गुरुवार, 18 अप्रैल 2024
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Written By सीमान्त सुवीर

सानिया पर नाकामियों का साया

टेनिस सनसनी के लिए विज्ञापन ही अंतिम विकल्प!

सानिया पर नाकामियों का साया -
कुछ समय पहले मोबाइल पर आए इस एसएमएस को पढ़ लीजिए- 'खुदा ने जब तुझे बनाया होगा, सोचा होगा जन्नत में रख लूँ, फिर उसे मेरा खयाल आया होगा।' देश-विदेश में जाने कितने लोग भारत की इस टेनिस तारिका सानिया मिर्जा के लिए इस एसएमएस की तरह ख्वाब देखते होंगे। देखें भी क्यों नहीं? सानिया बला की खूबसूरत हैं। जीतती हैं तो मीडिया में सुर्खियाँ बनती हैं और हारने के बाद भी लटके हुए चेहरे के साथ खबरों में बनी रहतीं हैं।

  सानिया मिर्जा तमाम नाकामियों के बाद भी हर भारतीय की पहली पसंद हैं। इसमें कोई दो राय नहीं कि अत्यधिक अपेक्षाओं का शिकार होकर वे बिखर चुकी हैं। अब उनके पहले या दूसरे दौर में हारने पर जरा भी आश्चर्य नहीं होता       
सानिया मिर्जा की बीजिंग ओलिम्पिक में एकल और युगल दोनों में चुनौती खत्म हो गई है, लेकिन हार के बावजूद उन्हें कवरेज मिलना इस बात का सबूत है कि इस टेनिस सनसनी पर लिखने और पढ़ने वालों की कमी नहीं है।

बीजिंग ओलि‍म्पिक की हार और विश्व टेनिस रैंकिंग में 50 के पार होने के बावजूद इस हैदराबादी बाला का जलवा बच्चों से लेकर बूढ़ों तक के दिलो-दिमाग पर छाया रहता है। हर कोई उनकी अदाओं पर फिदा है। सानिया ने अपनी खूबसूरती और चंद सफलताओं के बूते पर कम से कम यह तो साबित कर ही दिया है कि पागलों की तरह क्रिकेट को सीने से चिपकाने वाली भारतीय जनता एक महिला टेनिस खिलाड़ी को भी अपना 'रोल मॉडल' बनाने का माद्दा रखती है।

  खबर ये नहीं है कि सानिया मिर्जा का चोट की वजह बीजिंग ओलिम्पिक का अभियान शुरुआत में ही थम गया, खबर ये है कि टेनिस के बजाय मार्केटिंग के हाथों इस खिलाड़ी का टेनिस करियर बरबादी के कगार पर पहुँच गया है। अब उसके सामने यही विकल्प है कि वह अपनी सुंदरता      
दो बरस पहले जब सचिन तेंडुलकर और राहुल द्रविड़ अपने शबाब पर थे, तब सानिया मिर्जा ही ऐसी तीसरी खिलाड़ी थीं, जिनकी मार्केट वेल्यू दीगर क्रिकेट से ज्यादा थी। बाद में यह जगह महेन्द्रसिंह धोनी के खाते में चली गई।

22 साल की सानिया मिर्जा बीजिंग ओलिम्पिक में भले ही नाकाम रही हों लेकिन उनकी सुंदरता का आलम ऐसा है कि आज भी न जाने कितनी कंपनियाँ अपना उत्पाद बेचने के लिए उनसे अनुबंध करने कतार लगाए खड़ी होंगी। सानिया के साथ-साथ बीजिंग ओलिम्पिक में स्वर्णिम कामयाबी का तमगा सीने से लगाने वाले अभिनव बिंद्रा का नाम भी आप इसमें शुमार कर सकते हैं।

ND
अभिनव और सानिया के परिवार में थोड़ा अंतर जरूर है। अभिनव का ताल्लुक सम्पन्न घराने से है जबकि सानिया के पैसों के बूते पर उसका परिवार उच्च मध्यमवर्ग के स्तर तक पहुँचा है।

अभिनव के पैसों की कोई फिक्र नहीं क्योंकि उनकी खुद की कंपनी है और पिता भी इतने दिलदार हो गए हैं कि वे उन्हें ओलिम्पिक कामयाबी को तोहफे के रूप में 200 करोड़ का एक होटल देने का ऐलान कर चुके हैं।

  क्या आप यह नहीं मानते कि सानियाका खेल जीवन अब समाप्ति की ओर है। यह वाकई दुःखद है, लेकिन क्या इसके लिए खुद सानिया दोषी नहीं? सानिया का ध्यान अब खेल के बजाय दूसरी चीजों पर है और शारीरिक चोटों ने उसके मनोबल को पूरी तरह तोड़कर रख दिया है      
आज बिन्द्रा का परिवार 1 हजार करोड़ का मालिक है, लिहाजा नहीं लगता कि अभिनव विज्ञापनों में नजर आएँ। यूँ ‍भी अभिनव पहले ही ऐलान कर चुके हैं कि उनकी जिन्दगी 10 मीटर रेंज तक सिमटकर रह गई है और आगे भी रहेगी।

सानिया मिर्जा जरूर अपने बैंक बैलेंस को बढ़ाना चाहेंगी। सानिया को भी इसका अहसास है कि उनमें अभी भी मार्केटिंग कंपनियों को अपनी ओर आकर्षित करने की कूवत है। बाजार की पहली पसंद सानिया को इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि उनकी टेनिस रैंकिंग 50 के पार पहुँच गई या उनके कदम पहले- दूसरे दौर से आगे नहीं बढ़ रहे हैं। भारतीय बाजार में जब विदेशी क्रिकेटर आकर अच्छी खासी कमाई करके ले जा सकते हैं तो फिर कंपनियों को सानिया के चेहरे को पेश करने में क्या दिक्कत हो सकती है। बहुत पहले कहीं से शे'र सुना था जो सानिया पर आज भी पूरी तरह फिट बैठता है-

'यूँ बे-परदा होकर छत पर जाया न करो,
कोई चाँद समझकर रोजा न तोड़ लें'

सानिया आज उम्र के 22वें पड़ाव पर हैं। उनके चेहरे में अभी आकर्षण बचा है और सानिया को यह अच्छी तरह मालूम है कि इस चेहरे को किस तरह भुनाया जा सकता है।

रही बात टेनिस के खेल की तो उन्हें एक आज्ञाकारी बच्ची की तरह विजय अमृतराज की बात मान लेनी चाहिए। विजय ने उनसे साफ कहा था कि तुम अत्यधिक अपेक्षाओं के कारण बिखरती जा रही हो, तुम्हारा शरीर भी अब साथ नहीं दे रहा है, इसलिए तुम अब केवल 'डबल्स' में ही खेलों ताकि तुम्हारी कमजोरियाँ दब जाए और दाल-रोटी भी चलती रहे...

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