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Written By ND

कथा सफला एकादशी की

राजा महिष्मति और ल्युंक

कथा सफला एकादशी की -
WD
सफला एकादशी की एकथा के अनुसार राजा महिष्मति का छोटा बेटा ल्युंक बहुत ही दुष्ट प्रवृत्ति का था। राजा ने उसे बहुत समझाया, लेकिन वह नहीं माना। एक दिन तंग आकर राजा ने बेटे को राज्य से बाहर निकाल दिया। दर-दर की ठोकरें खाने के बाद भी उसने दुर्गुणों को नहीं छोड़ा।

एक बार तीन दिन की भूख से व्याकुल होकर वह एक साधु की कुटिया में चोरी के इरादे से घुस गया लेकिन उस दिन एकादशी होने के कारण उसे कुछ भी खाने को नहीं मिला।

उसकी आहट से साधु की नींद जरूर खुल गई। ल्युंक की हालत पर तरस खाकर साधु ने उसे अच्छे वस्त्र दिए और मीठी बातें की। इससे उसे आत्मग्लानि हुई और उसका मन परिवर्तित हो गया।
  सफला एकादशी की कथा के अनुसार राजा महिष्मति का छोटा बेटा ल्युंक बहुत ही दुष्ट प्रवृत्ति का था। राजा ने उसे बहुत समझाया, लेकिन वह नहीं माना। एक दिन तंग आकर राजा ने बेटे को राज्य से बाहर निकाल दिया।      


वह वहीं रहकर साधु की खूब सेवा करने लगा। धीरे-धीरे उसके सारे दुर्गुण दूर हो गए। जब वह पूरी तरह सज्जन बन गया तो एक दिन साधु ने अपना असली रूप प्रकट कर दिया।

दरअसल वे राजा महिष्मति ही थे जिन्होंने अपने पुत्र को सही रास्ते पर लाने के लिए ऐसा किया था। समय आने पर ल्युंक ने राजा बनकर राजकाज के कई आदर्श प्रस्तुत किए।