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Written By WD

काम आई पीके मिश्र की कुर्बानी

करोड़ों की जमीन निजी हाथों में जाने से बची

काम आई पीके मिश्र की कुर्बानी -
-लखनऊ से अरविन्द शुक्ल
उत्तरप्रदेश के मुख्य सचिव पद पर बने रहने के बावजूद आईएएस अधिकारी प्रशांतकुमार मिश्र की राजसत्ता से असहमति के चलते उन्हें सेवानिवृत्ति से तीन महीने पहले भले ही स्वैच्छिक त्याग-पत्र देना पड़ा हो, किन्तु अब लोग महसूस कर रहे हैं कि उनकी कुर्बानी व्यर्थ नहीं गई और इसके परिणाम सामने आने लगे हैं। आलोचना का शिकार होने से पहले ही सरकार ने अपना पहले का निर्णय ही बदल दिया और करोड़ों रुपए की सरकारी जमीन निजी हाथों में जाने से बच गई।

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मुख्यमंत्री मायावती की अध्यक्षता में 7 जून को मंत्रिपरिषद की बैठक में लखनऊ में विकलांगजन विश्वविद्यालय की स्थापना राज्य सरकार ने स्वयं कराए जाने का निर्णय लिया है। इस विश्वविद्यालय का नाम डॉ. शकुन्तला मिश्र उत्तरप्रदेश विकलांगजन विश्वविद्यालय रखा जाएगा। यह भी निर्णय राज्य सरकार द्वारा लिया गया है।

मंत्रिपरिषद ने 23 मई के अपने उस निर्णय को भी वापस ले लिया है, जिसके द्वारा डॉ. शकुन्तला मिश्रा स्मृति सेवा ट्रस्ट, 17/9, विंडसर प्लेस, लखनऊ द्वारा पब्लिक-प्राइवेट पार्टनरशिप के अन्तर्गत लखनऊ में विकलांगजन के लिए एक विश्वविद्यालय की स्थापना हेतु विकलांग कल्याण विभाग के पास उपलब्ध 71.471 एकड़ भूमि निःशुल्क एवं एक रुपए सांकेतिक वार्षिक लीजरेंट पर पट्टे पर दिए जाने का निर्णय लिया गया था।

उल्लेखनीय है कि उत्तरप्रदेश के मुख्य सचिव पीके मिश्र ने पिछले दिनों अचानक मुख्य सचिव का पद त्यागकर स्वैच्छिक रूप से सेवानिवृत्ति ले ली थी। उस समय मिश्र के इस्तीफे को साधारण घटना के रूप में पेश किया गया।

दरअसल मुख्य सचिव के रूप में मिश्र ने सरकार से असहमति जताते हुए फाइलों में मनमाफिक टिप्पणी लिखने से मना कर दिया था। लोकसेवक की भावना से असहमत होकर मिश्र ने कोई टकराव लेने से अच्छा स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति का मार्ग अपनाया।

सत्ता शीर्ष ने उनसे स्पष्ट कर दिया था या तो व्यवस्था का पुर्जा बन जाओ, अन्यथा व्यवस्था से बाहर हो जाओ। उनसे तत्काल स्थानांतरण के लिए तत्पर हो जाने को भी कहा था। मुख्य सचिव के रूप में जिस अधिकारी का तीन माह का कार्यकाल बाकी हो, अचानक उसे स्थानांतरण की धमकी मिले, इससे व्यथित हो प्रशांत मिश्र ने स्वयं स्वैच्छिक रूप से सेवानिवृत्ति लेकर उस राजनीति की बिसात को ही पलट दिया, जो उसे दर-दर पर अपमानित करने को उतारू हो गई थी।

जब वेबदुनिया ने मिश्र से स्वैच्छिक त्याग-पत्र की वजह पूछी तो उन्होंने सिर्फ इतना कहा कि राजनीतिक इच्छाशक्ति और उनके बीच असहमति हो गई थी। असहमति किस बिन्दु पर हुई, पूछने पर वे बस मुस्कराकर रह गए और उन्होंने बातचीत का विषय बदलना चाहा।

प्रशांत मिश्र ने कहा कि वे तो उत्तरप्रदेश में आने को इच्छुक ही नहीं थे, किन्तु मायावती के लाख कहने से वे राजी हुए। उन्होंने यहाँ आने से पहले एक शर्त रखी थी कि मुख्यमंत्री उनसे कुछ भी गलत करने को नहीं कहेंगी। ऐसा मुख्यमंत्री ने क्या काम कहा जिससे असहमति बनी, इस प्रश्न पर भी मिश्र ने गोलमोल-सा जवाब दिया।

किन्तु राजनीतिक गलियारों में चर्चा ने बखेड़ा खड़ा कर दिया था कि सत्तारूढ़ दल के राष्ट्रीय महासचिव सतीशचन्द्र मिश्र के लिए लखनऊ के मोहान रोड पर उनकी माँ डॉ. शकुन्तला मिश्र स्मृति सेवा ट्रस्ट के नाम विकलांग विद्यालय को मात्र एक रुपए की लीज पर लगभग 70-72 एकड़ भूमि आवंटन को लेकर पीके मिश्र ने फाइल में सत्तारूढ़ दल के विचारों पर अपनी असहमति व्यक्त की है। बस यही असहमति राजनेता और नौकरशाही के लिए प्रतिष्ठा का प्रश्न बन गई।

चर्चा है कि प्रदेश में वर्तमान में सरकार के कथित लोकप्रिय निर्णयों की घोषणाओं के पीछे मुख्य सचिव मिश्र सहमत न थे। उन्होंने बताया कि असहमति भी आवश्यक है। उन्हें विश्वास है कि आने वाले समय में देश के युवा जी-हुजूरी पर अधिक विश्वास नही करेंगे।

उल्लेखनीय है कि मिश्र ने मुख्य सचिव के पद पर रहते संगठित अपराध नियंत्रण अध्यादेश पर भी हस्ताक्षर करने से मना कर दिया था, जिसके तहत पुलिस को फोन टेप करने का अधिकार मिलता। इसी प्रकार उन्होंने प्रदेश के वन चेकपोस्टों, परिवहन चुंगियों, व्यापार कर चौकियाँ समाप्त किए जाने के निर्णयों से जिससे प्रदेश सरकार को हजारों करोड़ रुपए का नुकसान उठाना पड़ता, उसका मुखर विरोध कर सरकार को मनमानी करने से रोकने को बाध्य किया था।

ज्ञातव्य है कि डॉ. शकुन्तला मिश्रा स्मृति सेवा ट्रस्ट की ज्वाइंट मैनेजिंग ट्रस्टी कल्पना मिश्रा ने मुख्यमंत्री को लिखे अपने प्रार्थना पत्र 6 जून में लिखा है कि डॉ. शकुन्तला मिश्रा स्मृति सेवा संस्थान पिछले 20 वर्षों से दृष्टिबाधित एवं विकलांगों के हित में कार्य कर रहा है तथा विकलांगों से जुड़े तमाम कार्य अपने स्रोतों से करता आ रहा है। पिछले 50 वर्षों में देश एवं प्रदेश की तमाम सरकारें विकलांगों के लिए जो नहीं कर पाईं, उसे मौजूदा सरकार की मुखिया मायावती ने कर दिखाया है।

उन्होंने यह भी लिखा है कि मुख्यमंत्री की यह दूरदृष्टि है कि उन्होंने पहली बार विकलांगों के लिए अलग से विश्वविद्यालय की स्थापना किए जाने की घोषणा की, जिसके बारे में देश या अन्य किसी भी प्रदेश की किसी सरकार ने सोचा न था।