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Written By WD

शिव दर्शन को तैयार भक्तों की टोलियां

प्रकृति से साक्षात्कार कराती अमरनाथ यात्रा

Amranath | शिव दर्शन को तैयार भक्तों की टोलियां
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अमरनाथ गुफा में हिम से ढंके हुए पर्वतों के मध्य विराजमान बर्फानी बाबा सदा शिव के दर्शनों के लिए भक्तों की टोलियां तैयार हो चुकी हैं। प्रति वर्ष होने वाली इस यात्रा में भक्तजन जहां शिव के दर्शनों से परमआनंद प्राप्त करते हैं वहीं भारतीय प्राचीन तत्व चिंतन एवं प्रकृति के निकट पहुंचकर उससे साक्षात्कार करने की ललक इन यात्रा प्रसंगों में आज भी दिखाई देती है।

एक अमर कथा के अनुसार- 'पार्वती जी ने भगवान शंकर से सृष्टि रचना व पूर्वजन्म के संबंध में जानने की इच्छा व्यक्त की। भगवान शिवजी ने पार्वती की इच्छापूर्ति के लिए एक ऐसा स्थान चुना जहां कथा को कोई दूसरा न सुन सके। भगवान शिवजी को यह स्थान अत्यंत मनोरम लगा।'

कथा सुनाने के पूर्व भगवान शिव ने अपने त्रिशूल से गर्जना की कि यदि कोई समीप हो तो वहां से भाग जाए। त्रिशूल की गर्जना सुनते ही सभी पशु, पक्षी वहां से भाग गए। एक कबूतर के दो अंडे वहां रह गए। भगवान शिवजी ने एक बार पुनः त्रिशूल से गर्जना की तो उन अंडों से कबूतर का बच्चा उत्पन्न हो गया।

भगवान शिवजी ने आंखे बंदकर पार्वती को कथा सुनानी प्रारंभ की। कथा सुनते-सुनते पार्वती योग निद्रा में पहुंच गई। लेकिन कबूतर के बच्चों ने पूरी कथा सुन ली। अमरत्व की कथा सुनकर कबूतर का जोड़ा अमर हो गया। यह जोड़ा आज भी यात्रियों को दर्शन देता है। आज भी यहीं से यात्रा प्रारंभ होती है। संभवतः भगवान शिवजी पार्वती की पहल के कारण इस स्थान का नाम पहलगांव पड़ा।

दूसरा मत है कि भगवान शंकर ने क्षेत्र की रक्षा के लिए यहां अपने वाहन वृषभ (नंदी) को नियुक्त कर दिया। इसीलिए इसे वृषभगांव जो कालांतर में अपभ्रंश होकर पहलगांव बन गया।

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पहलगांव से आठ किलोमीटर की दूरी पर चंदरवाड़ी स्थित है। यह घाटी में बसा हुआ एक मनोरम स्थल है। यहां विश्राम के लिए शिविर लगाए जाते हैं। यात्रा के समय अनेक सेवा समितियों द्वारा निःशुल्क भंडारे की यहां व्यवस्था भी की जाती है। कहा जाता है कि भगवान शिव ने अमर कथा सुनाने से पूर्व अपनी मस्तक के चंद्र को यहां उतार दिया था। तभी से यह चंदरवाड़ी कहलाया।

इस स्थान चंदनवाड़ी से श्रद्धालुओं को पिस्सु घाटी की दुर्गम चढ़ाई चढ़नी पड़ती है। यह संकीर्ण घाटी है और यात्री पिस्सुओं की भांति बिखर जाते हैं। एक दंतकथा के अनुसार यहां भगवान शिव ने शेषनाग को अपने गले से उतार दिया था तथा अपने समस्त गणों को भी इससे आगे न बढ़ने की अज्ञा दी थी।

इस घाटी में पहुंचकर यात्री नैसर्गिक विचारों में खो जाता है और शिव से मिलने की उनकी उत्कंठा और बढ़ जाती है। शेषनाग में रात्रि विश्राम के उपरांत अगले दिन पंचतरणी के लिए श्रद्धालु रवाना होते हैं। महागुनास दर्रे पर पहुंचकर श्रद्धालु विश्राम करते हैं। पंचतरणी से अमरनाथ की पवित्र गुफा छ: किमी है। वहां पहुंचकर श्रद्धालु हिम-शिवलिंग एवं कबूतर के जोड़े के दर्शन करके अपने आपको अत्यंत सौभाग्यशाली अनुभव करते हैं। श्रद्धालुओं को यहां आकर अमरत्व की प्राप्ति होती है।