गांधी जिंदा हैं। किसने कहा - मैंने कहा। तुम कौन? मैं, नेता - भाड़ में जाओ।
गांधी जिंदा हैं। किसने कहा - मैंने कहा। तुम कौन? मैं, समाज सेवी - भाड़ में जाओ।
गांधी जिंदा हैं। किसने कहा - मैंने कहा। तुम कौन? मैं, बुद्धिजीवी लेखक - भाड़ में जाओ।
गांधी जिंदा हैं। किसने कहा - मैंने कहा। तुम कौन? मैं, आम आदमी - ठहरो, सुनो। कैसे कह सकते हो? तुम्हारे आंख, कान, मुंह सब बंद हैं।
मैं गांधी का बंदर पल-पल मरकर जीता हूं। तभी तो कहता हूं - गांधी जिंदा हैं। गांधी शरीर नहीं विचार हैं। मुश्किल घड़ी में अहिंसा और असहयोग के तेवर लौट आते हैं, और गांधी जिंदा हो जाते हैं।