प्रवासी साहित्य : प्रार्थना
- अनिल के. प्रसाद
पहले भी ऋषियों केहिमालय जाकर तपस्याकरने की कहानियांहमने बड़ों से सुनी थीजो घर-संसार त्यागकरअपने आध्यात्मिक ज्ञान-धनको पाने के लिए हिमालयकी कंदराओं में जा बसते थेहम भी तो आज जहरातेखलीजकी इन गुफाओं में उन्हीं साधुओंकी तरह साधना में लीन हैंघर-संसार त्यागकरमौनव्रती आत्मलीन हैं हमतुम्हारे नाम की माला भीफेरने की आदत है हमेंजो हमारे गृहस्थ जीवन की देन हैसोते-जागते दिनारों की मीनारों कोदेखते रहते हैं, नापते रहते हैंउनकी ऊंचाइयों को,क्या हिमालय की चोटियों से भीऊंचा चढ़ पाएंगे हम?