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Written By WD

नर्मदा के उत्तरी तट पर बसा 'धाराजी'

पौराणिक और दर्शनीय स्थल धावड़ीकुंड

Narmada | नर्मदा के उत्तरी तट पर बसा ''धाराजी''
* संस्कृति और अध्यात्म का अभूतपूर्व संग

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देश में काशी ज्ञानभूमि, वृंदावन प्रेमभूमि और नर्मदा तट को तपोभूमि माना जाता है। संत डोंगरेजी महाराज गंगा में स्थान करने, जमुना में आचमन करने और नर्मदा के दर्शन करने का समान फल मानते थे।

मालवावासी जिसे धाराजी के नाम से जानते हैं, वह धावड़ी कुंड देवास जिले का महत्वपूर्ण धार्मिक स्थल है। यहां संपूर्ण नर्मदा 50 फुट से गिरती है, जिसके फलस्वरूप पत्थरों में 10-15 फुट व्यास के गोल (ओखल के आकार के) गड्ढे हो गए हैं। बहकर आए पत्थर इन गड्ढों में गिरकर पानी के सहारे गोल-गोल घूमते हैं, जिससे घिस-घिसकर ये पत्थर शिवलिंग का रूप ले लेते हैं।


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ऐसा लगता है जैसे नर्मदा स्वयं अपने आराध्य देव को आकार देकर सतत्‌ उनका अभिषेक करती हो। इन्हें 'बाण' या नर्मदेश्वर महादेव का नाम दिया जाता है। धार्मिक मान्यता है कि धाराजी के स्वयंभू बाणों की प्राण-प्रतिष्ठा करना आवश्यक नहीं, ये स्वयंभू होकर प्राण-प्रतिष्ठित होते हैं।

इसी धाराजी पर चैत्र की अमावस पर मालवा, राजस्थान तथा निमाड़वासियों का प्रतिवर्ष एक बड़ा मेला लगता है, जिसमें लगभग लाखों श्रद्धालु हिस्सा लेते हैं।

नर्मदाजी का यह सबसे बड़ा जलप्रपात वन प्रदेश में स्थित है। जलप्रपात से उत्तर में लगभग 10 कि.मी. पर सीता वाटिका, जिसे सीता वन भी कहते हैं, में सीता मंदिर भी स्थित है।


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कहा जाता है कि यहा महर्षि वाल्मीकि का आश्रम था और सीताजी ने यहां निवास किया था। यहां पर 64 योगिनियों और 52 भैरवों की विशाल मूर्तियां भी हैं। समीप ही सीताकुंड, रामकुंड और लक्ष्मणकुंड हैं।

सीताकुंड में हमेशा पेयजल उपलब्ध रहता है। सीता वाटिका से 16 कि.मी. पूर्व में कनेरी माता(जनश्रुति में जयंती माता) का मंदिर है, जिसकी तलहटी में कनेरी नदी बहती है, जिसमें विभिन्न रंगों की कनेर की झाड़ियां हैं।

यह स्थान पूर्णतः घने जंगल में से होकर यहां हिंसक पशुओं का वास भी है। सीतावाटिका से 6 कि.मी. की दूरी पर सीता खोह भी है, जिसके आसपास दुर्घटना से बचाव के लिए कंटीले तार लगा दिए गए हैं, जो इतनी गहरी है कि नीचे झांकने पर तलहटी नदी दिखाई देती है और पत्थर डालने पर आवाज नहीं आती है।
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सीता वाटिका से लगभग 10 कि.मी. उत्तर में वनप्रदेश के रास्ते पोटलागांव (देवास जिला) से 1 कि.मी. की दूरी पर कावड़िया पहाड़ है।

जनश्रुति है कि महाभारतकाल में इस वन प्रदेश में पांडवों ने अज्ञातवास हेतु भ्रमण किया था और भीम ने 3 फुट व्यास के 10 से 30 फुट लंबी कॉलम-बीम आकार के लौह-मिश्रित पत्थर इकट्ठे किए थे, जो सात स्थानों पर सात पहाड़ियों के रूप में हैं।

इन पहाड़ियों की ऊंचाई 40-45 फुट की है।
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प्रसिद्ध पुरातत्वविद प्रो. वाकणकर ने भी पहाड़ियों के इन पत्थरों का अनुसंधान किया था।

भीम का उद्देश्य इन पत्थरों से सात महल बनाने का रहा होगा, ऐसा माना जाता है।

नर्मदा परिक्रमा करने वाले धावड़ीकुंड से चल कर इन पौराणिक और दर्शनीय स्थानों का भ्रमण करते हुए तरानीया, रामपुरा, बखतगढ़ होते हुए चौबीस अवतार जाते हैं।

पुरातत्व, पर्यावरण, वनभ्रमण की दृष्टि से कावड़िया पहाड़, कनेरी माता, सीताखोह और धावड़ीकुंड (धाराजी) आकर्षण का केंद्र हैं, वही विहंगम दृश्यावलियों से पूर्ण पर्यटन स्थल है।