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Written By WD

भावनाएँ फड़कें तो रिश्ते धड़कें

भावनाएँ फड़कें तो रिश्ते धड़कें -
- संगीता लोकेंद्र नामजोशी

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रिश्ते चाहे सामाजिक हों या पारिवारिक, हमेशा ही हमें सामाजिक, पारिवारिक एवं भावनात्मक सुरक्षा प्रदान करते हैं। पर कभी-कभी कुछ गलतफहमियाँ अहम या कम्युनिकेशन गैप के कारण रिश्तों में कड़वाहट घुल जाती हैं। प्रत्येक रिश्ता आपसी समझ, सद्विश्वास और प्रेम की नींव पर टिका होता है।

इनकी कमी या अभाव होने से संबंधों के धराशायी होने में पल भर का समय भी नहीं लगता। कहने का तात्पर्य यह है कि हमें रिश्तों को इतना सहेजना है कि उनमें गाँठ रूपी कोई दरार न पड़े।

आपसी समझ, प्रेम और विश्वास के बूते पर कई वर्षों तक ही नहीं, कई पीढ़ियों तक भी संबंध टिकाए जा सकते हैं, परंतु इसके लिए दोनों पक्षों में इस प्रगाढ़ता के लिए आतुरता होना आवश्यक है। रिश्तों को सहेजने एवं लंबे समय तक बनाए रखने हेतु निम्न बातों पर गौर कर सकते हैं -

अहम का त्याग :
किसी भी पक्ष द्वारा अहम रखने या सदैव 'मैं' का महत्व सिद्ध करने पर रिश्तों में खटास पड़ सकती है। स्वस्थ रिश्ते बनाने हेतु अहम का त्याग और 'मैं' को साइड में रखकर 'हम' की भावना को महत्व देना होगा।

अपेक्षाओं का भंडार :
नाते-रिश्ते में कुछ जायज अपेक्षाएँ रखना स्वाभाविक हैं, परंतु जब एक के बाद एक अपेक्षाएँ भंडार का रूप ले लें तब उन्हें पूर्ण करना संभव नहीं हो पाता। खासकर तब, जब अपेक्षाएँ रखने वाला पक्ष स्वयं उन अपेक्षाओं की पूर्ति न करता हो। याद रखें चाह न रखने पर कार्य पूर्ण होने की संतुष्टि अधिकतम होती है। मात्र अपेक्षाओं पर टिके संबंध खोखले होते हैं।

औपचारिकता नहीं, आत्मीयता :
रिश्तों में औपचारिकता के मुकाबले आत्मीयता का महत्व होना चाहिए। हमेशा मेल-मिलाप की औपचारिकता आज के इस महानगरीय और आपाधापी वाले जीवन में संभव नहीं है, परंतु आवश्यक कार्यों पर मेल-मिलाप का अभाव या कम्युनिकेशन गैप का होना रिश्तों में दूरियाँ पैदा कर सकता है।

छोटी-छोटी बातों को अनदेखा करना :
कभी-कभी छोटी गलतफहमियाँ संबंधों में मनमुटाव भर देती हैं। बेहतर होगा कि ऐसी गलतफहमियों को आपस में बैठकर दूर कर लिया जाए और उन्हें भुला दिया जाए।

अनावश्यक हस्तक्षेप :
रिश्तों में निहित किसी भी पक्ष द्वारा अन्य के जीवन में संबंधों के जोर पर अनावश्यक हस्तक्षेप करने से बचना चाहिए और बिन माँगी सलाह भी नहीं देना चाहिए। केवल अपना महत्व सिद्ध करने हेतु की गई दखलंदाजी से संबंध बनने की बजाय बिगड़ सकते हैं।

माफी माँगना और माफ करना :
गलती होने पर माफी माँगना एवं अन्य पक्ष द्वारा माफ करना दोनों ही बातें आवश्यक हैं। गलती का अहसास होने पर माफी माँगना कमतरता नहीं है और अपनी अकड़ भुलाकर माफ करने से ओहदा और ऊँचा ही होता है।

स्पष्टता रखें :
संबंधों को सुदृढ़ करने हेतु उनमें स्पष्टता होना अतिआवश्यक है। किसी की बात इधर या उधर कहने से अच्छा है उस व्यक्ति के सामने स्पष्ट रूप से अपनी बात रखी जाए।

रिश्तों में थोड़ी स्पेस दें :
प्रत्येक रिश्ते में थोड़ी स्पेस की आवश्यकता होती है। अनावश्यक दबाव से रिश्ते उबाऊ होने लगते हैं।

वाणी संयम :
हमारी वाणी संबंधों को निभाने हेतु सबसे महत्वपूर्ण होती है। हमेशा तानों, उलाहनों, सीखों और नसीहतों भरी वाणी से रिश्तों में अलगाव हो सकता है। यदि किसी को कटु सत्य कहना आवश्यक भी हो तो भी शब्दों का चयन उचित रूप से करें। शब्दों के चयन से ही आपकी छवि के स्तर का अनुमान लगाया जा सकता है।