रेत-सा रिश्ता
- पल्लवी सक्सेना
क्यूं रिश्ता मुझसे अपना तुमने रेत-सा बनायाक्यूं आते हो तुम लौट-लौटकरमेरी जिंदगी में गए मौसम की तरहजानते हो ना कभी-कभी खुशगवार मौसम भीजब लौटकर आता हैतो कुछ शुष्क हवाएं भी अपने साथ लाता हैजो लहूलुहान कर दिया करती हैन सिर्फ तन बल्कि मन भीऔर तब तो तुम्हारे प्यार की यादों काकोमल एहसास भी भर नहीं पाताउन जख्मों को तब ऐसा महसूस होता है मुझे, जैसे तुमने ही ठग लिया है मुझेमानो मैं स्तब्ध-सी खड़ी हूंऔर कोई आकर मेरा सब कुछलिए जा रहा है मेरे हाथों सेखुद को इतना जड़-हताश और निराशआज से पहले कभी नहीं पाया मैंनेशायद इसलिए तुमसे बिछड़ने के गम ने हीमुझे बेजान-सा कर दिया हैकि एक खामोशी-सी पसरा गई मेरे अंतस मेंमगर यह कैसी विडंबना है हमारे प्यार कीकि मुझे इतना भी अधिकार नहींकि मैं रोक सकूं उसेयह कहकर कि रुको यह तुम्हारा नहींजिसे तुम लिए जा रहे हो अपने साथक्यूंकि सच तो यह है कि अब तो मुझसे पहले उसका अधिकार है तुम परतुम तो अब मेरी यादों में भी उसकीअमानत बनकर आते होतो किस हक से कुछ भी कहूं उससेइसलिए खड़ी हूं पत्थर की मूरत बन यूं हीअपने हाथों की हथेलियों को खोलेऔर वो लिए जा रहा है मेरा सर्वस्वयूं लग रहा है जैसे तुम रेत बनकर फिसल रहे हो मेरे हाथों सेऔर वो मुझे चिढ़ाता हुआ-सा लिए जा रहा हैतुमको अपने साथ मुझसे बहुत दूरफिर कभी न मिलने के लिएयह कहते हुए कि मेरे रहते भलातुमने ऐसा सोचा भी कैसेकि यह तुम्हारा हो सकता हैतुम से पहले अबयह तो मेरा है, मेरा थाऔर मेरा ही रहेगा हमेशा...।