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Written By भाषा
Last Modified: नई दिल्ली (भाषा) , शुक्रवार, 7 मार्च 2008 (17:08 IST)

कार्टून को किसी भाषा की जरूरत नहीं

कार्टून को किसी भाषा की जरूरत नहीं -
अभिव्यक्ति के लिए कला और खासकर कार्टूनों को किसी भाषा की जरूरत नहीं होती। राजधानी में चल रही एशियाई देशों की कार्टून प्रदर्शनी ने यह बात साबित कर दी है।

टी शर्ट और जींस पहने एक आधुनिक लड़की हाथ जोड़कर पुरातन गुरू के समक्ष जीवन का रहस्य जानने की प्रार्थना करते खड़ी है और यह संदेश लिखा है कि डब्ल्यूडब्ल्यूडब्ल्यू डॉट सिक्रेट ऑफ लाइफ डाट कॉम पर जाएँ।

एक बच्चा वीडियो गेम खेलने में तल्लीन है और उसके पिता उससे टीवी पर खबरें दिखाने की याचना कर रहे हैं। छोटे परिधानों में गुजर रही एक लड़की के बारे में यह लिखा है कि ईंधन की किल्लत के बारे में भूल जाएँ। क्या आपने कपड़ों की कमी पर गौर किया है।

ये कुछ कार्टून हैं जो जापानी फाउंडेशन द्वारा राजधानी की ओकाकुरा टेनशिन वीथिका में लगी दसवीं एशियाई कार्टून प्रदर्शनी में प्रदर्शित हैं। 27 फरवरी से जारी यह प्रदर्शनी 12 मार्च तक चलेगी। इसमें भारत, बांग्लादेश, जापान, चीन, विएतनाम, फिलिस्तीन, इंडोनेशिया, श्रीलंका, थाईलैंड और मलेशिया के कार्टूनिस्ट भाग ले रहे हैं।

जापानी फाउंडेशन के निदेशक नेयो एंदो ने कहा कि यह देशों की संस्कृति को अनुभव करने और जोड़ने का एक तरीका है। जापानी पारंपरिक रंगमंच को यहाँ के आम आदमी द्वारा समझा जाना आसान नहीं है लेकिन कार्टून आसानी से समझ में आ जाते हैं।

वर्ष 1995 से आयोजित हो रही इस प्रदर्शनी में हम हर वर्ष सुधार ला रहे हैं। संयुक्त राष्ट्र की वेबसाइट के मुताबिक विश्व के 85 फीसदी युवा विकासशील देशों में रहते हैं और 60 फीसदी एशिया में रहते हैं। इसे देखते हुए प्रदर्शनी का विषय उपयुक्त है।

युवा पीढ़ी की अपनी एक अलग संस्कृति है और यही उन्हें दूसरों से अलग करती है। उनका व्यवहार, परिधान पहनने का अंदाज, खुद के बारे में ही सोचते रहने की आदत, तकनीक के प्रति दीवानगी और व्यावसायीकरण को नहीं समझने की उनकी समस्या को टेड़ी मेढ़ी रेखाओं के जरिये कागज पर उतारा गया है।

भारतीय कार्टूनिस्ट जयंत बनर्जी ने कहा कि चूँकि विषय युवा और तकनीक से जुड़ा है इसलिए हमने आज के युवाओं का चित्रण करने का प्रयास किया है।

बनर्जी बीते दो दशकों से कार्टूनिस्ट हैं और हिन्दुस्तान टाइम्स में बतौर इलस्ट्रेटर कार्यरत हैं। उन्होंने कहा यह काफी संतोषजनक लगता है जब आप समाज के लिए कुछ करते हैं। कार्टून के जरिये हम बहुत जल्द लोगों के बीच अपना संदेश पहुँचा पाते हैं।

बनर्जी के कार्टून में भारतीय दर्शन की छाप दिखाई देती है। कुछ कार्टून हँसा देने वाले हैं वहीं कुछ कार्टून संदेश भी देते हैं। कार्टून यह दर्शाते हैं कि एशियाई देशों में युवा परिवर्तन के कठिन दौर से गुजर रहे हैं।

लिंडन ग्रेगोरियो के कार्टून पहली आमदनी माता-पिता को देने की युवाओं में खत्म होती जा रही फिलिस्तीनी परंपरा को दर्शाते हैं। थाईलैंड के एक कार्ट्रन में टापुओं पर कम्प्यूटर और लैपटॉप लेकर बैठे युवा दिखाई देते हैं जो भारत सहित किसी भी देश की युवा संस्कृति को दर्शाते हैं।

जापानी कार्टूनों में युवाओं की कम्प्यूटर गेम्स के बारे में सोचते रहने की आदत दिखाई देती है जबकि चीनी युवा फैशन में तल्लीन जान पड़ते हैं।