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पोंगल-लोहड़ी का पर्व एक साथ

धर्म-संस्कृति में पर्वों का महत्व

Lohri Festival of Pongal | पोंगल-लोहड़ी का पर्व एक साथ
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मकर संक्रांति धर्म व संस्कृति का अनूठा पर्व है। इस दिन सूर्य आराधना तीर्थ स्नान व दान पुण्य का महत्व है, वहीं फसल पकने की खुशियां भी मनाई जाती हैं।

पं. आनंदशंकर व्यास के अनुसार मकर संक्रांति से सूर्य का मकर राशि में प्रवेश होता है। मकर और कुंभ शनि की राशियां हैं। चूंकि शनि व सूर्य में बैर भाव है, आमजन मानस पर इसका विपरीत प्रभाव न पड़े इसके लिए ऋषि-मुनियों ने इस दिन तीर्थ स्नान, दान तथा धार्मिक कर्मकांड के उपाय सुझाए हैं।

गुड़ और तिल्ली के दान व सेवन की धर्म परंपरा है। यह पर्व फसल पकने की खुशियों से भी संबंध रखता है। तमिलनाडु में पेरूम पोंगल तथा पंजाब में लोहड़ी के नाम से इस पर्व को उल्लास से मनाया जाता है।

सर्दी में तिल और गुड़ का सेवन बलवर्धक व शरीर को पुष्ट करने वाला है। वैद्य पवन गोपीनाथ व्यास के अनुसार महर्षि चरक ने तिल को स्निग्ध, उष्ण, मधुर रस, तीक्ष्ण, कषाय, तिक्त, त्वचा व बालों के लिए हितकारी, शक्तिदायक, वातनाशक तथा कफपितवर्द्घक बताया है। तिल से बने लड्डू के सेवन से कमजोरी दूर होती है।

गुड़ वात दोषों का शमन करता है। गुड़ के सेवन से शरीर में बल की वृद्घि होती है तथा शरीर पुष्ट होता है। गुड़ त्रिदोष नाशक है। आयुर्वेद में कहा गया है। दोषत्रय क्षयकराय नमो गुड़ाय अर्थात-त्रिदोषनाशक गुड तुमको नमस्कार है।

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तमिलनाडु का प्रमुख पर्व पेरूम पोंगल : पोंगल तमिलनाडु का प्रमुख पर्व है। मकर संक्रांति पर नई फसल के आगमन की खुशी में मनाए जाने वाले इस पर्व का अर्थ है खिचड़ी। इस दिन नए मटके में नए चावल, नया गुड़ तथा ताजे दूध से मीठी खिचड़ी बनाई जाती है। यह पर्व 13 जनवरी से प्रारंभ हो जाता है। तमिल परिवार इस त्योहार को हर्षोल्लास से मनाते हैं।

गुन सेखरन के अनुसार 13 जनवरी को प्रातः 5 बजे घर की पुरानी चीजों को घर के बाहर जलाया जाता है। पश्चात इंद्र देवता का पूजन किया जाता है। इसे मोगी पंडी कहते हैं। 14 जनवरी को पेरूम पोंगल मनाया जाता है। नए धान की मीठी खिचड़ी इस दिन का मुख्य व्यंजन है। 15 जनवरी को भट्ट पोंगल मनाया जाता है। इस दिन गौ पूजन होता है। 16 जनवरी को तमिल परिवार एक दूसरे के घर त्योहार की बधाई देने जाते हैं। दूध उबाला क्या ऐसा पूछ कर शुभकामनाएं देते हैं।

सिख समाज का सामाजिक त्योहार लोहड़ी : सिख समाज का यह सामाजिक त्योहार है। सुरेंद्रसिंह अरोरा के अनुसार इस समय नई फसल लहलहा रही होती है। गांवों में उल्लास का वातावरण रहता है। ऐसे में पारिवारिक आयोजन होते हैं। 13 जनवरी की शाम को घर के आंगन में अग्नि जलाई जाती है। उसमें तिल व जुवार के दाने डाले जाते हैं। घर में पुत्र के जन्म तथा नई बहू के आगमन पर विशेष उत्सव होता है। 13 जनवरी को लोहड़ी उत्सव मनाने की परंपरा है।

अय्यपा को नया धान अधिक पसंद : मलयाली समाज द्वारा मकर संक्रांति का पर्व बड़ी धूम-धाम से मनाया जाता है। आरएस नायर ने बताया भगवान अय्यपा को नया धान अधिक पसंद है। 15 जनवरी को अय्यपा मंदिर में चावल के विशेष पकवानों का भोग लगाया जाएगा। फूलों की रंगोली सजेगी तथा शाम को भजन होंगे।