसे ऊपर वाले माले से शहर का खुबसूरत नजारा दिखाई पड़ता है। इस मंदिर को उनके आनुयाइयों द्वारा होली व जन्माष्टमी पर विशेष रूप से सजाया जता है।

गोकुल :
यमुना नदी के एक किनारे मथुरा है तो दुसरे किनारे गोकुल (नंदगाँव) जहाँ श्रीकृष्ण भगवान का लालन-पालन हुआ था। यही कृष्ण ने अपनी बाल लीलाएँ भी की थी। गोकुल में नंद बाबा का वह घर आज भी सहेज कर रखा गाया है जहाँ कृष्ण का बाल्य कल बीता, इसके आलवा पूतना वध, माखन चोरी का स्थान गोकुल में देखने लायक है। मथुरा से गोकुल सड़क मार्ग से पहुँचने में मात्र 15 से 20 मिनट लगते हैं।

वृंदावन :
मथुरा से 15 किमी दुरी पर है वृन्दावन। वृंदा का अर्थ होता है तुलसी जो कृष्ण को प्रिय है और वृंदावन अर्थात तुलसी का जंगल। यह कृष्ण की रासलीला का स्थल है, वृंदावन के कण-काण में कृष्ण और राधा का प्रेम बसा है। यही वह पावन माटी है जहाँ कृष्ण ने महारास खेला था जिसे देखने स्वर्ग से देवता धरती पर आते थे। कहा जाता है कि यहाँ आज भी कृष्ण रास लीला खेलने आते हैं।

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बरसाना :
मथुरा से 42 किमी की दुरी पर है बरसाना जो कि श्रीराधाजी का गाँव है। यहाँ भी राधा कृष्ण कि सैंकड़ों नीशानीयाँ मौजूद है जैसे राधाजी का जन्म स्थल, कृष्ण राधा का मिलने का स्थान आदि। मथुरा में इसके अलावा भी देखने लायक बहुत सारे स्थान है।

मथुरा की यात्रा करने हेतु-
*हवाई मार्ग : मथुरा के सबसे नजदीन आगरा का हवाई अड्डा है जो वहाँ से 55 किलोमीटर दूर है।
*रेल मार्ग : मथुरा रेलवे स्टेशन काफी व्यस्त जंक्शन है और दिल्ली से दक्षिण भारत या मुम्बई जाने वाली सभी ट्रेनेमथुरा होकर गुजरती हैं।
*सड़क मार्ग : मथुरा में भारत के किसी भी स्थान से सड़क द्वारा पहुँचा जा सकता है। आगरा से मात्र 55 किलोमीटर दूर स्थित है मथुरा।
*ठहरने की व्यवस्था : रेलवे स्टेशन के आसपास कई होटल हैं और विश्राम घाट के आसपास कई कमखर्च वाली धर्मशालाएँ उपलब्ध हैं।
*यात्रा योजना : मथुरा और उसके आसपास के स्थल के दर्शन हेतु टेक्सी कर सकते हैं। ऑटो और तांगे भी उपलब्ध है।अधिकतर मंदिरों में दर्शन सुबह 12 बजे तक और शाम 4 से 7 बजे तक खुले रहते हैं। दर्शनार्थियों को इसी अनुसार अपना कार्यक्रम बनाना चाहिए। गोकुल की ओर जाने के लिए आधा दिन लगेगा, उसके बाद गोवर्धन के लिए निकल सकते हैं। गोवर्धन के लिए बस उपलब्ध है।